हरतालिका तीज व्रत कथा, पूजा विधि- Hartalika Teej Vrat Katha in Hindi

इस पोस्ट में हम अपने दर्शकों को हरतालिका तीज व्रत की पूरी जानकारी दे रहे है जैसे की- हरतालिका तीज व्रत कथा, विधि, नियम और लाभ। Providing information about Hartalika Teej Vrat Katha in Hindi | Hartalika Teej Puja Vidhi, Rules and Benefits, How to do Hartalika Teej Vrat

हरतालिका तीज व्रत कथा- Hartalika Teej Vrat Katha in Hindi

यह व्रत भाद्र शुक्ल तृतीया को किया जाता है। सुहाग चाहने वाली यों को इस दिन शंकर-पार्वती सहित बालू की मूर्ति बनाकर पूजनना चाहिये। सुन्दर वस्त्रों कदली स्तम्भों से गृह को सजाकर नाना प्रकार मंगल गीतों से रात्रि जागरण करना चाहिये। इस व्रत को करने वाली ध्वयां पार्वती के समान सुखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती हैं।

कथा :-एक बार जब तुमने हिमालय पर्वत पर जाकर गंगा किनारे, पायको पतिरूप में पाने के लिए कठिन तपस्या प्रारम्भ की थी उसी घोर तपस्या के समय नारद जी हिमालय के पास गये तथा कहा कि विष्णु भगवान आपकी कन्या के साथ विवाह करना चाहते हैं, इस कार्य के लिए मझे भेजा है। यह नारद की बनावटी बात को तुम्हारे पिता ने स्वीकार कर लिया। तत्पश्चात् नारद जी विष्णु के पास गये और कहा कि आपका विवाह हिमालय ने पार्वती के साथ करने का निश्चय कर लिया है। आप इसकी स्वीकृति दें। नारद जी के जाने के पश्चात् पिता हिमालय ने तुम्हें भगवान विष्णु के साथ निश्चित किया गया विवाह सम्बंध बतलाया। यह अनहोनी बात सुनकर तुम्हें अत्यन्त दुःख हुआ और तुम जोर-२ से विलाप करने लगीं। एक सखी के द्वारा विलाप का कारण पूछे जाने पर तुमने सारा वृत्तान्त कह सुनाया कि मैं इधर भगवान शंकर के साथ विवाह करने के लिए कठिन तपस्या प्रारम्भ कर रही हूं इधर हमारे पिता जी विष्णु के साथ सम्बन्ध करना चाहते हैं ? यदि तुम मेरी सहायता कर सको तो बोलो। अन्यथा मैं प्राण त्याग दूंगी।

सखी ने सात्वना देते हुए कहा- मैं तुम्हें ऐसे वन में ले चलूंगी कि तुम्हारे पिता को पता न चलेगा। इस प्रकार तुम सखी सम्मति से घने जंगल में गईं। इधर तुम्हारे पिता हिमालय घर में इधर-उधर खोजने पर जब तुम्हें न पाये तो बहुत चिंतित हुए क्योंकि नारद से विष्णु के साथ विवाह करने को मान लिए थे। वचन भंग की चिंता ने उन्हें मूर्छित कर दिया तब सभी पर्वत यह तथ्य जानकर तुम्हारी खोज में लग गये। उधर सखी सहित तुम सरिता किनारे की एक गुफा में मेरे नाम पर तपस्या करने लगीं। भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को उपवास रहकर तुमने सिकता का शिव लिंग संस्थापित करके पूजन तथा रात्रि जागरण भी किया। तुम्हारे इस कठिन तप – मेरा आसन आन्दोलित कर दिया इससे मुझे तुरन्त तुम्हारे पूजन स्थल पर आना पड़ा। तुम्हारी मांग तथा इच्छा के अनुसार तुमको मुझे अर्धांगिनी में स्वीकार करना पड़ा। तत्पश्चात् मैं तुरन्त कैलाश पर्वत पर चला आया प्रातः बेला में जब तुम पूजन सामग्री नदी में छोड़ रही थीं उसी स हिमालय राज उस स्थान पर पहुंच गये। वे तुम दोनों को देखकर रोते हैं। पूछने लगे-बेटी ! तुम यहां कैसे आ गईं। तब तुमने विष्णु विवाह वाली कथा सुना दी। तुम्हारी टेक की पूर्ति कराते हुए वे तुम्हें घर बुला लाये तब शास्त्र विधि से तुम्हारा मेरे साथ विवाह हुआ। हरितालिका व्रत के नामकरण के सम्बन्ध में भी मैं बता रहा हूं। सखी द्वारा हरी जाने पर इसका नाम (हरत+आलिका) पड़ गया। शंकर जी ने पार्वती से यह भी बताया कि जो स्त्री इस व्रत को परम श्रद्धा से करेगी उसे तुम्हारे समान ही अचल सुहाग मिलेगा।

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