किसान की आत्मकथा हिंदी निबंध- Essay on Kisan ki Atmakatha in Hindi

In this article, we are providing an Essay on Kisan ki Atmakatha in Hindi किसान की आत्मकथा निबंध हिंदी | Nibandh। Essay in 200, 300, 500, 600 words For Class 7,8,9,10,11,12 Students. Kisan Ki Atmakatha Hindi Nibandh, Bhartiya Kisan Par Nibandh

किसान की आत्मकथा हिंदी निबंध- Essay on Kisan ki Atmakatha in Hindi

Ek Kisan Ki Atmakatha Nibandh | Autobiography of a Farmer in Hindi

प्रस्तावना- किसान दुनियाभर का अन्नदाता है जो कोई व्यापारी नही, भारत की अर्थव्यवस्था में किसानों की ज्यादा हिस्सेदारी तो नही है, लेकिन किसानों के बिना भारत ही नही बल्कि पूरी दुनिया का कोई अस्तित्व नही है। मैं एक किसान हु और मै जानता हूं कि कैसे एक किसान देश की वो पटरियां हैं जो देश को प्रगति के रास्ते से जोड़ती हैं।

लोग कहते हैं जैसे दुनिया के तमाम व्यवसाय हैं वैसे ही खेती किसान का व्यवसाय है,लेकिन लोगों को क्या पता किसान की आत्मकथा के बारे में, लोग कहते हैं कि किसान उन्हें अनाज देता है और उसके बदले उनसे पैसा लेता है बस हिसाब बराबर। लेकिन हिसाब अभी कहाँ बराबर हुआ आपने जितना पैसा दिया उतना पैसा तो मैंने भी लगाया था कभी खाद, कभी बीज, कभी जुताई तो कभी सिंचाई, ऐसे जाने कितने खर्चे लेकिन इन सबके बाद जो मैंने पसीना बहाया उसका हिसाब कहाँ है, जब दुनिया आराम से अपने घरों में सुबह सो रही होती हैं तब मै सुबह उठकर पानी लगा रहा था अपने खेतों में।

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पूरी दुनिया की भूख मुझसे ही खत्म होती है। अक्सर मैं राजनीति के बीच का मुद्दा भी बनता रहता हूँ, फिर चाहे सत्तापक्ष हो चाहे विपक्ष, सबने मुझे तरह-तरह के लालच दिए लेकिन मेरे ही वोट से जीतने के बाद लौटकर मेरे बारे में कभी नही सोंचा। मैं सिर्फ दुनिया के हाथों की मशाल बनकर जला हूँ। जहाँ लोगों को मुझसे रौशनी, जिंदगी जीने की उम्मीदें मिली हैं और मुझे मिली है सिरफ़ काली राख। मुझे भी धूप में धूप लगती है, मेरे बाजुओं में भी बस उतनी ही ताकत है जितना की एक आम इंसान के बाजुओं में होती हैं।

हाथों के छाले मुझे भी उतना ही दर्द देते हैं जितना की एक आम इंसान के हाथ के छाले, अगर लोगों को आसान लगता है किसान का काम तो क्यों नहीं बन जाते सब किसान, क्यों नहीं करने लगते सब खेती। भारत में 70 % किसान हैं, मानो तो आबादी मेरी ज्यादा है लेकिन मान्यता में मैं शून्य हूँ, जहाँ मुझे इतना भी अधिकार नहीं है की मैं अपनी फसल का मूल्य निर्धारित कर सकूँ, फिर कैसे मान लूं कि मेरे साथ अन्याय नहीं हो रहा है। हमारे जैसे किसान हर रोज क्यों आत्महत्या कर रहे हूँ, आखिर क्यों मेरे जैसे किसान दुबे जा रहे हैं कर्ज में।

दुनिया भर में विज्ञान ने बहुत तरक्की की, जिससे मुझे भी लाभ हुआ, मेरे पास नए यंत्र आए, मुझे नए जल संसाधन भी मिले, नए बीजों और दवाओं के कारण आज मैं कम खेत में भी अच्छी पैदावार कर सकता हूँ, लेकिन उन महंगे यंत्रों को इस्तेमाल करने के लिए मेरे पास पैसे भी होने चाहिए। हर किसी की आमदनी में हजारों गुना तक का इजाफा हुआ लेकिन मेरी आमदनी को दोगुना होने में भी 100 साल लग गए।

जाने कितने ही संगठन मेरे हित में खड़े हुए और अपना धंधा जमा कर चले गए और मैं खड़ा रह गया वहीं के वहीं किसी नए संगठन की तलाश में, ये सोचकर कि शायद कोई तो होगा जो सोचेंगा मेरे  बारे में, लेकिन कोई नही है जो सोचे मेरे बारे में।

मैं कभी नही मांगता दुनिया भर की दौलत, मैं चाहता हूँ तो बस इतना की मेरे बच्चे भी शिक्षित बनें और वो बन जाएं बिल्कुल बाकी दुनिया जैसे न कि मेरे जैसे। मैं चाहता हूँ तो बस थोड़ी इज्जत जो काफी है मेंरे लिए।

उपसंहार- अब आप समझ गए होंगे कि किसान क्या चाहता है और किसान की कैसी आत्मकथा है देश को चाहिए कि किसानों की समस्या को देश की बड़ी समस्या समझें, किसानों को उतनी इज्जत दीजिए जितनी देते हो अपने घर में कमाने वाले अपने पिता को।

किसान इतना भी फिजूल नही की हम उनकी समस्या को सुने ही नही। भारत वासियों को हर किसान पर गर्व होना चाहिए और हमें दिल से कहना चाहिए ‘जय जवान जय किसान’।

 

दोस्तों आपके इस लेख के ऊपर (किसान की आत्मकथा) पर क्या विचार है और क्या आप खेती से संबंध रखते हो ? हमें नीचे comment करके जरूर बताइए।

‘किसान की आत्मकथा’ ये हिंदी निबंध class 1,2,3,4,5,7,6,8,9 and 10  के बच्चे अपनी पढ़ाई के लिए इस्तेमाल कर सकते है। यह निबंध नीचे दिए गए विषयो पर भी इस्तमाल किया जा सकता है।

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