Essay on Tree Plantation in Hindi- वृक्षारोपण पर निबंध

In this article, we are providing Essay on Tree Plantation in Hindi. In this essay, you get to know about the importance of trees, benefits of the tree, why the trees are important for us. वृक्षारोपण पर निबंध- वृक्षों का महत्व & वृक्षों के लाभ

Essay on Tree Plantation in Hindi- वृक्षारोपण पर निबंध

भूमिका- आरम्भ से ही मानव का प्रकृति से प्रेम रहा है। घर में रह कर मनुष्य इतना शान्त अनुभव नहीं करता जितना कि प्रकृति की सुरम्य भूमि में विचरण कर के आनन्द लाभ प्राप्त करता है। यही कारण है कि मनुष्य कलकल करती हुई नदी के तटों पर घूमता है। पर्वतों के उतुंग श्रृंग पर विचरण करता हुआ शान्ति पाता है। थका-हारा पथिक गर्मी से व्याकुल होकर वृक्ष की शीतल छाया में सुख और शान्ति पाता है। इन सब बातों का तात्पर्य यही है कि मनुष्य का प्रकृति से सहज अनुराग है। प्रकृति का सुन्दर वैभव जितना भारत में बिखरा हुआ है उतना शायद किसी अन्य देश में नहीं। भारत वसुन्धरा को सुजला, सुफला, शस्य श्यामला और मलयज शीतला इस लिए कहा जाता है कि भारत वसुन्धरा वन सम्पदा के वैभव से पूरिपूर्ण है : अर्थात् यहां वृक्षों की संख्या घनी थी। 20वीं शताब्दी तक अर्थात् सन् 1901, 1902 तक भारत में वृक्ष बहुत अधिक थे और ये भारत की सम्पति माने जाते थे।

प्राचीन परम्परा में वृक्षों का महत्व ( Importance of tree in Hindi)– वेदों और उपनिषदों में लिखा है कि फलदार और हरे वृक्ष को कभी न काटो क्योंकि फलदार और हरे वृक्ष को काटने वाले व्यक्ति का गोत्र नष्ट होता है। शतपथ ब्राह्मण में लिखा है कि हे मनुष्यो, जिस तरह तुम अपना वंश बढ़ाते हो उसी तरह वृक्षों को भी बढ़ाओ। वंश से तुम्हारा नाम होता है और वृक्ष से देश का नाम होता है। इस तरह वैदिक साहित्य में और पुराणों में वृक्ष के महत्व पर बहुत अधिक लिखा गया है। जिस तरह भारत में देवी-देवताओं की पूजा होती थी, उसी तरह पुराने समय में वृक्षों की भी पूजा होती थी। तुलसी की पूजा से तो कोई भी भारतीय अपिरिचत नहीं है। जिस तरह भारत में भगवान् की आराधना होती है, उसी तरह तुलसी की भी आराधना होती है। पीपल और वट वृक्ष की पूजा हमारे यहां विशेष महत्व रखती है। कहा जाता है कि इसमें ब्रह्मा निवास करता है। इसी तरह केला, आंवला आदि अनेक वृक्षों की पूजा का विधान है। बेर और विल्वपत्री तो भगवान् शंकर पर चढ़ाते है। इस से यह प्रमाणित होता है कि देवी-देवताओं की तरह ही पुराने समय में वृक्षों की पूजा भी होती थी। वनों का महत्व केवल लकड़ी और दूसरी आवश्यक वस्तुओं के साधन होने के कारण ही नहीं है। वनों के अनेक अन्य लाभ भी हैं। जंगलों की भूमि जो वनस्पति की उपस्थिति के कारण बिछी हुई दरी के समान होती है पानी को संभाल लेती है। वृक्षों की जड़े भूमि को जकड़ कर रखती हैं ताकि यह आसानी से बह न सके। इस प्रकार वन जल को सुरक्षित रखते हैं। ये भूमि क्षरण नहीं होने देते और बाढ़ों को रोकते हैं। ये हमारे जंगली जानवरों को आश्रय और सुरक्षा प्रदान करते हैं। ये वायुमण्डल को शुद्ध करते हैं। तात्पर्य यह है कि कार्बनडाइआक्साइड की मात्रा घटाते हैं। ये वर्षा का कारण भी बनते हैं जिसके फलस्वरूप वातावरण नये पौधों के उगने के लिए अनुकूल होता है। इसके अतिरिक्त अनेक लोग हर वर्ष मन बहलाव के लिए बने में जाते हैं। इसलिए वन हमारे बड़े महत्वपूर्ण प्राकृतिक साधन हैं।

