In this article, we are providing an essay on Raksha Bandhan in Hindi. In this essay, you get to know- why we celebrate Raksha Bandhan and history of Raksha Bandhan in Hindi. इस निबंध में आपको पता लगेगा की हम रक्षाबंधन कब, क्यों और कैसे मानते है।
Essay on Raksha Bandhan in Hindi- रक्षाबंधन पर निबंध
भूमिका- मानव जाति के इतिहास में आरम्भ से ही त्यौहार, पर्व तथा अनेक प्रकार स्फूर्ति, ताजगी, उल्लास और उत्साह का सन्देश देते हैं तो जिन से मनुष्य जाति में प्रेम, सहृदयता और बन्धुत्व की भावना भी उत्पन्न होती है। प्रत्येक जाति के अपने-अपने उत्सव और त्यौहार होते हैं, उनके मूल में भिन्न-भिन्न कारण होते हैं, उन्हें मनाने के ढंग भी पृथक-पृथक हो सकते हैं लेकिन एक-दूसरे के त्योहारों के प्रति सबके मन में श्रद्धा होती है तथा उनमें लोग सहर्ष सम्मिलित भी होते हैं। इस प्रकार ये त्यौहार जाति विशेष की संस्कृति तथा राष्ट्र की चेतना के भी अंग होते हैं और मानव में भावात्मक एकता भी स्थापित करते हैं। हमारा देश त्यौहारों का और पवाँ का देश है। यहां वर्ष में अनेक त्यौहार, पर्व जयन्तियाँ मनाई जाती हैं। इन त्यौहारों में कुछ राष्ट्रीय त्यौहार हैं, कुछ का महत्व धार्मिक दृष्टि से है तथा कुछ त्यौहार जाति और प्रान्तीय स्तर पर भी मानए जाते हैं। रक्षाबंधन राष्ट्रीय स्तर का त्यौहार है।
रक्षाबंधन की पृष्ठभूमि और महत्व-‘राखी’ शब्द संस्कृत के ‘रक्षा’ शब्द से बना हुआ है। बंधन का तात्पर्य बांधने से है। इस प्रकार रक्षा बन्धन वह सूत्र है जिसका सम्बन्ध रक्षा के लिए तत्पर रहने से है। यह पर्व श्रावण महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसलिए इसे ‘श्रावणी’ भी कहते हैं। इस त्यौहार का एक नाम ऋषि तर्पणी पूर्णिमा भी है। इसे ‘उपाकर्म’ नाम से भी जाना जाता है।
इस पर्व का आरम्भ कैसे और कब हुआ इस सम्बन्ध में कोई बात निश्चित रूप से नहीं कही जा सकती और न इस सम्बन्ध में कोई प्रमाण ही मिलते हैं। इसके साथ एक पौराणिक प्रसंग जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि एक बार देवताओं और राक्षसों में युद्ध आरम्भ हुआ। इस भयंकर संग्राम में किसी की भी विजय होती नहीं दिखाई पड़ रही थी और युद्ध बढ़ता ही जा रहा था। देवताओं का पक्ष धीरे-धीरे कम होता जा रहा था और उन्हें अपनी हार का भय होने लगा। इससे वे परेशान हो गए। इन्द्र ने विजय के लिए यज्ञ किया तथा पुन: युद्ध में जाने के लिए तैयार हुआ। युद्ध में जाने से पूर्व इन्द्र की पत्नी शची ने इन्द्र के हाथ में विजय की भावना एवं सकुशलता के लिए रक्षा सूत्र बांध दिया। इस युद्ध में इन्द्र विजयी हुए। उसी दिन से यह माना गया कि इन्द्र की विजय उस रक्षा सूत्र के कारण हुई है और तब से ही यह रक्षा सूत्र या रक्षा बन्धन बांधने की प्रथा चल पड़ी। इस कथा के ! सम्बन्ध में यह बात उल्लेखनीय है कि उस समय पुरुष के हाथ में स्त्री भी राखी बांधती थी जैसा कि आज के युग में केवल बहने की भाई के हाथ में राखी बांधती हैं ऐसा प्रमाणित नहीं होता है। मध्यकाल में भी स्त्रियां जब अपने पति को युद्ध के लिए विदा करती थी तब अपने पति के हाथों पर रक्षा सूत्र बांधा करती थीं। इस काल में मुसलमान लोगों ने हिन्दुओं पर अनेक प्रकार के अत्याचार किए थे। मुसलमान शासक जिस भी सुन्दर कन्या को देखते उसे बलपूर्वक उठा कर ले जाते थे। इस प्रकार उनको पीड़ित किया जाता था। इस विपति से बचने के लिए हिन्दू कन्याएं राजाओं तथा शक्ति-सम्पन्न लोगों को राखी का सूत्र भेजती थीं। इससे सम्बन्धित एक ऐतिहासिक घटना का उल्लेख भी मिलता है। कहते हैं कि मेवाड़ के राणा सांगा की पत्नी कर्मवती ने अपनी सहायता के लिए मुसलमान शासक हुमायूं के राखी भेजी थी। हुमायूं ने भी बहिन के इस पवित्र उपहार को, इस सूत्र को ठुकराया नहीं तथा अपनी पुरानी शत्रुता भुला दी और उसके राज्य की रक्षा की। इससे पूर्व भी एक प्रसंग इतिहास में राखी से जुड़ा हुआ है। सिकन्दर भारत पर जब आक्रमण करने के लिए आवा था तो महाराजा पुरु के पराक्रम तथा शक्ति से उसकी सेना विचलित हो गई थी। राजा सिकन्दर के जीवन को भी संकट में देखकर एक यूनानी युवती ने राजा पुरु के हाथ में राख बांध दी। इसलिए पुरु ने सिकन्दर को मौत के घाट नहीं उतारा।
