स्वास्थ्य पर निबंध- Essay on Health in Hindi

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स्वास्थ्य पर निबंध- Essay on Health in Hindi

 

( Essay-1 ) Health Essay in Hindi

स्वास्थ्य मनुष्य की सबसे बड़ी संपत्ति मानी जाती है। मानव शरीर एक मशीन की भाँति कार्य करता है। मस्तिष्क, हृदय, आँखें, कान, नाक, फेफड़े, गुर्दे आदि इस मानव रूपी मशीन के पुर्जे हैं। यदि इनमें कोई खराबी आ जाये तो मानव के शरीर रूपी मशीन सुचारू रूप से कार्य करना बंद कर देती है। तब कहा जाता है कि अमुक व्यक्ति ‘अस्वस्थ’ है अथवा ‘बीमार’ है। ऐसा व्यक्ति वैद्य, डाक्टर या हकीम के पास जाता है तथा दवा लेता है। इससे उसका शरीर पहले की भाँति सुचारू रूप से कार्य करना आरम्भ कर देता है तथा मनुष्य फिर स्वस्थ हो जाता है। विद्वान लोगों ने सदैव सोना, चांदी, रुपया पैसा को दौलत नहीं माना है बल्कि उनकी दृष्टि में मनुष्य की सच्ची दौलत उसका स्वास्थ्य होता है।

स्वस्थ शरीर ही स्वस्थ मस्तिष्क का आधार है। यदि किसी व्यक्ति का मस्तिष्क स्वस्थ है तो उसके विचार एवं कार्य भी स्वस्थ होंगे। अस्वस्थ मनुष्य का जीवन अत्यंत कष्टमय हो जाता है। उसकी किसी चीज में रुचि नहीं रहती है। उसमें किसी कार्य करने की क्षमता नहीं रहती है। इसके विपरीत एक स्वस्थ व्यक्ति अपने जीवन का पूर्ण आनन्द लेता है। वह अपने कार्यों को भी पूर्ण रुचि एवं सामर्थ्य के अनुसार पूरा करता है। प्रकृति ने स्वस्थ रहने के कुछ नियम भी बनाये हैं। जब-जब मनुष्य इन नियमों को तोड़ता है तब-तब उसे बीमारियाँ लग जाती हैं तथा वह अस्वस्थता के पाप से पीड़ित हो जाता है। अपने शरीर की अच्छी तरह सफाई,शुद्ध, ताजा एवं पौष्टिक भोजन, शुद्ध पेयजल, अपने आवास एवं आस-पास की अच्छी तरह सफाई, एक नियमित एवं अनुशासित दिनचर्या स्वस्थ रहने का मूलमंत्र हैं। अधिकतर रोग इन नियमों का पालन न करने के कारण ही उत्पन्न होते हैं।

अतः हमें इन नियमों का पालन करते हुये स्वस्थ रहने का प्रयास करना चाहिये क्योंकि स्वस्थ जीवन खुशियों से भरा होता है। किसी देश की प्रगति में भी स्वस्थ नागरिकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसीलिये लगभग सभी देश अपने नागरिकों की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं के प्रति अत्यंत सजग रहते हैं तथा उन्हें स्वास्थ्य की बेहतर सुविधायें प्रदान करने का प्रयास करते हैं। भारतवर्ष में भी सरकार हर साल करोड़ों रुपया स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय कर देती है। वास्तव में स्वस्थ जीवन ईश्वर का सबसे अनमोल वरदान होता है।

 

( Essay-2 ) Swasthya | Swasth Par Nibandh | Health Essay in Hindi

परिभाषा

जिसका शरीर और मन अपने काम को तत्परता से करने के बावजूद थके-उकताए नहीं, बल्कि उसमें इसके बाद भी इतनी शक्ति बची रहे कि वह स्वयं प्रसन्न हो और प्रसन्नतापूर्वक दूसरे असमर्थों की सहायता कर सके, उनके काम निबटाने में हाथ बँटा सके—उसे ही हम कहेंगे ‘स्वस्थ’ और उसके इस सामर्थ्य को कहा जाएगा ‘स्वास्थ्य’ ।

भरे बोरे की तरह मोटा हो जाना अच्छे स्वास्थ्य की निशानी नहीं है, न ऐसी दुर्बलता ही, जिसे पछुआ हवा का एक झोंका पीपल के सूखे पत्ते की तरह उड़ाकर कहीं ले जाए। एक कोस चले तो हॉफने लगे, घंटेभर पढ़े, तो सिर चक्कर खा जाए; अपना मामूली सामान दस कदम ढोने में कुली के बिना काम न चले-उसे हम स्वस्थ कदापि न कहेंगे।

महत्ता

स्वास्थ्य मनुष्य की प्रथम संपत्ति है—ऐसा एमर्सन ने कहा है। वह ईश्वर के लुभावने वरदानों में सर्वोत्तम है। ऐसा स्वास्थ्य अमीरों के लिए वरदान है, गरीबों के लिए संपत्ति । ऐसे स्वास्थ्य को किसी भी महँगे मूल्य पर खरीदा नहीं जा सकता। इसके बिना संसार का भोग संभव नहीं है। जॉनसन के शब्दों में- “O health! health! the blessing of the rich! the riches of the poor! Who can buy thee at too dear a rate, since there is no enjoying this world without it?”

