मेरे प्रिय कवि पर निबंध- Mera Priya Kavi Nibandh | Essay in Hindi

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मेरे प्रिय कवि पर निबंध | My Favourite Poet Essay in Hindi ये हिंदी निबंध class 4,5,7,6,8,9,10,11 and 12 के बच्चे अपनी पढ़ाई के लिए इस्तेमाल कर सकते है।

मेरे प्रिय कवि पर निबंध- Mera Priya Kavi Nibandh | Essay in Hindi

 

( Essay -1 ) Short Mera Priya Kavi Essay in Hindi

भारत के कवियों ने केवल साहित्य ही नहीं रचा बल्कि समाज को भी प्रभावित किया है। हिंदी साहित्य के महान संत कवि कबीर इसी श्रेणी में आते हैं। अपने विद्रोही व्यक्तित्व और मानवीयता के कारण ही वे मेरे सबसे प्रिय कवि हैं। कबीर का जन्म सन 1398 में काशी में हुआ माना जाता है। किंवदंती है कि वे विधवा ब्राह्मणी के पुत्र थे जिसने उन्हें लहरतारा नामक तालाब के किनारे छोड़ दिया था। उनका पालन-पोषण नीरू और नीमा नामक निस्संतान मुसलमान दंपत्ति ने किया जो जुलाहा जाति से संबंधित थे। कबीर ने भी जीवनयापन के लिए कपड़ा बुनने का ही कार्य किया। कबीर रामानंद के शिष्य थे। उन्होंने गृहस्थ जीवन जीते हुए सामाजिक कुरीतियों, बाह्याडंबरों और अंधविश्वासों पर प्रहार किया। कबीर ने साखी, पद, दोहे और रमैनी में कविता रची है। कबीर निर्गुण भक्ति काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि हैं। इनके साहित्य में भक्ति, समाज-सुधार और मानवीयता का स्वर प्रमुख है। इन्होंने सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग किया है। मानव-जीवन को बेहतर बनाने में आज भी कबीर की शिक्षाएँ और विचार महत्त्वपूर्ण हैं।

 

( Essay -2 ) Mera Priya Kavi Essay in Hindi | मेरे प्रिय कवि पर निबंध हिंदी में

प्रस्तावना

कृष्णभक्त सन्त कवि सूरदास मेरे सर्वप्रिय कवि हैं। सूरदास आजीवन श्रीनाथ जी के मन्दिर में भजन-कीर्तन करते रहे। अपने कृष्ण-लीलाओं के पदों के बल पर अपने समय की ही नहीं, आज भी भारतीय जनता के कष्टहार हैं। पाँच-सौ वर्ष बीत जाने पर भी सूरदास के पद भक्त और काव्य प्रेमी आनन्द-विभोर और रस-मग्न कर रहे हैं ।

परिचय
अधिकतर विद्वान सूरदास का जन्म संवत् 1535 में दिल्ली के पास सीही गाँव में हुआ मानते हैं, कुछ लोग आगरा-मथुरा के बीच रुणकता गाँव को उनकी जन्मभूमि कहते हैं। सूरदास जन्म से अन्धे थे या बाद में अन्धे हुए, इस विषय में विवाद है। रूप-रंग, शरीर के विभिन्न अंगों, प्रकृति के पदार्थों और दृश्यों, वेषभूषा तथा सुन्दरता आदि का जैसा वर्णन सूरदास के पदों में मिलता है, उसे पढ़-सुनकर यही लगता है कि सूरदास बाद में अन्धे हुए होंगे। सूरदास की शिक्षा आदि के विषय में भी कुछ नहीं कहा जा सकता, केवल इतना ही ज्ञात है कि वे वल्लभाचार्य के शिष्य थे और उन्हीं की प्रेरणा से कृष्ण लीलाओं के मधुर गीत गाने आरम्भ किए थे।