वृक्ष विनाश और हानियाँ- यह अन्तत: दु:ख का विषय है कि पिछले आठ, ने दशकों में जितना वन सम्पदा का नाश हुआ उतना पहले कभी नहीं हुआ। पहला कारण व जनसंख्या का बढ़ना। जहां आबादी इतनी तेज़ी से बढ़ रही है, जहां जन्मदर अधिक हो मृत्युदर कम हो वहां पैदा हुए लोगों के लिए आवास की ज़रूरत है और आवास के लिए भूमि चाहिए और भूमि वृक्ष काट कर ही बनने लगी। दूसरा कारण यह था कि उद्योगधन्ध का फैलाव बहुत तीव्र गति से हुआ और बड़े स्थानों को घेर कर फैक्टरियां और कारखाने खुलने लगे ; उनकी भूमि के लिए भी वृक्ष कटने लगे। तीसरा कारण जनसंख्या को खाने के लिए भोजन चाहिए, भोजन के लिए खेती चाहिए. खेती के लिए भी वृक्ष कटने लगे इस तरह तीन कारणों से वृक्ष अधिक संख्या में काटे गए और वे, वृक्ष इतनी बे-रहमी से काटे गए कि अन्दाज़ा नहीं लगाया जा सकता।

वृक्ष विनाश से हमें हानियां बहुत हुई। पहले जो भूमि प्रकृति की दृष्टि से उर्वरा थी। अंब वही भूमि वृक्षों के न होने से बंजर सी दिखाई देने लगी। दूसरी बात यह कि वृक्ष हमें ऋतु के अनुसार स्वास्थ्य प्रदान करते थे अर्थात् अधिक गर्मी, अधिक ठण्ड और वर्षा में हमारी सहायता करते थे। वृक्ष ऑधी और बाढ़ को रोकते हैं। ऋतुओं का चक्र बिल्कुल ठीक चलता था पर अब ऋतुओं का चक्र बदल गया है। वर्षा नहीं होती तो सूखा ही पड़ जाता है, होती है तो इतनी अधिक कि बाढ़ आ जाती है। भूमि क्षरण होने लगता है। तीसरी हानि यह है कि वृक्ष जो हमें जलवायु के प्रदूषण से बचाते थे, शुद्ध जलवायु देते थे, ठीक तरह से आक्सीजन देते थे, के न होने से प्रदूषण समस्या पैदा हो गई है। शुद्ध जलवायु मिलना बन्द हो गया है, शुद्ध आक्सीजन भी नहीं मिलती। इस तरह वृक्षों के अधिक कटने से बहतु हानियां हो रही हैं।

वृक्षारोपण की योजना का प्रारम्भ- भारत के स्वतन्त्र होने के पश्चात् देश की जलवायु का अध्ययन करने के लिए इसके ऋतु चक्र का अध्ययन करने के लिए भारत सरकार ने वैज्ञानिकों की एक समिति बुलाई। उन्होंने यही विचार दिया कि भारत में जो अधिक सूखा होता है या अधिक वर्षा होती है या भारत की जलवायु अधिक प्रदूषित हो गयी है, देश में नए-नए रोग पैदा हो रहे हैं इसका असली कारण है वृक्षों का बुरी तरह से कटना। अगर देश में वृक्ष फिर से न लगाए गए तो देश को बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। भारतीय वैज्ञानिकों की इस रिपोर्ट को देख कर भारत सरकार ने वृक्षारोपण और वन रक्षा का काम फिर से हाथ में ले लिया।

1950 में भारत सरकार ने यह योजना बनाई कि कोई भी वृक्षों को न काटे। फलदार और हरे वृक्षों को काटने की मनाही कर दी गई। बल्कि यह कहा गया कि अधिक से अधिक वृक्ष उगाओ। इस तरह भारत सरकार की वृक्ष उगाने की योजना 1950 से आरम्भ हुई। पर यह योजना विशेष उपयोगी सिद्ध नहीं हुई। पेड़ कम ही उगाये जाते थे। जो उगाये भी जाते थे उन्हें ठीक तरह पानी नहीं दिया जाता था। इसलिए वे सूख जाते थे। मतलब यह कि यह योजना केवल फाइलों तक रह गई, इसका विकास आगे नहीं हुआ। स्वर्गीय श्री संजय गांधी जब युवा कांग्रेस के सामने 5 सूत्री कार्यक्रम लेकर आए उसमें एक कार्यक्रम यह भी था कि अधिक वृक्ष लगाओ। तब से वृक्ष लगाने के काम में तेज़ी आई। फिर उतरी राज्यों की सरकारों और भारत सरकार ने यह विधेयक पास कर दिया कि बिना आज्ञा के जंगल न काटे जाएं। जहां तक हो सके अधिक से अधिक वृक्ष लगाए जाएं और उनकी रक्षा की जाए सन् 1952 में नई वन नीति के अनुसार वनों की कटाई रोकने नए वन लगाने, चारागाहों का विस्तार उद्योगों के लिए लकड़ी तथा निजी वनों पर नियंत्रण लगाने का निश्चय किया गया। नवम्बर 1976 में केन्द्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिए कि केन्द्र की अनुमति के बिना किसी को भी वृक्षों को काटने की आज्ञा न दी जाए। उत्तर प्रदेश के गढ़वाल ज़िले में जब वनों की नीलामी होती थी और वनों के ठेकेदार जंगलों को काटते थे तो इस दिशा में सुन्दर लाल बहुगणा ने नेतृत्व में वहां की स्त्रियों ने वृक्षों पर चिपककर मर जाने की प्रतिज्ञा कर चिपको आन्दोलन चलाया जिससे वहां के वनों का विनाश बचा। इस विचार और आन्दोलन के जनक चण्डीप्रसाद थे।

