मित्रता पर निबंध- Friendship Essay in Hindi

In this article, we are providing a Friendship Essay in Hindi Essay in Hindi मित्रता पर निबंध हिंदी में | Essay in 100, 150. 200, 300, 500, 800 words For Students.

मित्रता पर निबंध | Essay Friendship in Hindi in Hindi ये हिंदी निबंध class 4,5,7,6,8,9,10,11 and 12 के बच्चे अपनी पढ़ाई के लिए इस्तेमाल कर सकते है।

मित्रता पर निबंध- Friendship Essay in Hindi

 

दोस्ती का महत्व क्या है? सरल शब्दों में दोस्ती क्या है?

( Essay-1 ) Essay in Hindi on Friendship | Mitrata Par Nibandh ( 200 words )

दोस्ती 200 शब्द क्या है?

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता होती है जिसे वह अपने मन की बात कह सके। मित्रता एक अनमोल धन है। मित्र से अपने सुख-दुख की बात दिल खोलकर कही जा सकती है। अच्छा मित्र सदैव हमारा हित सोचता और करता है। वह सही सलाह देकर हमारा उचित मार्गदर्शन करता है। सच्चा मित्र हितैषी, शुभेच्छु, पथ-प्रदर्शक होता है। वह अपने साथी को उसके दोषों के प्रति जागरूक करता है और उसकी कमियों को दूर करने का प्रयास करता है। अच्छे और सच्चे मित्र में उत्तम वैद्य की-सी निपुणता और परख होती है तथा माँ जैसा धैर्य और कोमलता होती है। किंतु ऐसा मित्र दुर्लभ होता है। आज व्यक्ति अपनी भलाई और दूसरों की बुराई की ही कामना करता दिखाई देता है। अत: मित्र के चुनाव में हमें सतर्कता बरतनी चाहिए। केवल मिठबोला तथा चिकनी-चुपड़ी बातें करने वाले व्यक्ति को ही हमें मित्र नहीं बना लेना चाहिए। किसी व्यक्ति में यदि अच्छी आदतें, सकारात्मक सोच, सहायता करने की प्रवृत्ति तथा हमें सही राह दिखाने की भावना हो, तभी उसे अपना मित्र बनाना चाहिए।

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( Essay-2 ) मित्रता पर निबंध | Essay on Friendship in Hindi ( 400 Word )

Mitrata Par Nibandh | Dosti par Nibandh

दूसरों को प्रसन्न करने की कुशलता में ही मित्रता का रहस्य छिपा हुआ है । औरों को मित्र बनाना एक कला है । मित्रता से वह कार्य हो सकता है, जो धन से भी नहीं हो सकता । दूसरों को प्रसन्न करने की शक्ति एक बड़ी पूँजी है। इस पूँजी के बिना संसार में किसी भी व्यक्ति को बड़ी सफलता नहीं मिल सकती ।

प्रसन्न करने वाले तथा मुग्ध करने वाले व्यक्ति की ओर बहुत-से लोग आकर्षित होते हैं । परन्तु मित्रता सोच-समझकर ही करनी चाहिए। जिस मनुष्य से मित्रता करके हमें अपने उद्देश्य से दूर हटने या चरित्र से गिर जाने का खतरा हो, उसे दूर से ही नमस्कार करना चाहिए ।

जो मनुष्य प्रसन्नचित, उदार, हितकारी तथा दयालु है- उससे मित्रता करनी चाहिए। संस्कृत के एक कवि ने कहा है– “देना, लेना, मन की बात करना, पूछना, खाना और खिलाना” ये छः मित्रता के लक्षण हैं । परन्तु गोस्वामी तुलसीदास का मत है, “जो मनुष्य मित्र के दुःख से दुःखी नहीं होता, उसे देखने मात्र से भारी पाप लगता है।” इसका अभिप्राय यह है कि मित्रता का सबसे बड़ा लक्षण है “मित्र से सहानुभूति” । मित्र के दुःख में दुःखी तथा सुख में सुखी होना ही आदर्श मित्रता है ।

