Essay on Spring Season in Hindi- वसंत ऋतु पर निबंध

In this article, we are providing Essay on Spring Season in Hindi. In this essay, you get to know about Spring Season in Hindi. वसंत ऋतु पर निबंध

Essay on Spring Season in Hindi- वसंत ऋतु पर निबंध

भूमिका- परिवर्तन का चक्र निरन्तर गतिशील रहता है। इसका प्रभाव सम्पूर्ण प्रकृति और मानव जीवन पर भी पड़ता है। जिस प्रकार रात और दिन का आवागमन है उसी प्रकार प्रकृति में भी बसन्त, वर्षा, शिशिर, हेमन्त, शरद आदि ऋतुओं का चक्र गतिशील रहता है। इसी परिवर्तन के परिणाम स्वरूप मानव मन में भी अनेक प्रकार के भाव उमड़ने लगते हैं। पेड़-पौधे विभिन्न ऋतुओं में भिन्न-भिन्न साज-सज्जा धारण करते हैं। प्रकृति का परिधान अलग-अलग रूपों में दिखाई पड़ता है। इन ऋतुओं के परिवर्तन के कारण ही किसान अलग-अलग फसलों की बुआई करता है। कभी धरा बर्फ की सफेद चादर ओढ़ लेती है और कभी सुन्दर फूलों के भिन्न-भिन्न रंगों से सजी साड़ी पहनती है। कभी गर्मी के आतप से भी पृथ्वी तपने लगती है और कभी मूसलाधार जलधारों से मल-रहित हो जाती है। इसी प्रकार परिवर्तन का यह चक्र जीवन को भी नवीन उत्साह देता है।

बसन्त का स्वरूप- बसन्त शब्द का अर्थ है चमकता हुआ। इस शब्द की उत्पति संस्कृत के शब्द ‘वस से मानी जाती है जिसका अर्थ है चमकना अर्थात् बसन्त के आगमन पर धरती अथवा सम्पूर्ण प्रकृति अपने यौवन पर आ जाती है और राग-रंग में डूब कर चमकने लगती है। इस समय में शिशिर ऋतु की भयानक शीत लहर अब धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है और शीतल मन्द सुगन्धित हवा चलती है, मौसम सुहावना हो जाता है। कवि के शब्दों में

मादक महकती बासन्ती बयार।

प्रकृति के रूप का नूतन निखार॥

मोहक रस पगे फूलों की बहार।

क्योंकि इस समय न अधिक गर्मी होती है और न अधिक सर्दी ही अत: इस ऋतु में मनुष्य की रुचि काम के लिए तत्पर होती है। उसके मन में उमंग और उत्साह छा जाता है। इसीलिए बसन्त को ऋतुराज भी कहा जाता है। कामदेव अपने बाणों से धरती को पुष्पमय कर देते हैं। इसके उत्सव को बसन्तोत्सव या मदनोत्सव भी कहते हैं। बंगाल, बिहार और आसाम के लोग इसे कला और विद्या की देवी सरस्वती की उपासना का दिन भी मानते हैं और अपने घरों को रंग बिंरंगे फूलों से सजाते हैं।

बसन्त का समय- बसन्त ऋतु का समय शुक्ल पंचमी अर्थात् बसन्त पंचमी से फागुन मास की पूर्णिमा तक माना जाता है। इस प्रकार इस ऋतु का समय लगभग चालीस दिन का होता है। आयुर्वेद शास्त्र में बसन्त ऋतु को ‘स्वास्थप्रद ऋतु कहा जाता है। क्योंकि इस ऋतु में सुखद स्वास्थप्रद हवा बहती है जो अनेक औषधियों का काम करती है। इस ऋतु में लोग प्रात:काल सैर करने के लिए निकल पड़ते हैं।

वास्तव में शिशिर के अत्याचारों से संसार दु:खी संसार है, रूखा-सूखा दीनहीन और नंगा-सा ठिठुरने लगता है, तो प्रकृति बसन्ती चोला पहन नवजीवन का सन्देश देती सामने आ जाती है। सरस बसन्त का आगमन होता है। वैसे तो इस ऋतु का आरम्भ माघ पंचमी से ही हो जाता है पर इसका वास्तविक विकास फाल्गुन में ही होता है।

आरम्भ में बसन्त मानों याचक बन कर वनस्पतियों से पत्तों का दान माँगता है और पेड़ो पर एक भी पता नही रहने देता।

बसन्त ऋतु में प्रकृति- प्रकृति का अणु-अणु नाचने सा लगता है। अगजग की रग-रग में नवरक्त जगमग करने लग जाता है। चारों और उल्हास का सागर उमड़ पड़ता है। सोई हुई कलियां आंखें ज्ञपकने लगती हैं। रंग-बिरंगे फूलों का संसार मधु बरसाने लगता है। मद- मस्त मदुप-मंडली कली-कली से मनमानी करने लग जाती है। दक्षिण की मंद-सुगंध और शीतल पवन नया जागरण, नई-स्फूर्ति और नए रंग में बढ़ने लगती है। चारों ओर खेतों में, खलिह्मनों में हरीतिमा का संसार हिलोरे लेने लगता है। सरसों, फूली नहीं समाती। अलसी आपे से बाहर हो जाती है, अनार और कचनार, गेंदा और गुलाब, मालती और चमेली, भंवरों को चुटकियाँ बजा-बजा कर बुलाने लगती है।