वृक्षों के लाभ (Benefits of trees in Hindi)- वन तो हमारे प्राकृतिक संसाधन और सम्पति हैं। पृथ्वी में संतुलित प्राकृतिक जीवन इनके बिना कदापि संभव नहीं हो सकता है। एक वृक्ष जो काटा जाता है उसकी क्षतिपूर्ति 10-15 वर्ष में पूरी होती है यदि वृक्षारोपण किया जाए। अब भारत में सघन वन केवल दस प्रतिशत रह गए हैं जो चिन्ता का कारण हैं। वृक्षों के एक नहीं अनेक लाभ हैं।

(1) वृक्ष हमें वायु के प्रदूषण से बचाते हैं और शुद्ध वायु देते हैं।

(2) वृक्षों से शुद्ध आक्सीजन मिलती है।

(3) वृक्षों के कारण ऋतुओं का चक्र ठीक तरह से चलता है।

(4) वृक्ष भूमिक्षरण से बचाते हैं क्योकि वर्षा का तेज़ पानी वृक्ष सहन कर लेते हैं।

(5) वृक्ष अधिक गर्मी, अधिक सर्दी और अधिक बरसात से हमारी रक्षा करते हैं।

(6) बहुत से असाध्य रोग भी वृक्षों की जलवायु से ठीक हो जाते हैं।

(7) वृक्षों से बहुत-सी औषधियाँ तैयार होती हैं।

(8) वृक्षों के फल खाने के काम आते हैं, जैसे आम, माल्टा, केला, सेब, संगतरा इत्यादि।

(9) वृक्षों का वातावरण जलवायु को सुगन्धित करता है जैसे चम्पा, चमेली, गुलाब आदि।

(10) बहुत से वृक्षों से तेल भी निकलता है जैसे महुए का तेल, गुलाब जल आदि।

इस तरह से मुख्य वृक्षों के लाभ ये हैं। वैसे और भी बहुत से लाभ हैं। हरे-भरे वृक्ष आंखों को ठंडक पहुंचाते हैं। प्रकृति में हरे-भरे वृक्ष ऐसे माध्यम है जो सूर्य की ऊर्जा को ग्रहण करते हैं। पौधों के हरे पतों में जो हरा रंग पर्णहरित-होता है उसके द्वारा पौधे सूर्य की ऊर्जा को ग्रहण करते हैं और उससे अपना भोजन बनाते हैं। इस प्रकार पौधे भोजन श्रृंखला की पहली सीढ़ी हैं।

उपसंहार- वन सम्पदा की रक्षा होनी ही चाहिए क्योंकि अगर वृक्ष अधिक कट गए तो भारत देश नीरस हो जाएगा। इसलिए वृक्षों की रक्षा आवश्यक है। प्रसन्नता की बात है कि भारत सरकार इस ओर ध्यान दे रही है। आशा ही नहीं हमें विश्वास है कि वे दिन दूर नहीं जब भारत में फिर से वृक्ष लगेगे, बड़े होंगे, वृक्षों की हरियाली से भारत सरस होगा। बासन्तिक वैभव बिखरेगा और लहलहाएगा। पर इस काम के लिए अभी बहुत परिश्रम की आवश्यकता है। वृक्ष सूखने पर भी उपयोगी होते हैं। सूखे वृक्षों की लकड़ी जलाने के काम आती है। वृक्षों की लकड़ी से फर्नीचर भी बनता है। बीस सूत्री कार्यक्रम के अन्तर्गत भी वृक्ष-रोपण को महत्व दिया गया है। वास्तव में आज विश्व के सामने जो वायुमण्डल के प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो गई है उस समस्या का सबसे बड़ा हल अधिक से अधिक संख्या में वृक्षारोपण ही हो सकता है।

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