Essay on Dussehra in Hindi- दशहरा पर निबंध

In this article, we are providing an essay on Dussehra in Hindi. In this essay, you get to know- why we celebrate Dussehra and history of Republic Day in Hindi. इस निबंध में आपको पता लगेगा की हम दशहरा कब, क्यों और कैसे मानते है।

Essay on Dussehra in Hindi- दशहरा पर निबंध

आ गया एयारा दशहरा।

छा गया उत्साह जलII

मातृ-पूजा-शक्ति-पूजा।

वीर पूजा है विमल॥

भूमिका-  हमारी संस्कृति गंगा की पावन धारा के समान है, जो इतिहास के अनेक मोड़ों को पार करती निरंतर आगे बढ़ती है तथा अपनी पवित्रता को असुअन रक्ति है’ विभिन प्रकार के तीज-त्यौहार, उत्सव और पर्व संस्कृत के अभिन्न अंग होते है जिनके मध्यम से हम अपने अतीत को देखते हैं तथा उससे संदेश ग्रहण कर वर्तमान और भविष्य को मंगलमय तथा सुखकर बनाने का संकल्प करते हैं। होली, दीपावली, दशहरा इस प्रकार के प्रमुख त्यौहार हैं। इन त्यौहारों से प्रकृति भी जुड़ी रहती है तथा इतिहास भी। यह त्यौहार संस्कृति का गुणगान भी करते हैं और जीवन को उल्लासमय भी बनाते हैं। इनका धार्मिक महत्व भी होता है और सामाजिक पक्ष भी। 

पृष्ठ भूमि– विजय दशमी इसी प्रकार का शौर्य भरा पर्व है जो जन-जागृति का देिश देता है। विजयदशमी का पावन पर्व देवासुर संग्राम में देवी की विजय का जयघोष करता हुआ प्रति वर्ष ऋतु के अन्त में अश्विन शुक्ल दशमी को मनाया जाता है। इस समय सुहावनी शरद ऋतु का आगमन होता है तथा चारों ओर स्वच्छ वातावरण दिखाई देता है। धरा अपने शरीर पर हरे रंग का परिधान धारण करती है, सरिता का जल प्रवाह, वर्षा ऋतु के बाद अब मन्थर गति से कल-कल करता हुआ बहता है, सरोवर तथा प्रकृति की गोद में रंग-बिरंगे पुष्प खिल उठते हैं और उन पर मधु के लोभी भ्रमर गुंजार करने लगते हैं। आकाश में उमड़ने वाले बादल अकस्मात छिप जाते हैं तथा नील-नभ तारक पंक्तियों में द्युतिमान हो उठता है।

विजयदशमी से अनेक पौराणिक प्रसंग जुड़े हुए हैं, अनेक धार्मिक कथाओं से इसका सम्बन्ध जोड़ा जाता है। इस पावन पर्व से जुड़ा हुआ एक प्रसंग मर्यादा पुरुषोत्तम राम की अत्याचारी रावण पर विजय से सम्बन्धित है। राम ने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए राज-पाट, ऐश्वर्य-वैभव आदि को तृणवत् ठुकरा दिया तथा चौदह वर्ष दण्डकारण्य में बिताने स्वीकार कर लिए। उनके साथ, उनका अनुगमन करके उनकी पत्नी सीता तथा उनका प्रिय अनुज लक्ष्मण भी साथ गए। दुष्ट मदान्ध अत्याचारी रावण ने सीता का अपहरण किया और राम ने रावण से युद्ध करके उसे पराजित कर दिया। रावण के दस सिरों का हनन होने के कारण लोग इसे दशहरा भी कहते हैं। इस प्रसंग की स्मृति में हमारे देश के गाँवों और नगरों में दशह के एक सप्ताह पूर्व रामलीला का आयोजन किया जाता है तथा भगवान् राम के जीवन से सम्बन्धित अनेक घटनाओं का मंचन भी किया जाता है।

शाक्तों का विश्वास है कि महिषासुर नामक राक्षस के अत्याचारों से देव और मनुज त्रस्त हो गये थे। देवताओं ने महाशक्ति की उपासना की तथा शक्ति ने प्रसन्न होकर अपने अनन्त पराक्रम से शुभ और निशुभ तथा महिषासुर जैसे राक्षसों का वध किया।

एक पौराणिक प्रसंग के अनुसार राजा रघु ने यज्ञ किया और उसमें विद्धानों तथा ब्राह्मणों को अपार धन दिया गया। यज्ञ के बाद कौत्स नामक विद्वान् ब्राह्मण रघु के पास आया और उनसे चौदह करोड़ स्वर्ण मुद्राओं की माँग की। राजा रघु ने इतना धन प्राप्त करने के लिए कुबेर पर आक्रमण करने का निश्चय किया। भयभीत कुबेर ने रात्रि में ही शमी वृक्ष के ऊपर असंख्य मुद्राओं की वर्षा कर दी। राजा रघु ने कौत्स को यह स्वर्ण मुद्राएं गुरु दक्षिणा में देने के लिए सौंप दी।

बंगाल में इस पर्व का विशेष महत्व है और बंगाली इसे शक्ति-पूजा के रूप में मनाते हैं। उनका विश्वास है कि राम रावण युद्ध में राम ने महाशक्ति को प्रसन्न करने के लिए उनकी उपासना की तथा पूजा के साथ 108 नील कमल उन्हें चढ़ाने का संकल्प किया। 107 नील कमल चढ़ाने तक पूजा निर्विघ्न समाप्त हुई, देवी ने राम की परीक्षा लेने के लिए अंतिम कमल हर लिया। राम को स्मरण हुआ कि माँ उन्हें राजीव-नयन कहती थी। अत: उन्होंने पूजा में कमल के स्थान पर अपनी एक ऑख समर्पित करने का निश्चय किया लेकिन उसी समय शक्ति ने प्रसन्न होकर उन्हें विजय श्री वरण करने का वरदान दिया।

