पुस्तक पर निबंध- Essay on Book in Hindi

In this article, we are providing information about Book in Hindi- Essay on Book in Hindi Language. पुस्तकों पर निबंध- Pustako Par Nibandh | Essay for class 2,3,4,5,6,7,8,9,10,11,12 students.

पुस्तक पर निबंध- Essay on Book in Hindi

 

( Essay-1 ) Pustak Par 10 Lines | 10 Lines on book in Hindi Essay ( 100 words )

1. पुस्तकें हमारे ज्ञान का खजाना होती हैं।

2. वे हमें नई दुनिया का दर्पण दिखाती हैं और हमारे दिमाग को विकसित करती हैं।

3. पुस्तकें हमें अनगिनत कहानियां, ज्ञान और अनुभवों से रूबरू कराती हैं।

4. उनमें छिपी मनोरंजक दुनिया हमें खोजने का मौका देती हैं।

5. पुस्तकें हमें अलग-अलग विषयों पर ज्ञानवर्धक बातें सिखाती हैं।

6. वे हमारे भाषा को सुंदर बनाने में मदद करती हैं।

7. पुस्तकें हमें सोचने, समझने, और सोच-विचार करने की क्षमता प्रदान करती हैं।

8. अच्छी पुस्तकों को पढ़कर हम नए दोस्त बना सकते हैं।

9. उनमें छिपी कला और साहित्य हमें सुंदरता और अभिरूचि का अनुभव कराते हैं।

10. पुस्तकें हमें एक बेहतर इंसान बनने का मार्ग दिखाती हैं और हमें उच्चतम आदर्शों की ओर आगे बढ़ाने में सहायक होती हैं।

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( Essay-2 ) Pustak Par Nibandh | Essay about Books in Hindi ( 300 words )

पुस्तकें ज्ञान का भण्डार होती हैं। वे मानव का सबसे अच्छा मित्र और साथी होती हैं। उन्होंने उसका अच्छे और बुरे समय में साथ दिया है। मनुष्य का सबसे बढ़िया खज़ाना केवल पुस्तकें हैं।

पुस्तकें हमें बिना कोई धन खर्च किए हुए विश्व के विभिन्न भागों की यात्रा करवा देता है। वे हमें हंसती हैं, रूलाती है, सोचने पर मजबूर करती हैं और हमारा मनोरंजन भी करता है।

कई विषयों पर पुस्तकें मिलती है। वे हमारा ज्ञान बढ़ाती हैं। नाटक, कविता, सहित्य, इतिहास और कहानियों की पुस्तकें होती हैं। अच्छी और मनोरंजक उपन्यास भी हैं। विज्ञान की कल्पना पर भी पुस्तकें हैं। लोगों के जीवन और कार्यों पर भी किताब हैं जिन्हें जीवनी कहते हैं। आत्मकथाएँ भी हैं। पुस्तकें हमारी समझाने की शक्ति को, और सोच के तेज करती हैं और हमारे नज़रिए को कई तरीकों से बढ़ाती हैं। वे हमें भूतकाल और वर्तमान के विषय में ज्ञान प्रदान करती हैं, लोगों और उनके रहन-सहन के बारे में और विभिन्न प्रदेशों और स्थानों के मौसम और ऋतुओं का ज्ञान देती हैं।

अपराध और जासूसों पर पुस्तकें हैं। एक ऐसी पुस्तक कॉनन डोयेल द्वारा लिखी गई शर्लक होल्मस है। ये हमारी अनुमान ढूँढने और अपराध पकड़ने की शक्ति बढ़ाती हैं। यह पढ़ने योग्य है।

धर्म पर पुस्तकें हैं। गीता ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया है। सभी धर्मों की पुस्तकें अच्छे कर्मों पर जोर डालती हैं। किताबों ने वैज्ञानिकों को आविष्कार का रास्ता दिखाया है। कवि पहले स्वप्न देखते हैं। वैज्ञानिक उनके सपनों को ऐसी मशीनें और औज़ारों का आविष्कार करके सच्च करते हैं।

विश्व के महान व्यक्तियों पर भी पुस्तकें हैं। वे हमें बताती हैं कि वे कैसे महान बने और कैसे महानता प्राप्त की। ऐसी पुस्तकें अवश्य पढ़ी जानी चाहिएँ। हमें केवल चुनी हुई पुस्तकें ही पढ़नी चाहिए जो हमारे चरित्र कार्य और व्यक्तित्व को विकसित होने में सहायता करती है।

 

 

Essay on book in Hindi

 

( Essay-3 ) Book Essay in Hindi | पुस्तकों का महत्व पर निबंध ( 500 words )

प्रस्तावना:

पुस्तकें हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। वे न केवल हमें ज्ञान के समृद्ध खजाने से रूबरू कराती हैं बल्कि हमें अनगिनत रंगमंचों पर भ्रमण कराती हैं। यहां इस निबंध में हम पुस्तकों के महत्व, उनके लाभ, उपयोगिता, उनसे सिखने वाली बातें, और समापन पर विचार करेंगे।

पुस्तकों का महत्व:

पुस्तकों का महत्व अविच्छिन्न है। ये एक सफल जीवन की ओर एक प्रकाशमान क्षितिज ले जाती हैं। पुस्तकें हमें विभिन्न जगहों, विषयों, और समयों का ज्ञान प्रदान करती हैं। वे एक व्यक्ति के दिमाग में नई सोच, समझ, और समृद्धि भरती हैं।

पुस्तकों के लाभ:

पुस्तकों के पढ़ने से हमें अनेक लाभ होते हैं। पहले तो, ये हमें ज्ञानवर्धक बातें सिखाती हैं। वे हमें विभिन्न विषयों पर विशेषज्ञता प्रदान करती हैं। इसके अलावा, पुस्तकें मनोवैज्ञानिक और नैतिक मुल्यों को भी समझने में मदद करती हैं।

पुस्तकों की उपयोगिता:

पुस्तकें हमारे जीवन में व्यक्तिगत और व्यावसायिक रूप से उपयोगी होती हैं। वे हमें अपने रोज़मर्रा के जीवन में समस्याओं का समाधान ढूंढने में मदद करती हैं और एक सकारात्मक सोच के साथ समस्याओं का सामना करने की क्षमता प्रदान करती हैं।

पुस्तकों से सीखने वाली बातें:

पुस्तकें हमें जीवन के अनमोल सिख सिखाती हैं। वे यह सिखाती हैं कि सच्चा सफलता मन की शुद्धि, समर्पण, और मेहनत से होता है। वे यह भी बताती हैं कि सभी लोगों को समान तरीके से समझा जाना चाहिए और वे अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित किए जाना चाहिए।

निष्कर्ष:

पुस्तकें हमारे जीवन का रंगमंच होती हैं। वे हमें नई दिशाओं में ले जाती हैं, नए सपनों की ऊंचाइयों को छूने का मौका देती हैं। पुस्तकें हमें सोचने, समझने, और सीखने की प्रेरणा प्रदान करती हैं। हमें अधिक ज्ञानवर्धक बनाती हैं और एक सकारात्मक और समृद्ध जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं।

 

( Essay-4 ) Essay on Book in Hindi | Pustak Ka Mahatva Essay in Hindi ( 800 words )

प्रस्तावना

पुस्तकें समय के महासागर में प्रकाश-सदन की भाँति होती हैं। उनके बिना ईश्वर भी है, न्याय भी निद्रित है, प्राकृतिक विज्ञान स्तब्ध है, दर्शन पंगु है, शब्द निर्वाक् हैं और सारी वस्तुएँ अंधकारपूर्ण हैं। हम केवल शारीरिक ही नहीं, मानसिक तृषा की भी तृप्ति चाहते हैं । इस प्रकार, पुस्तकों के बिना जीवनधारण कठिन है, कालयापन कष्टप्रद है।

