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गोस्वामी तुलसीदास पर निबंध- Essay on Tulsidas in Hindi
बाल्यकाल से ही महाकवि तुलसोदास के प्रति मेरा असीम अनुराग है । जब मैं छोटा था तो अपनी दादीजी को प्रतिदिन ‘रामचरितमानस’ में से कुछ पद पढ़कर सुनाया करता था । उन दिनों यद्यपि मैं इस महाकाव्य के महत्त्व से अनभिज्ञ था और इसके पद्यों का ठीक-ठीक अर्थ भी मेरी समझ में नहीं आता था तथापि मुझे इस उत्कृष्ट कृति को पढ़कर सुनाते हुए अद्भुत रस की प्राप्ति अवश्य होती थी । कहा जाता है कि “ भिन्न रुचिहि लोकः ।” मेरे कई सहपाठियों को आधुनिक कविता भाती है । उनका विचार है कि ‘पंत’, ‘निराला’ तथा महादेवी वर्मा की कविताओं में अपार आनन्द भरा है, किन्तु मुझे इनमें जी के प्रति तुलसीदास जैसा उच्च आदर्श नहीं मिलता। मेरा सहपाठी ‘सूरदास’ पर लट्टू है, परन्तु मेरी धारणा है कि सूर के पद हमें युग की विषम परिस्थितियों का साहस- ‘पूर्वक सामना करने की प्रेरणा नहीं देते। तुलसीदास के काव्य में सौन्दर्य भी है और एक गहरा जीवन-दर्शन भी। उनके ‘मानस’ के पाठ से जहां मनुष्य को शान्ति प्राप्त होती है, वहां आदर्शमय जीवन बिताने के लिए एक गहरी प्रेरणा भी मिलती है ।
तुलसीदास के जीवन के विषय में अभी तक हमें बहुत कम प्रामाणिक सामग्री मिली है। उन के सम्बन्ध में कई विषयों पर विद्वानों में भारी मतभेद है। कहा जाता है कि आपका जन्म राजापुर नामक गांव, जिला बांदा में किसी आत्माराम नाम के व्यक्ति के घर हुआ था, अशुभ नक्षत्र में जन्म लेने के कारण माता-पिता ने आपको जन्म लेते ही त्याग दिया । इनका बाल्यकाल बड़े संकट में बीता। सबसे पहले इन्होंने बाबा नरहरिदास से रामायण की कथा सुनी। पं० शेष सनातन से इन्होंने संस्कृत और दूसरे शास्त्र पढ़ें । इनका विवाह दीनबन्धु पाठक की पुत्री रत्नावली से हुआ था। इन्हें अपनी पत्नी से बहुत प्रेम था और एक बार उसके मायके जाने पर ‘वियोग से कातर होकर ये भी उसके पीछे वहीं जा पहुंचे। इनकी पत्नी बहुत लज्जित हुई और उसने इन्हें कठोर फटकार दी। इस घटना के पश्चात् तुलसीदास जी के जीवन में ऐसा परिवर्तन आया कि वे सांसारिक प्रेम से ऊपर उठकर भगवान् राम के अनन्य भक्त बन गए ।
तुलसीदास जी का जीवन दुःख और दरिद्रता में बीता। इनके समय के पण्डितों और विद्वानों ने इनका घोर विरोध किया, क्योंकि इन्होंने संस्कृत के स्थान पर हिन्दी में रामायण लिखी थीं। कई बार इन पर आक्रमण भी किए गए किन्तु कुछ समय के पश्चात् धर्म के इन ठेकेदारों को तुलसीदास की महत्ता स्वीकार करनी पड़ी। अपने जीवन के अन्तिम दिनों में ये काशी में रहने लगे थे । इन्हें अनेक प्रकार के व्रणों और भयानक रोगों का कष्ट सहन करना पड़ा। इनकी मृत्यु काशी में हुई ।
तुलसीदासजी की सर्वोत्तम कृति ‘रामचरितमानस’ है । आपने और भी अनेक ग्रन्थ लिखे हैं जिनमें ‘विनयपत्रिका’ मुख्य है । इन्हें अवधी और ब्रज भाषा दोनों भाषाओं पर समान अधिकार प्राप्त था। क्या भाव, क्या भाषा, किसी भी दृष्टि से तुलसीदास एक महान् कवि ठहरते हैं। आप एक महान् कवि, विद्वान्, धर्मवेत्ता और समाज- सुधारक थे ।
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रामचरितमानस का प्रचार भारत के घर-घर में है। इसे हिन्दुओं में वह लोक- प्रियता प्राप्त है जो ईसाइयों में बाइबिल को है। थोड़ा पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी इसको ‘समझ सकता है और एक विद्वान् अनेक बार पढकर भी इसके गूढ़ अर्थ समझने में असमर्थ रहता है। यही इसकी विचित्रता है। वस्तुतः तुलसीदास जी का अध्ययन बड़ा गहन था । नाना धर्म-ग्रन्थों को पढ़कर उन्होंने राम चरित मानस की रचना की, इसलिए संकटकाल में यह भारतीय संस्कृति के लिए सम्बल बना। अब तो राम चरित मानस का अनुवाद रूसी भाषा में भी हो चुका है। रूस की जनता इस महान् ग्रन्थ से बहुत प्रभावित हुई है । यूरोप के बहुत से विद्वानों ने इसकी मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की है।
मैं प्रतिदिन संध्या समय आधा घण्टा इसका अध्ययन करता हूं। मैं इसे दो बार पढ चुका हूं । अब तीसरी बार पढ़ते हुए मुझें एक नवीन आनन्द का अनुभव हो रहा है । मेरी बुद्धि और मन पर मानस का गहरा प्रभाव पड़ा है। आप चाहे मुझे अन्ध- विश्वासी कहें, किन्तु जब से मैंने मानस का नियमित अध्ययन आरम्भ किया है, मेरा भाग्य जाग उठा है । तुलसीदासजी की रचनाएं सच्चे अर्थों में भारतीयता की प्रतीक हैं। और आप निश्चय ही भारत के गौरव हैं। इनकी महत्ता की ओर किसी ने निम्नांकित पंक्तियों में कितना सुन्दर संकेत किया–
सूर सूर तुलसी ससी, उड़गन केसववास ।
अब के कवि खद्योत सम, जहं तहं करत प्रकास ॥
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