विजय दशमी ऋतु चक्र से सम्बन्धित है। प्राचीन काल में व्यापारी, यात्री, सेना तथा साधु वर्षा ऋतु में एक स्थान से दूसरे स्थान तक सुगमता से नहीं जा सकते थे लेकिन इस समय तक वर्षा समाप्त हो जाती है और इस दिन को शुभ समझ कर वे यात्रा का श्रीगणेश करते थे। क्षत्रिय तथा सैनिक लोग शस्त्र-पूजन कर शत्रु पर चढ़ाई करते थे।

किसानों की दृष्टि में भी यह त्यौहार विशेष महत्व रखता है। हाड़ी की फसल बोने से पूर्व हिन्दू नारियाँ जौ बोती हैं तथा विजयदशमी के दिन मौली के धागे के साथ अंकुरित जाँ को पुत्र या पति की टोपी में रखती हैं। शरद ऋतु का यह मौसम किसानों के हृदय में उल्लास का संचरण करता है। तुलसी दास जी के शब्दों में-

सरिता सर निर्मल जल सोहा।

सन्त हदय जस गत मद-मोहा।

इस प्रकार इस त्यौहार की पृष्ठ-भूमि में अनेक पौराणिक प्रसंग तथा आस्था और विश्वास है। इस सन्दर्भ में निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि विजयदशमी का पर्व असत्य पर सत्य, पाप पर पुण्य की विजय का प्रतीक है। यह त्यौहार हमारे अन्त:करण में गौरव, उत्साह और आत्मविश्वास का संचार करता है। नवस्फूर्ति और नवजीवन की तरंगे हृदय में उठने लगती है-

त्यौहार मनाने की विधि- इस शौर्य पर्व को मनाने की अनेक विधियां प्रचलित हैं। कुछ लोग दशहरे के पूर्व रामलीला का आयोजन करते हैं और इस दिन रावण के पुतले जलाते हैं। रावण के साथ मेघनाथ तथा कुम्भकर्ण के पुतले बनाकर उन्हें आतिशबाजी तथा पटाखों से भर देते हैं। राम का अभिनय करने वाला पात्र उन पर तीर चलाता है और वह पुतले विस्फोटक ध्वनि के साथ फट कर जल उठते हैं। इस दृश्य को देखने के लिए जन-समूह उमड़ पड़ता है।

दुर्गा के उपासक इससे पूर्व की नवरात्रि तक दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। कुछ लोग नौ दिन तक व्रत भी रखते हैं तथा दशहरे के दिन दुर्गा पूजा के साथ व्रत की समाप्ति करते हैं।

महाराजा रघु से सम्बन्धित प्रसंग पर विश्वास करने वाले लोग इस दिन शमी वृक्ष की पूजा करते हैं। क्षत्रिय लोग अपने अस्त्र-शस्रों को चमकाते तथा युद्ध के लिए उद्यत होते हैं। गाँवों में इस दिन बड़े-बड़े दंगल का आयोजन भी किया जाता है। भारत में कुल्लू का दशहरा और मैसूर का दशहरा विशेष रूप से प्रसिद्ध है। मैसूर में इस अवसर पर जो सुन्दर सवारी की झांकियाँ होती हैं उन्हें देखने के लिए देश-विदेश के लोग आते हैं। कुल्लू का दशहरा सात दिन तक मनाया जाता है। इसमें रघुनाथ जी की पालकी की झांकी का विशेष महत्व होता है। इस दिन हिमाचल के सभी भागों से अन्य देवी-देवताओं की पालकियाँ आती है और इनका दरबार सजाया जाता है।

त्यौहार का मूल्यांकन- गुण, दोष-दशहरे का पावन पर्व हमारा उज्ज्वल और गौरवशाली संस्कृति का प्रतीक है। यह शौर्य पर्व हमें आज भी मानवता की रक्षा करने का संदेश देता है। पौराणिक पावन चरित्रों के माध्यम से हमें मानवीय मूल्यों में आस्था होती है। रावणत्व पर राम की विजय का संदेश देता हुआ दशहरा समान रूप से बच्चे, बूढे, स्त्री, पुरुष, युवक, युवतियों को प्रिय लगता है। मेलों में लोग प्रसन्न होकर मिठाई, चाट, पकौड़े, फल आदि खाते हैं, गन्ने का रस पीते हैं।

कुछ अनपढ़ तथा असभ्य लोग इस दिन मदिरापन भी करते हैं तथा वैश्याओं का नाच-गाना सुनने लगते हैं। जुआ आदि खेल कर भी लोग अपने धन का दुरुपयोग भी करते हैं।

उपसंहार- शौर्य पर्व दशहरा हमारी संस्कृति की विजय-पताका को फहराता हुआ आता है। प्रकृति अपने आकर्षण से सभी को मोह लेती है। समाज के सभी वर्ण जीवन के प्रति आशा और उत्साह से भर उठते हैं। इसलिए दशहरा के पवित्र दिन पर हम सभी को अपनी संस्कृति के आदशों को ग्रहण करने का संकल्प करना चाहिए। राम के चरित्र और आदर्श का अनुकरण कर प्रेम और मैत्री का संदेश जन-जन तक पहुंचाना चाहिए। अन्याय और अत्याचार का सामना करने के लिए हम सभी को संगठित होना चाहिए।

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