सूरदास की तीन रचनाएँ कही जाती हैं—सूरसागर, साहित्यलहरी और सूर- सारावली। इसमें ‘सूरसागर’ उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है। कहते हैं सूरसागर में कृष्ण की बाललीला, सौन्दर्य और प्रेमलीलाओं के सवा लाख पद थे, परन्तु आजकल लगभग जो छः हजार पद मिलते हैं, वे भी उनकी अक्षय कीर्ति के लिए कम नहीं हैं।

बच्चों के स्वभाव तथा उनके खेल-कूद, चंचल क्रीड़ाओं के जैसे स्वाभाविक, सच्चे और मोहक चित्र सूरदास ने प्रस्तुत किए हैं, वैसे संसार का और कवि नहीं कर सका। इसके साथ ही माँ के हृदय को भी उन्होंने अपने पदों में ज्यों का त्यों रख दिया है।

उदाहरण के लिए-
(क) चन्द खिलौना लेहि हौं ।
(ख) कज़री को पय पियहु लला तेरी चोटी बढ़े ।
(ग) मैया कबहुँ बढ़े भी चोटी ?
घ) मैया मैं नहीं माखन खायो ।
(ङ) डारि साँरि मुस्काय जसोदा हरि को कण्ठ लगाये ।
(च) रुटि करै तासों को खेले ?

जैसे पदों को देखा जा सकता है। इसीलिए कहा गया है “सूर जैसा वात्सल्य- स्नेह का भावुक चित्रकार न हुआ है न होगा ।”

राधा-कृष्ण और गोपियों की प्रेम लीलाओं का वर्णन भी बहुत मोहक और हृदयहारी है ।

सूर सागर का एक अंश ‘भ्रमर गीत’ बहुत प्रसिद्ध है । भ्रमरगीत में गोपियों और उद्धव के बीच हुए वार्तालाप के माध्यम से वियोग शृंगार का वर्णन है । ब्रज भाषा का जितना कोमल और सुन्दर रूप सूरदास ने प्रस्तुत किया है, वैसा कहीं और देखने से नहीं मिलता । संगीत सूरदास के पदों की बड़ी विशेषता है । वे शास्त्रीय संगीत की हर कसौटी पर खरे उतरते हैं ।

कहा जा सकता है कि सूरदास भक्त-शिरोमणि हैं, वात्सल्य और शृंगार के बेजोड़ कवि तथा संगीताचार्यों के आदर्श हैं।

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( Essay -3 ) Mera Priya Kavi Nibandh | मेरे प्रिय कवि पर निबंध हिंदी में

सूर-सूर तुलसी ससी, उडगन केशवदास ।
अब के कवि खद्योत सम, जँह तँह करें प्रकाश ।।

सूरदास जी को हिन्दी में सूर्य के समान स्थान प्राप्त है।

प्रस्तावना

मैंने अब तक हिन्दी में सूरदास, कबीर दास, रहीम, सुभद्राकुमारी चौहान आदि कुछ ही कवियों की कविताएँ पढ़ी हैं। मैंने आकाशवाणी से प्रसारित होने वाले सूरदास तथा मीराबाई के भजन भी सुने हैं। मुझे इन सबमें सूरदास की कविता ही सबसे अच्छी लगी है। सूरदास मेरे ही नहीं हिन्दी के असंख्य पाठकों के प्रिय कवि हैं।

जन्म

मेरे प्रिय कवि सूरदास का जन्म संवत् 1535 में दिल्ली के निकट सीही नामक गाँव में हुआ था। यह गाँव आजकल हरियाणा प्रदेश में है। सूरदास जन्म से ही अन्धे थे या बाद में अन्धे हुए इस विषय में बहुत मतभेद है। कुछ साहित्यकार इन्हें जन्म से अन्धा मानते हैं। इनके साहित्य में बाल-लीला तथा प्रकृति के सजीव चित्रण को देखकर साहित्यकारों का कहना है कि जन्मांध इस प्रकार का चित्रण नहीं कर सकता, परन्तु जो इन्हें जन्मांध मानते हैं उनका तर्क है कि इतना तो सब मानते हैं कि जब सूरदास श्रीनाथ के मन्दिर में थे तब वे अन्धे थे। जो व्यक्ति अन्धा होते हुए भगवान के दर्शन कर सकता है वह अपने दिव्य नेत्रों से सब कुछ देख सकता है। उसके लिए प्रकृति का सजीव चित्रण करना असम्भव नहीं। मेरे विचार से सूरदास जन्म से ही अन्धे थे।