किंतु, आजकल मुद्राराक्षस के करिश्मे के कारण संसार में प्रतिदिन हजारों पुस्तकें छपती रहती हैं। वे सारी की सारी अच्छी-ही-अच्छी हैं, ऐसा नहीं कहा जा सकता। बहुत पुस्तकें तो केवल अश्लीलता की पिटारी होती हैं, तिलस्मों का तहखाना होती हैं, कामलिप्सा की उत्तेजक कहानियाँ होती हैं । कुछ पुस्तकों का पढ़ना जहर पीने के समान है — ऐसा टॉल्सटाय ने कहा है

दूसरी बात यह है कि मनुष्य अनंत काल के लिए पृथ्वी पर नहीं आता है। उसका जीवन बड़ा ही क्षणभंगुर है । अतः, वह चाहकर भी बहुत अधिक पुस्तकें पढ़ नहीं सकता। समय की सीमा के साथ-साथ पैसे की भी सीमा है। बहुत सारी पुस्तकें खरीदकर पढ़ना भी संभव नहीं है। इसके अतिरिक्त, रुचिवैभित्र्य और वयोवैभिन्न्य आदि अनके कारण हैं, जिनके कारण पुस्तकों का चुनाव करना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य हो जाता है। बर्नार्ड शॉ ने ठीक ही कहा था कि आज पढ़ना तो सब कोई जानता है, किंतु क्या पढ़ना है, यह कोई नहीं जानता ।

चयन की आवश्यकता

प्रसिद्ध निबंध-लेखक बेकन ने लिखा है- “कुछ पुस्तकें चखने के लिए होती हैं, कुछ निगलने के लिए होती है तथा कुछ चबा-चबाकर पचाने योग्य होती हैं।” हाँ ! इतना निश्चित है कि बहुत कम पुस्तकें बिलकुल आत्मसात् करने योग्य होती हैं। ऐसी पुस्तकों में हम श्रेण्य साहित्य को ले सकते हैं। ये पुस्तकें काल की कठिन अग्निपरीक्षा में भी कुंदन की भाँति दमकती रही हैं। इनमें कुछ ऐसे वैशिष्ट्य एवं विलक्षण तत्त्व हैं, जो दूर से ही पहचान में आ जाती हैं। ये पुस्तकें कालपथ पर वज्रस्तंभ की तरह खड़ी रहती हैं। न हम सहस्राक्ष हैं, न कालिदास की तरह देवी वरदानप्राप्त, न अश्वत्थामा की तरह अपरिमितायु हैं कि सारी मुद्रित अमुद्रित पुस्तकें पढ़ जाएँ। अतः, हमारा पहला प्रयास विशिष्ट पुस्तकें पढ़ लेना आवश्यक होता है । इनमें कुछ भी हम पढ़ लेते हैं, तो हमें जीवन का लाभ प्रतीत होता है। इन पुस्तकों में हम वाल्मीकि रामायण, महाभारत, उपनिषद, तुलसीकृत रामायण, रघुवंश, शेक्सपियर, मिल्टन, दाँते, वर्जिल की रचनाएँ, बाइबिल, कुरान, भगवद्गीता आदि को रख सकते हैं। इन पुस्तकों ने संसार के महत्तम पुरुषों के जीवन को सँवारा है, इन्हीं ग्रंथों के नवनीत से उनका चिंतन परिपुष्ट हुआ है; अतः इन पुस्तकों के लिए किसी की राय लेने की आवश्यकता नहीं है। वस्तुतः, ये जीवनोपयोगी ग्रंथ स्वयंसिद्ध हो चुके हैं।

इन ग्रंथों के सतत अध्ययन से रुचि निर्मित ही नहीं होती, विकसित एवं परिष्कृत भी होती है, हम किसी पुस्तक की उत्तमता – अनुत्तमता का फैसला करने में समर्थ हो पाते हैं। अल्पायु में ही श्रेष्ठ पुरुषों के साहचर्य से, उनके वैयक्तिक पुस्तकागार से, उनके साथ बातचीत से हम उत्तम पुस्तकों की जानकारी प्राप्त कर ले सकते हैं । अंधकार में टटोलते रहने की अपेक्षा बत्ती जलाकर ढूँढ़ना अच्छा है। अतः, अनुमान पद्धति के द्वारा समय नष्ट करना ठीक नहीं।

अँगरेजी में एक कहावत है- Never read any but famous books.

