निर्जला एकादशी व्रत कथा, विधि- Nirjala Ekadashi Vrat Katha in Hindi

इस पोस्ट में हम अपने दर्शकों को निर्जला एकादशी व्रत की पूरी जानकारी दे रहे है जैसे की- निर्जला एकादशी व्रत कथा, विधि, नियम और लाभ। Providing information about Nirjala Ekadashi Vrat Katha in Hindi | Nirjala Ekadashi Puja Vidhi, Rules and Benefits, How to do Nirjala Ekadashi Fast | Vrat

निर्जला एकादशी व्रत कथा, विधि- Nirjala Ekadashi Vrat Katha in Hindi

Nirjala Ekadashi Vrat Vidhi in Hindi– ज्येष्ठ शुक्ल पक्षीय एकादशी को निर्जला एकादशी या ‘भीमसेनी एकादशी’ कहते हैं, क्योंकि वेदव्यास के आज्ञानुसार भीमसेन ने इसे धारण किया था। शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी के व्रत से दीर्घायु तथा मोक्ष मिलता है, इस दिन जल नहीं पीना चाहिये। इस एकादशी के व्रत रहने से वर्ष की पूरी (१४) एकादशियों का फल मिलता है। यह व्रत करने के पश्चात् द्वादशी को ब्रह्मा-बेला में उठकर स्नान, दान तथा ब्राह्मण को भोजन करना चाहिए। इस दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करके गोदान, स्वर्गदान, वस्त्रदान छत्र, फल आदि दान करना वांछनीय है।

कथा :-एक समय की बात है भीमसेन ने व्यास जी से कहा कि हे भगवान ! युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, कुन्ती तथा द्रोपदी सभी एकादशी के दिन उपवास करते हैं तथा मुझसे भी यह कार्य करने को कहते हैं, मगर मैं कहता हूं कि मैं भूख बर्दाशत नहीं कर सकता। मैं दान देकर तथा वासुदेव भगवान की अर्चना करके उन्हें प्रसन्न कर लूंगा। बिना व्रत किये जिस तरह से हो सके मुझे एकादशी व्रत का फल बताइए। मैं बिना काया क्लेश के ही फल चाहता हूं।

इस पर वेद व्यास बोले-हे वृकोदर ! यदि तुम्हें स्वर्गलोक प्रिय है तथा नरक जाने से सुरक्षित रहना चाहते हो तो दोनों एकादशियों का व्रत रखना होगा।

भीमसेन बोले-हे देव ! एक समय के भोजन करने से तो मेरा काम न चल सकेगा। मेरे उदर में वृक नामक अग्नि निरंतर प्रज्वलित रहती है। पर्याप्त भोजन करने पर भी मेरी क्षुधा शांत नहीं होती है। हे ऋषिवर ! आप कृपा करके मुझे ऐसा व्रत बतलाईये कि जिसके करने मात्र से मेरा कल्याण हो सके।

व्यासजी बोले-हे भद्र ! ज्येष्ठ की एकादशी को निर्जल व्रत कीजिए। स्नान, आचमन में जल ग्रहण कर सकते हैं। अन्न बिलकुल न ग्रहण कीजिये। अन्नाहार लेने से व्रत खंडित हो जाता है। तुम जीवन पर्यन्त इस व्रत का पालन करो। इससे तुम्हारे पूर्वकृत समस्त एकादशियों के अन्न खाने का पाप समूल विनष्ट हो जायेगा। व्यासाज्ञानुसार भीमसेन ने बड़े साहस के साथ निर्जला का यह व्रत किया, जिसके परिणामस्वरूप प्राप्तः होते-होते संज्ञाहीन हो गये। तब पांडवों ने गंगाजल, तुलसी चरणामृत प्रसाद देकर उनकी मूर्छा दूर की। तभी से भीमसेन पापमुक्त हो गये।

# nirjala ekadashi vrat katha story

# Nirjala Ekadashi vrat katha in hindi Book PDF

# Nirjala Ekadashi katha # Nirjala Ekadashi Katha Niyam # Nirjala Ekadashi Pooja Vidhi

Nirjala Ekadashi Katha in English, Marathi, Gujrati, Telugu and Tamil PDF

– Use Google Translator

सोलह सोमवार व्रत की कथा, विधि- 16 Solah Somvar Vrat Katha

बृहस्पतिवार व्रत कथा, विधि- Brihaspati Vrat Katha | Vidhi

ध्यान दें– प्रिय दर्शकों Nirjala Ekadashi Vrat Katha in Hindi पोस्ट को जरूर शेयर करे ताकि आदिक से आदिक लोग इस व्रत का लाभ ले सके।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *