In this article, we are providing an Essay on Ped Ki Atmakatha in Hindi पेड़ की आत्मकथा निबंध हिंदी | Nibandh in 200, 300, 500, 600, 800 words For Students. Ped Ki Atmakatha Hindi Nibandh
पेड़ की आत्मकथा पर निबंध- Essay on Ped Ki Atmakatha in Hindi
Ped Ki Atmakatha Nibandh
प्रस्तावना
पेड़ हमसब लोगों के लिए बहुत जरूरी हैं, जो बिना किसी लालच के वर्ष भर हमारे लिए उपलब्ध रहते हैं। पेड़ हमें लकड़ियां, दवाइयाँ, फल, फूल, सब्जियां देते हैं और साथ ही हमारे जीवित रहने की बजह भी पेड़ ही हैं। इन सब के साथ ही पेड़ कई लोगों को रोजगार भी देते हैं। आइए आज जानते हैं पेड़ की आत्मकथा के बारे में।
मैं पेड़ हूँ, मेरा शरीर लकड़ियों से बना हुआ है, मेरे शरीर पर टहनियां हैं और उन टहनियों पर हरे पत्ते लगे रहते हैं। मेरा कोई भी घर नही है बल्कि मैं स्वमं लोगों के घर को बनाने के काम आता हूँ, लोग मेरी शाखाओं से खिड़की, दरबाजे, अलमारी, दुकान, घर आदि बनाते हैं।
मैं हर मौसम में यूँ ही खड़ा रहता हूँ, मुझ पर अनेक पक्षी अपना घर बनाकर रहते हैं लेकिन पतझड़ के मौसम में मैं वीरान हो जाता हूँ तब मेरे पत्ते सूख कर गिर जाते हैं लेकिन कुछ समय बाद नए पत्ते आते हैं और मैं फिर से हरा-भरा हो जाता हूँ।
मैं हर रोज मनुष्यों के काम आता हूँ, मैं वर्ष भर दुनिया को तरह-तरह के फल, फूल, सब्जी, औषधियां देता रहता हूँ, लोग मुझसे तरह-तरह के विटामिन और पोषक तत्व पाते हैं। मैं जानवरों के लिए भी बहुत उपयोगी हूँ, जानवर भी मेरे फल और पत्ते को बहुत शौक से खाते हैं।
मैं जब एक पौधे से वृक्ष बन जाता हूँ तब मेरी टहनियां शाखाओं के रूप में परिवर्तित हो जाती है और मैं एक विशाल वृक्ष बन जाता हूँ, जिससे मैं कड़ी धूप में लोगों को छाया भी उपलब्ध कराता हूँ, रास्ते में आते-जाते मुसाफिर मेरी छाया में बैठकर विश्राम करते हैं और मुझे आशीर्वाद देते हैं।
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मैं तरह-तरह की औषधियों के बनाने के काम में आता हूँ, मेरे पत्ते, मेरी छाल, मेरी शाखाओं को औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है, मेरे फूलों से तरह-तरह के इत्र बनाए जाते हैं, बड़ी-बड़ी कंपनियां मुझसे कच्चा माल प्राप्त करती हैं और लोगों के लिए खाद्य, औषधीय, प्रसाधन सामिग्री भी बनाते हैं।
मैं मनुष्य की प्राणवायु का जरिया भी हूँ, जहां मैं उन्हें ऑक्सिजन प्रदान करता हूँ, लेकिन बदले में मनुष्य भी मुझे कॉर्बनडाई ऑक्साइड गैस प्रदान करते हैं जो मेरी प्राणवायु है। जिसके लिए मैं मनुष्यों का आभारी हूँ। भारत के लगभग 20% जमीन पर मैं रहता हूँ,लेकिन हर रोज की कटाई और बढ़ते शहरीकरण से मैं लगातार घट रहा हूँ।
मैं भी मनुष्यों की तरह प्राणवायु के द्वारा जीवित रहता हूँ, मैं परोपकारी हूँ, मैं अपने जीवन पर्यन्त दुनिया के काम आता रहता हूँ और मरने के बाद भी मैं अपनी सूखी लकड़ी लोगों के लिए छोंड़ जाता हूँ, जिसे वो अपने कार्यों में प्रयोग कर सकते हैं। लेकिन जाने क्यों फिर भी लोग मुझे प्यार नही करते हैं, मैं अकेला रहता हूँ, मेरी कोई फिक्र नही करता बल्कि लोग मुझे बेबजह ही नुकसान पहुँचाते रहते हैं। मैं फिर भी कभी किसी से शिकायत नही करता।
सरकार मेरे कम होती संख्या को देखकर काफी चिंतित है इसलिए सरकार ने मेरे हित के लिए 2 अक्टूबर से 8 अक्टूबर तक वन्य जीव सप्ताह मनाती है, जहां सरकार कई अभियान को आयोजित कर मेरे बारे में लोगों को जागरूक करती है लेकिन जब तक आम लोग मेरी सुरक्षा के प्रति जागरूक और ईमानदार नहीं होंगे तब तक मुझे नही बचाया जा सकता है।
मैं वर्षा कराने के लिए भी उत्तरदायी हूँ, मैं वायुमंडल में तापमान को समान करता हूँ और गैसों को स्वच्छ करता हूँ जिससे इंसान जीवित रहे सके। लेकिन इंसान फिर भी मुझे काटता रहता है जाने क्यों। अगर इसी तरह से मेरी कटाई होती रही तो मैं एक दिन खत्म हो जाऊंगा हमेशा के लिए लेकिन तब आपका अस्तित्व भी मेरे बिना खतरे में आ जाएगा। सब लोगो को मेरे प्रति जागरूक होना पड़ेगा क्योकि मै नही होऊँगा तो पृथ्वी पर जीवन भी नही होगा।
उपसंहार
आम जनता को पेड़ों के भविष्य के लिए जागरूक होना होगा, क्योंकि पेड़ हमारे लिए अत्यंत लाभदायक हैं जब हम उन्हें काटते रहेंगे तो एक दिन ऐसा आएगा जब पेंड़ बचेंगे ही नही। पेंड़ काटने से पहले ये याद रख लें कि हम पेड़ नही काट कर हटा रहे बल्कि अपने आने वाले अस्तिव को पृत्वी से हटा रहे है।
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दोस्तों आपके इस लेख के ऊपर Ped Ki Atmakatha (पेड़ की आत्मकथा) पर क्या विचार है और क्या आपके घर के आस पास कोई पेड़ है? हमें नीचे comment करके जरूर बताइए।
‘पेड़ की आत्मकथा’ ये हिंदी निबंध class 1,2,3,4,5,7,6,8,9 and 10 के बच्चे अपनी पढ़ाई के लिए इस्तेमाल कर सकते है। यह निबंध नीचे दिए गए विषयों पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
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