पत्थर-सी जिसकी मांसपेशियाँ हों, फौलाद-सी भुजाएँ हों, नस-नस में जिसके बिजली की तरह लहर दौड़ती हो, उसे हम स्वस्थ कहेंगे। वह चाहे तो अपनी पुष्ट भुजाओं से पर्वत को झुका दे, सागर की उन्मत ऊर्मियों को कँपा दे तथा पागल प्रभंजन की गति मोड़ दे; किंतु रुग्ण व्यक्ति अपनी ही देह पर भनभनाती मक्खियाँ तक नहीं उड़ा सकता, अन्य बातें तो दूर रहें।

स्वस्थ व्यक्ति की भुजाएँ वटवृक्ष की तरह निराश्रितों को आश्रय देती हैं, उनके विचार सघन घन की तरह फैलकर सुधा-सिंचन करते हैं; किंतु जिसके शरीर के ऊपर अस्वास्थ्य की डरावनी छाया मँडराने लगती हो, उसका जीवन उस पतले धागे पर टँगा रहता है, जिसे मृत्युदेवता जब चाहें तोड़ डालें। स्वस्थ व्यक्ति के नयनों में स्वप्न नाचते रहते हैं, उसके अंग-अंग में तरुणाई जँभाई लेती रहती है। किंतु, जो विटामिन की गोलियों से स्वास्थ्य उधार माँगते फिरते हैं तथा गालों पर ‘रूज’ लगाकर लाली की भ्रांति फैलाना चाहते हैं, दूसरों को भले धोखा दे लें, अपने को धोखा नहीं दे सकते। स्वास्थ्य की लाली तो खिलते गुलाब की लाली है, उसकी चमक तो सूरज की कुँआरी किरणों की चमक है।

अस्वस्थ का जीवन भार बन जाता है। छप्पन भोग से भरी थाली कारतूस की गोली मालूम पड़ती है, कश्मीर की सुनहली घाटी मृत्यु की तलहटी-सी प्रतीत होती है, संगीत के सुंदर सुर कर्णकटु और मन मगन करनेवाली किसी की खुली हँसी मन की कचोट हो उठती है।

अतः, यदि हम पृथ्वी का सारा सुख भोगना चाहते हैं, यदि हम राष्ट्र और विश्व की उन्नति करना चाहते हैं, यदि हम धर्मसाधन करना चाहते हैं, तो स्वास्थ्य-रक्षा के नियमों का पालन करें। महर्षि चरक ने लिखा है-स्वास्थ्य रूपी घर को ठीक रखने के तीन पाए हैं— उचित आहार, पूर्ण निद्रा और ब्रह्मचर्य। फ्रेंकलिन की उक्ति विख्यात है कि सबेरे सोना और सबेरे जागना मनुष्य को स्वस्थ, संपन्न एवं बुद्धिमान बनाता है । शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अति का वर्जन करना ही चाहिए— अतिभोजन, अतिजागरण, अतिशयन, अतिविलास, अतिश्रम इत्यादि । महात्मा गाँधी ने लिखा है – जो जीभ के स्वाद में पड़ा, उसका स्वास्थ्य अवश्य नष्ट हुआ। बैंडेल फिलिप्स का कथन है— स्वास्थ्य परिश्रम में वास करता है और उस तक पहुँचने का, श्रम को छोड़कर अन्य कोई मार्ग नहीं।

निष्कर्ष

अच्छा स्वास्थ्य सर्वोत्तम धन है (Health is wealth) । उसे किसी मूल्य पर खरीदा नहीं जा सकता। जीवन का स्वाद तभी मिलता है, जब मनुष्य स्वस्थ रहे। स्वस्थ के लिए यह पृथ्वी स्वर्ग है, अस्वस्थ के लिए नरक — रौरव नरक । स्वस्थ शरीर ही धर्म का साधन है, ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ – कविकुलगुरु कालिदास ने ठीक ही कहा है। स्वस्थ मानव ही सृष्टि का सर्वोत्तम श्रृंगार है। अतः, जिस प्रकार हो, स्वस्थ रहने की पूरी चेष्टा करनी चाहिए। हम भी अपने ऋषि के स्वर में स्वर मिलाकर स्वीकार करें— ‘धर्मार्थकाममोक्षाणामारोग्यं मूलमुत्तमम्’, अर्थात् धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों का उत्तम आधार सुंदर स्वास्थ्य ही है।

 

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