किसी को मित्र बनाने का इससे अच्छा कोई उपाय नहीं कि हम उसकी बात रुचि से, ध्यान से सुनें । यदि हम सुनी- अनसुनी कर दें, तो उसे हम मित्र नहीं बना सकते | यदि हम लोगों से दूर रहेंगे, तो लोग भी हमसे दूर रहेंगे । यदि हम किसी की बात नहीं सुनेंगे, तो हमारी बात कौन सुनेगा ? मित्र- हीन मनुष्य इस संसार में – ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता ।’

यदि कोई मनुष्य ईमानदार है, सच्चा है, तो ऊपर से चाहे वह कितना ही रूखा या खुरदरा हो – उसे अवश्य मित्र बनाना चाहिए, क्योंकि वह ‘खरा आदमी है’ । परन्तु खरा सोना भी आभूषण तभी बनता है जब सान पर चढ़े । इसी प्रकार यदि हम भी रूखे और खुरदरे हैं, तो हमें सोचना चाहिए कि जब तक हम सहृदय नहीं होंगे, तब तक लोग हमको अपना मित्र नहीं बनाना चाहेंगे । अतः मन में सहृदयता और सहानुभूति की भावना अवश्य होनी चाहिए-तभी हम मित्र बनाने में सफल हो सकते हैं ।

 

( Essay-3 ) मित्रता पर निबंध | About Friendship in Hindi Essay ( 800 Words )

Mitrata Par Nibandh

प्रस्तावना

मनुष्य अकेला नहीं रहता है। इसलिए उसे सामाजिक प्राणी कहा जाता है। सर्वप्रथम उसका सम्बन्ध अपने परिवार और परिजनों से जुड़ता है, किन्तु बड़ा होने पर वह घर के बाहर वालों से जुड़ता है। जिनसे वह परिचित होता है उनमें से कुछ लोगों के बहुत निकट आ जाता है। धीरे-धीरे सामान्य परिचय मित्रता में बदलने लगता है। जो लोग हमारे दु:ख सुख के सहभागी होते हैं वे ही हमारे मित्र होते हैं। मित्र सच्चे जो लोग खुले हृदय से अपने मित्र की नि:स्वार्थ सहायता करते हैं वे ही सच्चे मित्र होते हैं। दो व्यक्ति जब एक दूसरे के हित की कामना करते हैं, और हर अवस्था में एक दूसरे की सहायता करते हैं, वे ही सच्चे मित्र होते हैं।

मित्र का चुनाव

जीवन में हम तरह-तरह के लोगों से मिलते हैं। परिचितों में से सही मित्र का चुनाव करना बहुत कठिन होता है। अनेक लोग ऐसे होते हैं जो ऊपर से मित्रता का नाटक करते हैं किन्तु अवसर आने पर धोखा दे देते हैं। इसलिए हमें बड़ी सावधानी से मित्र का चुनाव करना चाहिए। सच्चे मित्र के चुनाव के लिए हमें कुछ बातों पर ध्यान देना चाहिए। सर्व प्रथम हमें समान लोगों से ही मित्रता करनी चाहिए। जो रहन-सहन, आचार-विचार, आयु–आय आदि में हमारे जैसे ही हों। किसी से मित्रता करने से पहले उसके आचरण, स्वभाव और रहन-सहन की जानकारी अवश्य कर लेनी चाहिए। ऐसा नहीं करने पर बाद में धोखा खाने की सम्भावना बनी रहती है।