इन सन्दर्भों के अतिरिक्त एक ओर धारणा का सम्बन्ध राखी से है। प्राचीन काल में आचार्य लोग इस दिन ब्राह्मण, अपने शिष्यों तथा धार्मिक प्रवृति के लोगों को नदी के तट पर ले जाते थे और वहां उन लोगों के यज्ञोपवीत बदलते या यज्ञोपवीत संस्कार करते थे इसी दिन प्राचीन ऋषियों को भी श्रद्धांजलि दी जाती थी और उनकी कृतियों का स्मरण में किया जाता था।
ऐतिहासिक एवं पौराणिक”प्रसंगों के सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि चाहे वह स्त्री हे अथवा बहिन राखी के सूत्र का मुख्य सम्बन्ध रक्षा से है। आधुनिक युग में भी इस मूल भाव की रक्षा हुई है। लेकिन आज के युग में जहां अनेक मूल्य और मान्यताओं में परिवर्तन हुआ है वहां इस राखी के सन्दर्भ में भी परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं। तथापि इस पावन पर्व का आज भी विशेष महत्व है और आज भी यह भारत में उत्साह तथा श्रद्धा से मनाया जाता है।
वर्तमान स्वरूप- वर्तमान युग में राखी का त्यौहार अब मुख्य रूप से भाई-बहिन से ही जुड़ गया है। इस दिन स्त्रियों विशेष रूप से अपने घरों की सफाई आदि करती हैं। पूजा करती हैं तथा घर में अनेक प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन पकाती हैं। इसके बाद भाई उसके पास आता है। बहिन अपनी पूजा की थाली में चावल और कुंकुम तथा राखी का पावन सूत्र लेकर आती हैं और भाई के हाथ में राखी बांधती हैं। उसे मिठाई आदि खिलाती है। क्योंकि अब प्राचीन काल की तरह युद्धों का भय नहीं है अतएव सुख और शान्ति की दशा में भाई भी बहिन की यथाशक्ति धन या उपहार देता है। सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी कविता में राखी को देश की रक्षा से ही जोड़ा है
आते हो भाई ? पुनः पूछती हूँ-
कि माता के बन्धन की है लाज तुमको।
तो बन्दी बनी, देखो बन्धन है कैसा,
चुनौती यह राखी की है आज तुमको।
वर्तमान युग में कई प्रदेशों में ब्राह्मण अपने यजमान के हाथ में राखी बांधता है और ; उससे दक्षिणा आदि प्राप्त करता है। राखी बांधते हुए ब्राह्मण एक श्लोक बोलता है-
येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महावल:
तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे ! मा चल, मा चल।।
इसका अर्थ है कि रक्षा के जिस बंधन से राक्षस राज बलि को बांधा गया था, उसी से मैं तुम्हें बांधता हूँ। हे रक्षा करने वाले सूत्र ! तू भी अपने धर्म पर डटे रहना, उससे विचलित मत होना अर्थात् भली-भांति रक्षा करना। स्पष्ट है कि रक्षा बन्धन का मुख्य प्रयोजन और अर्थ रक्षा से ही जुड़ता है।
उपसंहार- रक्षा बन्धन हमारा राष्ट्रीय त्यौहार है तथा भाई और बहिन का त्यौहार है। वास्तव में यह पर्व भाई और बहिन के अटूट प्रेम का प्रतीक भी है तथा कहीं इसका सम्बन्ध यजमान और पुरोहित से भी जुड़ जाता है। इस प्रकार यह त्यौहार प्रेम और कर्तव्य का सन्देश देता है। भाई के विचारों को हरिकृष्ण प्रेमी के शब्दों में इस प्रकार प्रकट किया जा सकता है-
रक्षा, रक्षा कायरता से मर मिटने का दे वरदान।
हृदय रक्त से टीका कर दे, कर मस्तक पर लाल निशान।
वह जीवन का स्त्रोत आज कर मेरे मानस में संचार।
कांप न जाऊँ देख समर में रिपु की बिजली सी तलवार।
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