बादल की आत्मकथा निबंध- Badal Ki Atmakatha Essay in Hindi

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बादल की आत्मकथा निबंध- Badal Ki Atmakatha Essay in Hindi

 

प्रस्तावना

मैं अपनी अश्रु – छलछल कथा क्या लिखू ? जब भी लिखने को होता हूँ तो बरबस बरस पड़ता हूं कि अक्षर धुल जाते हैं, पन्ने भीग जाते हैं। सुनाऊँ भी तो किसे ? । बड़े- बड़ें धैर्यशाली मेरी करुण कथा सुनकर पथरा गये हैं । पूर्व और पश्चिम की घाटियों को सुनाऊँ, वे पथरा गई, विन्ध्याचल जड़ बना, हिमालय जम गया, हिन्दुकुश और अरा- वली अचेत हो गए । क्या मेरी कथा अनकही और अनसुनी ही रह जायेगी ? व्यथा का यह बोझ क्या सदा ही मेरे मन पर पड़ा रहेगा ?

तो सुनिये ! मैं शोषित सागर का हाहाकार हूँ । सूर्य की प्रचण्ड किरणें उसे सदा जलाती रहती हैं । मैं उस बेचारे का निःश्वास हूं। उस की करुण पुकार सुनाने के लिए मैं ‘डपुटेशन’ लेकर सौरमण्डल में गया । उसका चप्पा-चप्पा छान मारा। किसी ने मेरी एक न सुनी, मगर मैं सब की सुनता हूं ।

मेरी अंतरिक्ष यात्रा की कई मनोरंजक घटनाएँ हैं । अभी मैं यात्रा पर निकला ही था कि क्या देखता हूं कि किष्किन्धा में राम और लक्ष्मण युद्ध की चिन्ता में घुल रहे थे । मैंने दुःखियों को और दुखाना उचित नहीं समझा। मुझे आता देखकर तो वे और भी घबरा उठे। मैं झट वहां से चलता बना। ऐसे ही घूमते-घूमते एक बार रामगिरि पर्वत पर विलाप मग्न एक यक्ष मिल गया । मुझे मित्र कह कर पुकारने लगा । आखिर उसके शाप की कथा भी सुननी पड़ी और उसकी अलकावसिती प्रिया के पास संदेश ले जाने का गुप्त एवं विश्वासपूर्ण कार्य भी मैंने ही किया । मैंने यक्ष का काम पूरी ईमान- दारी से किया । और किसी को कानों-कान खबर तक न होने दी, परन्तु न जाने इस कालिदास कवि ने कैसे सारा भाँडा ही फोड़ दिया और मेरा नाम मेघदूत रख दिया। वैसे मैं कवियों को बहुत प्रिय हूं, सुनने में आता है कि कवियों में मेरे वर्णन की एक प्रशस्त परम्परा चल निकली है । मैं सँसार भर में किसी को भी कष्ट नहीं पहुंचाता प्रत्युत जन-जन का संताप हरता हूं। फिर पता नहीं कि विरहणियाँ मुझे देखकर क्यों जलभुन उठती हैं। मुझे आंसू पी-पीकर कोसती हैं । मेरे बरसने से पहले ही बरस पड़ती हैं और भी कई ऐसे प्रसंग हैं। किस-किस का उल्लेख करू ?

ऐसे ही मैं आकाश में घूम रहा था कि मुझे महाराज इन्द्र के सैनिक बन्दी बना कर ले गए। मैंने अपना अपराध पूछा तो पता चला कि मैं पासपोर्ट के बिना ही महा- राज इन्द्र के राज्य में प्रवेश पा गया था । एक दिन मैं व्रज पर टूट पड़ा, मगर श्री कृष्ण ने मेरे दांत खट्टे कर दिए। मुझे क्या पता था कि वे भगवान् हैं, नहीं तो मैं उनके सामने कभी सिर न उठाता। फिर पता चला कि उनका नाम मेरी ही तरह घनश्याम है ।

संसार में मेरे चाहने वालों की कमी नहीं। मेरे सिंहलद्वीप पहुंचने पर रत्नसेन और पद्यावती बड़े प्रसन्न हुए । ऐसे ही मेरी मुलाकातें बड़े लोगों से होती रहती हैं। कोयल और मोर मुझे देखकर गद्गद हो उठते हैं । पपीहा मेरा परम भक्त है । वह तो मेरा ही जल पीता है । उनके लिए सागर-ताल-तलैया सब खारे हैं । किसान मुझे देख कर नाच उठते हैं, मगर कई बार मेरे दर्शन न होने पर बड़े-बड़े यज्ञ होते हैं । मैं दुखिया कई बार जब बहुत बरस पड़ता हूं तो संसार में हाहाकार मच जाता है । यह मेरे वश की बात नहीं। मेरी करुणा स्वयं पिघल पिघलकर बहती है ।

उपसंहार

मैं आवागमन के चक्र में बुरी तरह फँस चुका हूं। क्या बताऊँ ! जब भी इन्द्र की कंद से भागने का प्रयत्न किया, मुझे कठोर दण्ड मिला। मुझे नुकीले ऊँचे पर्वतों की चोटियों से फेंका गया, जिन पर गिरते ही मेरे टुकड़े-ठुकड़े हो गए। मगर मुझे चैन कहां ? घायल, गिरता पड़ता, असंख्य नदी-तालों के मार्ग से मैं फिर सागर तक पहुंच गया, परन्तु उसकी दशा वैसी ही थी। उसका वैसे ही शोषण हो रहा था, मुझे आया देख वह गले लिपट कर रोने लगा । अब बताइए, मैं हाथ धरकर कैसे बैठा रहूं। हर वर्ष मैं सागर का हाहाकार बनकर उड़ता हूं और धरती आकाश नापता फिरता हूं । अपनी व्यथा सबसे कहता हूं। फिर सागर में लीन हो जाता हूं। फिर उठता हूं, फिर लीन हो जाता हूं । ऐसे ही यह चक्र चल रहा है । पता नहीं यह शोषण कब तक चलेगा और इस आवागमन के चक्र को कब तक काटना रहूंगा ।

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