प्रारम्भ में सूरदास जी मथुरा तथा आगरा के बीच स्थित गऊ घाट पर करुणा भरे दीनता के भजन गाया करते थे। वहीं इनकी भेंट महाप्रभु वल्लभाचार्य से हुई। वल्लभाचार्य ने इनसे कहा – “सूर इतना क्यों गिड़गिड़ाते हो, कुछ भगवान की लीलाओं का गुणगान करो। ” उन्होंने सूरदास को अपना शिष्य बनाकर वल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षित किया तथा श्रीनाथ के मन्दिर की -अर्चना का भार सौंपा। महाप्रभु पूजा- के आदेश पर ही सूरदास जी ने कृष्ण की लीलाओं का चित्रण किया। सूरदास द्वारा रचित तीन काव्य ग्रन्थ माने जाते हैं-सूर-सागर, साहित्य लहरी तथा सूरसारावली। परन्तु इस तीनों काव्य में ‘सूरसागर’ सूरदास की अक्षय कीर्ति का कारण है। ऐसा माना जाता है कि सूरदास ने सवा लाख पद रचने का निश्चय किया था। इनके अन्तिम दिन निकट आ गए थे। अतः बाकी पदों की रचना स्वयं श्री कृष्ण ने की थी। जिन पदों में कवि का नाम ‘सूर’ के स्थान पर ‘सूर-स्याम’ लिखा हुआ है, उन्हें श्री कृष्ण द्वारा रचे माना जाता है। आज सूरदास जी के पाँच हजार के लगभग पद ही प्राप्त हैं।

सूरदास ने विनय के पदों के अतिरिक्त श्री कृष्ण की बाल-लीला तथा शृंगार के पदों की रचना भी की है। तीनों ही तरह के पदों का हिन्दी में बड़ा महत्त्व है। सूर की बाल लीला का चित्रण तो इतना सजीव है कि हिन्दी में ही नहीं विश्व की किसी भी भाषा में ऐसा चित्रण नहीं है। सूरदास को वात्सल्य सम्राट कहा जाता है। बाल-लीला के कुछ पद तो देखते ही बनते हैं :-

मैया मैं नहिं माखन खायो ।
भोर भयो बंसीबट भटक्यो, साँझ परे घर आयो ।

मैया, मैं तो चन्द्र खिलौना लै हों।

मैया कबहि बढ़ेगी चोटी ?
किती बेर मोहि दूध पिबत भई, यह अजहूँ है छोटी।

श्रृंगार के वर्णन में सूर का संयोग और वियोग दोनों अवस्थाओं का चित्रण अनुपम बन पड़ा है। राधा कृष्ण के प्रथम मिलन का चित्रण कितना सुन्दर बन पड़ा है-

बूझत स्याम, कौन तू गोरी।
कहाँ रहती काकी तू बेटी, देखी नहीं कबहुँ ब्रजकेरि ।
काँहे को हम ब्रज तन आवती खेलती रहती अपनी पौराण,

वियोग श्रृंगार का उदाहरण प्रस्तुत है-
मधुवन तुम कत रहत हरे ।
विरह वियोग श्याम सुन्दर के ठाढे क्यों न जरै।

निष्कर्ष

सूरदास ने अपने काव्य की रचना ब्रजभाषा में की है। सूरदास ब्रजभाषा के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। आज चार सौ वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद भी सूर के पद जन-जन के कंठाहार हैं तथा भारत की सभी भाषाओं के संगीत प्रेमी इन्हें प्रेम तथा भक्ति के साथ गाते तथा सुनते हैं।

 

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