हिंदी कहावतें | लोकोक्तियाँ | Proverbs | Kahawat in Hindi

Kahawat in Hindi कहावत वाक्यांश न होकर पूरा वाक्य होती है। हर कहावत के पीछे कोई-न-कोई घटना जुड़ी रहती है। कहावतों के प्रयोग से भाषा में अर्थ गाम्भीर्य और सौन्दर्य की वृद्धि होती है।

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Hindi Kahawat with meaning | हिंदी कहावतें और उनके अर्थ | उनका प्रयोग

आग लगने पर कुआँ खोदना संकट आने पर बचने का उपाय करना । श्याम साल – भर मौज मस्ती करता रहा। जब परीक्षा निकट आई तो पढ़ने लगा। इसी को कहते हैं- आग लगने पर कुआँ खोदना ।

अंधी पीसे कुत्ता खाय परिश्रम कोई करे फल कोई पाए। मजदूर दिन-रात खटता है, लाभ मालिक को मिलता है। इसी को कहते हैं अंधी पीसे कुत्ता खाय।

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हिंदी कहावतें 50 | 50 Kahawatein in Hindi

 

अपनी करनी पार उतरनी- अपना कर्तव्य फलदायक होता है।

अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत – काम बिगड़ने पर पछताने से कोई – लाभ नहीं है।

आँख के अंधे- नाम नयन सुख गुण के विपरीत नाम ।

अंधे के हाथ बटेर लगना – संयोग से उपलब्धि मिलना । केशव का परीक्षा पास करना सचमुच अंधे के हाथ बटेर लगना ही है।

अति भक्ति चोर का लक्षण- अधिक भक्ति धोखा देना है।

आम के आम गुठली के दाम- दोहरा लाभ ।

उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे – अपना दोष दूसरों पर थोपना ।

उधो का लेना न माधो का देना- किसी से कोई मतलब नहीं।

ऊँची दुकान फीकी पकवान – वास्तविकता कम, दिखावा अधिक।

ऊँट के मुँह में जीरा- आवश्यकता से बहुत कम ।

एक अनार सौ बीमार- कम वस्तु के अधिक चाहने वाले ।

एक तो करेला दूजा नीम चढ़ा – बुरे का और बुरा होना ।

एक पंथ दो काज- दोहरा लाभ ।

काबुल में क्या गधे नहीं होते – अच्छे-बुरे सभी जगह हैं।

काला अक्षर भैंस बराबर– निरक्षर ।

कोयले की दलाली में हाथ काला – बुरे काम का कुछ-न-कुछ फल मिलता है।

खोदा पहाड़ निकली चुहिया – परिश्रम अधिक प्राप्ति कम।

खाने के दाँत और दिखाने के और- कथनी करनी में अन्तर ।

खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे – असमर्थ गुस्सा ।

गये नमाज छुड़ाने रोजा गले पड़ी – संकट से मुक्ति के बदले और संकट पड़ना।

गोद में लड़का नगर में ढिढोरा – पास की वस्तु दूर-दूर खोजना।

घर का भेदी लंका ढाहे- आपस की फूट बुरी होती है ।

चार दिन की चाँदनी फिर अंधेरी रात- सुख के दिन बहुत कम होते हैं।

चोर की दाढ़ी में तिनका- अपराधी सदैव डरा रहता है।

चौबेजी गए छब्बे बनने बन गए दुबे- लाभ के बदले अधिक हानि ।

जल में रहकर मगर से बैर – अधिकारी को शत्रु बनाना ।

जितनी लम्बी चादर हो उतना ही पैर फैलाओ – आय से अधिक व्यय न करो।

जिस थाली में खाना उसी में छेद करना- आश्रयदाता की निन्दा करना ।

जिसकी लाठी उसकी भैंस – जिसमें ताकत है उसी का प्रभाव रहता है।

टेढ़ी अंगुली से घी निकलता है– सख्ती से काम बनता है।

धोबी का कुत्ता न घर का न घाट – किसी काम का नहीं ।

नाच न आवे आँगन टेढ़ा- अपना दोष न देखकर दूसरे का दोष देखना ।

न नौ मन होगा न राधा नाचेगी – असम्भव शर्त ।

नीम हकीम खतरे जान– अल्प ज्ञान हानिकार होता है।

नौ की लकड़ी नब्बे खर्च- लाभ कम व्यय अधिक।

निन्यानबे का चक्कर- दिन रात अर्थ संग्रह करना ।

बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी – मरने वाली की चिन्ता बेकार है ।

मन चंगा तो कठौती में गंगा- मन की शुद्धता सबसे बड़ी शुद्धता है।

मियाँ की जूती मियाँ का सिर- अपनी वस्तु से अपनी हानि ।

रस्सी जल गई ऐंठन न गई- सब नष्ट होने पर भी घमंड का न जाना।

साँप मरे लाठी भी न टूटे – बिना हानि के लाभ ।

होनहार बिरवान के होत चीकने पात– बचपन से ही प्रतिभा-क्षमता का परिचय मिलने लगता है।

हाथ कंगन को आरसी क्या – प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण क्या?

भइ गति साँप छछूंदर केरी – असमंजस में पड़ना।

बिल्ली के गले में रस्सी बाँधना – कठिन काम करना ।

पाँचों अगुलियाँ घी में- लाभ ही लाभ ।

जो गरजते हैं वे बरसते नहीं है – काम करने वाला शोर-शराबा नहीं करता है।

आसमान से गिरा खजूर पर अटका- बड़ी विपत्ती से छुटकारा मिला कि छोटी विपत्ति सामने आ गई।

झूठे के पाँव नहीं होते हैं- अफवाह जल्द फैलती है।

गुड़ दिए मरे तो जहर क्यों दें– सहजता से काम बने तो कठिनाई उठाना व्यर्थ है।

 

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