मित्र के लक्षण

सच्चे मित्र का प्रथम लक्षण है कि वह अपने मित्र के दुःख-सुख में सहभागी होता है। वास्तव में सच्चे मित्र की परख विपत्ति में ही की जाती है। ऐसा मित्र अपने मित्र के दुःख को दूर करने के लिए तन-मन-धन से तैयार रहता है और जब तक मित्र का दु:ख दूर नहीं हो जाता है तब तक उसके साथ रहता है। वह अपने दुःख की बिलकुल चिन्ता नहीं करता है। इसके विपरीत स्वार्थी मित्र तब तक साथ देते है, जब तक उनका स्वार्थ पूरा नै होता है। सच्चा मित्र किसी भी परिस्थिति में अपने मित्र का अहित नहीं करता है। अगर अनजाने में या किसी खास परिस्थिति में कभी मित्र से उसका अहित भी हो जाता है तो उसे उदारता पूर्वक क्षमा कर देता है। सच्चा मित्र कभी भी अपने मित्र की निन्दा नहीं सुन सकता है। वह सच्चे मन से अपने मित्र की कमजोरियों तथा बुराइयों को दूर करने का प्रयास करता है। वह मित्र को निराशा के क्षणों में आशा की ज्योति जलाकर उसका मार्ग प्रदर्शन करता है। तुलसीदास ने लिखा है- जो न मित्र दु:ख होय दुखारी। तिन्हीं विलोकत. पातक भारी।

मित्र के कर्त्तव्य

मित्र का मित्र के प्रति महान कर्त्तव्य होता है। मित्र का पहला कर्तव्य है कि वह अपने मित्र की हर प्रकार की भलाई करे। हर अवस्था में मित्र का दूसरा कर्तव्य यह है कि मित्र को सत्कर्म की ओर प्रेरित और प्रोत्साहित करे। अगर मित्र किसी बरी संगति में पड़कर भटक गया हो तो अपने सद् प्रयासों से उसे सुमार्ग पर लाने की चेष्टा करे। कहा गया है-

धीरज, धर्म, मित्र, अरु नारी। आपत काल परखिए चारी।

विपत्ति में सच्चे मित्र की परीक्षा होती है, क्योंकि इसी अवस्था में वह अपने मित्र की सहायता करता है और उसे सत्पथ पर ले आता है। मित्र को धीरज बंधाना, उसकी सहायता करना, उसके हृदय में शक्ति पैदा करना आदि सच्चे मित्र का परम कर्त्तव्य है।

मित्रता से लाभ 

मित्रता से बहुत से लाभ हैं। मित्रों के सहयोग और सत्परामर्श से मनुष्य जीवन में कल्पनातीत सफलता प्राप्त करता है। मित्र विपत्ति ग्रस्त मित्र का सबसे बड़ा सहायक होता है। मित्र की सहायता से वह अपनी क्षमता से कहीं अधिक कार्य कर सकता है। जो सहयोग परिवार के लोग नहीं कर सकते, है वह मित्र करता है। मित्रता मनुष्य की बहुत बड़ी शक्ति है। जिन्हें जीवन में सच्चा मित्र मिल जाए, समझिए उनका जीवन पूर्णरूपेण सार्थक हो गया। सच्ची मित्रता का सामना संसार की कोई शक्ति नहीं कर सकती है। सचमुच मित्रता ईश्वरीय वरदान है। किसी भी मूल्य पर मित्रता का ह्रास करना जीवन की सबसे बड़ी त्रुटि है। .

निष्कर्ष

मित्रता मनुष्य के जीवन की अमूल्य निधि है। मित्रता का आधार विश्वास. प्रेम, सहानुभूति और सहयोग है। इसके अभाव में मित्रता का कोई अस्तित्व नहीं होता है। मित्र बनाना बहुत आसान है, किन्तु उसका निर्वाह करना बहुत कठिन है। अगर कभी किसी कारण से मित्रता टूट जाए तो उसे फिर से जोड़ने का प्रयास करना चाहिए। विश्व के इतिहास में अनेक मित्रों के उदाहरण मिलते हैं, जो हमारे लिए अनुकरणीय हैं। वे व्यक्ति अत्यन्त भाग्यशाली हैं जिन्हें जीवन में सच्चे मित्र मिल जाते हैं।

 

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