यह भी कहा गया है-
जब साहित्य पढ़ो तब पढ़ो पहले ग्रंथ प्राचीन ।
पढ़ना हो विज्ञान अगर तो पोथी पढ़ो नवीन ॥ -दिनकर

नवीन-प्राचीन का विवाद

कुछ लोग यह भी मानते हैं कि नवीन पुस्तकें समय की सरिता में बुदबुदों की भाँति अपना अस्तित्व शीघ्र खो देती हैं, समय का ब्लीचिंग पाउडर उनकी चटक सुगमता से समाप्त कर देता है, क्षण-क्षण परिवर्तित लोकरुचि का रबर उनकी रेखाओं को जल्द ही मिटा देता है । फिर, केवल सुप्रसिद्ध पुस्तकें पढ़ने से बहुत सारी अच्छी पुस्तकों के छूट जाने की संभावना है। प्रतिभा एवं पांडित्य किसी एक युग एवं स्थान की विरासत नहीं है। यदि ऐसा नहीं होता, तो नवीन रचनाओं का आगमन ही नहीं होता । केवल प्राचीन श्रेण्य रचनाओं को पढ़ने से बौद्धिक बढ़ोतरी हो, ऐसी बात नहीं; नई-नई रचनाओं की अपेक्षा भी हो सकती है।

निष्कर्ष

अतः, पुस्तकों के चयन में संकुचित दृष्टिकोण का त्याग होना चाहिए। यदि ऐसा न हो, तो शेक्सपियर के पश्चात् गॉल्सवर्दी, बर्नार्ड शॉ, टी० एस० इलियट और गेटेल के पश्चात् टॉमस मान, कॉफ्का, तुलसी-सूर के पश्चात् रवींद्रनाथ, प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त, पंत, प्रसाद, निराला, दिनकर, अज्ञेय आदि के पठन की गुंजाइश ही न रह जाती । पुस्तक- चयन में वृत्ति का ध्यान रखना भी आवश्यक है। किसी चिकित्सक के लिए चिकित्साशास्त्र की पुस्तकें उसके ज्ञानक्षितिज का विस्तार करने में समर्थ हो सकती हैं, तो किसी विधिवेत्ता के लिए विधि की पुस्तकें। एक इतिहासज्ञ के लिए इतिहास की नई-नई पुस्तकों का अध्ययन लाभकर है, तो साहित्यकार के लिए साहित्य की अधुनातन पुस्तकों का अध्ययन श्रेयस्कर है। विज्ञान के छात्र यदि केवल कविता की पुस्तकें पढ़ते रहें और कला के छात्र केवल वाणिज्य की पुस्तक, तो उनकी प्रगति रुक जाएगी, उनकी सफलता का पथ अवरुद्ध हो जाएगा। जिसका जो कार्यक्षेत्र है, उस क्षेत्र की नवीनतम पुस्तकों का चयन-पठन उसके लिए जरूरी है ।

अध्ययन का अर्थ केवल पदोन्नति नहीं है, स्ववृति का विकास भी नहीं है, वरन् ज्ञान की परिधि का विस्तार है, अंतर्वृत्तियों का उन्नयन है। अध्ययन का उद्देश्य निरानंद जीवन में आनंद की खोज है, ‘स्व’ का अभिज्ञान है, सृष्टि के रहस्य की जिज्ञासा है। इसके लिए आवश्यक होगा कि हम संसार के महान साहित्यकार, इतिहासकार, विचारक, राजनीतिज्ञ, धर्मपंडित आदि की भी चुनी हुई पुस्तकें पढ़ें।

 

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