तीतर भीतर ही भीतर फूल कर कुप्पा बन जाता है। मोरों की कल-काहली बजने लगती है। कोयल की कल-कुक समय को भांध देती है। भौर गाते है, तितलियाँ नाचती है। सारा संसार अपार आनन्द में मग्न हो जाता है। आदू अलूवे फूलों के भार से हुक बाते हैं। ठीक है सज्जन सम्पृप्त पाकर अकड़ते नहीं”। इधर इन मधु-मक्खियों के गाने किसी अनजाने मधुर संसार के सम्मार लूटा रहे हैं। कितनी तत्परता, कितनी कर्मठता है। इनमें 1 फूल-फूल से श्रम संव का ही हैं अबु इवें पता नई डि व वि संसार है और কুঠিল। ই৷

कहते हैं-बसन्त में प्रकृति अपनी अनन्त सुन्दरता की निधियों उन्मुक्त हाथों से धरातल पर भिखेर देतीहै। प्रेमियों के प्रेम, पागलों के पागलपन और कवियों की कल्पना को पर लग जाते हैं पर वास्तव में वे तीनों एक ही कोटि के होते हैं।

न आदिक सर्दी न आदिक गर्मी। सुंदरता, सुमनो का संधार अदि गुणों के कारण ही कुसुमाकर, मधु, ऋतुराब आदि नामों से पुकारा जाता है। आम बौराते हैं, उनकी मादकमधुर गन्ध से सारा वातावरण महक उठता है। बेरियों पर लाल-पीले रत्न (बेर) प्रत्येक पथिक के आकर्षण का कारण बन जाते हैं चाहें तो बोरियां भर लो।

बसन्त में प्रति दिन प्रात: भ्रमण एक रसायन माना गया है। इससे आंखों की ज्योति बढ़ती है। बुद्धि विशद होती है। मन की मलिनता जाती रहती है। शरीर में शक्ति और स्फूर्ति का संचार होता है। तभी तो महर्षि चरक ने कहा है-‘बसन्ते भ्रमण पथ्यम्” अर्थात् बसन्त में घूमना पथ्य होता है। इस ऋतु में भोजन में कड़वा और कसैला तत्व अवश्य मिश्रित करना चाहिए। इससे रक्त शुद्ध होता है।

कवि, जिसे प्रकृति का पुरोहित कहा जाता है, इस ऋतु में जब भाव विभोर हो जाता है तो गुनगुनाते लगता है। उसकी वाणी से रस की धाराएं फूट पड़तीं है-

कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में,

क्यारिन में कलित कलीन किलकन्त हैं।

कहे ‘पद्माकर’ परागन में पौनहू में,

पानन में पिक में पलासन पगन्त है।

द्वारे में दिसान में दुनी में देस देसन में,

देखो दीप दीपन में दीपित दिगन्त है।

बीथिन में, ब्रज में नवेलिन में बेलिन में,

बनन में, बागान में बगरयो बसन्त है॥

गीता में भगवान् ने इसे अपना प्रतिनिधि कह कर सम्मानित किया’ऋतूनी कुसुमाकर : अर्थात् ऋतुओं में मैं बसन्त हूं फिर क्यों न इसे ‘ऋतुराज’ कहा जाए।

उपसंहार- बसन्त ऋतु में बसन्त-पंचमी का दिन विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन लोग सरस्वती का पूजन भी करते हैं। प्राचीनकाल में लोग गुरु-कुलों और विद्यालयों में इस दिन उत्सव मनाते थे, यज्ञ आदि होते थे। इस दिन लोग पीले वस्त्र धारण करते हैं तथा घर में भी पीले चावल बनाते हैं। बसन्त-पंचमी के दिन का सम्बन्ध वीर बालक हकीकत राय के बलिदान से भी है जिसने मुसलमान धर्म स्वीकार नहीं किया था और तब उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया था। इसी दिन दशमेश पिता गुरु गोबिन्द सिंह के शिशुओं ने धर्म के लिए अपना जीवन समर्पित किया था। अत: बसंत का आगमन वीरों के त्याग के बसंती चोले का प्रतीक भी माना जाता है। प्रकृति अपने यौवन में आकर मानो उन वीरों को पुष्पांजलि अर्पित करती है। इसी दिन आकाश पतंग प्रेमियों की बहुंरंगी पतंगों से भर जाता है। यह त्यौहार, यह उत्सव मानव को संदेश देता है कि जीवन में पतझड़ ही नहीं रहता है अपितु सुख का बसंत भी आता है जब दु:ख दारिद्रय, मिट जाते है। मानव समाज इससे प्रेरित होकर इस वंसुधरा को सुख शान्ति, समृद्धि के पुष्पों से पुष्पित करने का प्रयास करे तो जीवन खिल उठेगा, सुगंधित हो जाएगा।

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