Essay on Swami Vivekananda in Hindi- स्वामी विवेकानंद पर निबंध

In this article, we are providing an Essay on Swami Vivekananda in Hindi | Swami Vivekananda Par Nibandh स्वामी विवेकानंद पर निबंध हिंदी | Nibandh in 100, 200, 250, 300, 500 words For Students & Children.

दोस्तों आज हमने Swami Vivekananda Essay in Hindi लिखा है स्वामी विवेकानंद पर निबंध हिंदी में कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, और 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए है। Swami Vivekananda information in Hindi essay & Speech.

Essay on Swami Vivekananda in Hindi- स्वामी विवेकानंद पर निबंध

Swami Vivekananda Nibandh- स्वामी विवेकानंद पर निबंध ( 200 words )

इनका जन्म 12 जनवरी 1863 ई० को कलकत्ता के दत्त परिवार में हुआ था। इनके जन्म का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। संन्यासी होने पर यह नाम बदल कर विवेकानन्द रखा गया। छात्रावस्था में ही उन्होंने यूरोपीय दर्शन-शास्त्र में अच्छी जानकारी प्राप्त कर ली थी। अपने विद्यार्थी जीवन में ही वे नास्तिक हो गये थे। उन दिनों सारे भारत में धर्म-विप्लव मचा हुआ था। बंगाल में ईसाई-प्रचार जोरों पर था । ब्रह्म समाज की नींव पड़ चुकी थी। कृष्णमोहन बनर्जी, कालीचरण बनर्जी, माईकेल मधुसूदन दत्त जैसे प्रतिभाशाली व्यक्ति ईसाई धर्म ग्रहण कर चुके थे। इस समय नरेन्द्रनाथ का मन भी ब्रह्म समाज की ओर झुका, पर शीघ्र ही उनका परिचय महात्मा रामकृष्ण झुका, परमहंस से हो गया। परमहंस पहुँचे हुए महात्मा थे। उन्होंने नरेन्द्र से कहा, ‘क्या तुम कोई भजन गा सकते हो?’ इन्होंने कहा, ‘हाँ, गा सकता हूँ।’ तब उन्होंने तीन भजन गाये। यह सुनकर परमहंस प्रसन्न हो गये और उन्होंने नरेन्द्रमाथ को अपना शिष्य बना लिया।

फिर तो उनकी संगत पाकर नरेन्द्रनाथ स्वामी विवेकानन्द बन गये और देश-विदेश में इसी नाम से विख्यात हो गये। इन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इन्होंने अमेरिका में जाकर वेदान्त का प्रचार किया। ये 4 जुलाई 1902 ई० को बेलूर में मृत्यु को प्राप्त कर सदा के लिए अमर हो गये।

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Swami Vivekananda in Hindi Essay- स्वामी विवेकानंद पर निबंध ( 250 to 300 words )

स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त तथा माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। उनका जन्म कलकत्ता में 12 जनवरी सन् 1863 को हुआ था।

बालक नरेंद्र बड़ा नटखट था । वह घर-भर में उत्पात मचाता था। उसे भूतप्रेतों में बिलकुल विश्वास नहीं था । वह कभी-कभी अपनी उम्र के बालकों के साथ घंटों ध्यान-मग्न बैठ जाता था।

पाँच वर्ष की अवस्था में नरेंद्र को स्कूल में भर्ती कराया गया। वह पढ़ता कम था और खेलता अधिक था। उसके सहपाठी उसे अपना नेता ” मानते थे। सन् 1881 में दर्शन-शास्त्र में एम.ए. परीक्षा उत्तीर्ण की। रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आने के बाद वह विवेकानंद हो गया।

रामकृष्ण परमहंस की सलाह पर विवेकानंद भारतीय दर्शन और भारतीय संस्कृति के प्रचार और प्रसार में लग गये। उन्होंने एक बार अमेरिका में आयोजित सर्व धर्म सम्मेलन में भाग लिया। वहाँ उनके भाषण को सुनकर लोग मंत्र-मुग्ध हो गये। उन्होंने हिन्दू धर्म की विशेषता उन्हें बतायी। उनके भाषण को सुनने के बाद अमेरिका के लोगों में हिन्दू धर्म के प्रति जो भ्रामक विचार थे, वे दूर हो गये।

विवकानंद ने समाज-सेवा करने के उद्देश्य से भारत तथा विदेशों में कई स्थानों पर ‘रामकृष्ण मिशन’ की शाखायें खोली।

विवेकानंद ने सारे भारत की यात्रा की। उन्होंने लोगों की दयनीय दशा अपनी आँखों से देखी। उन्होंने अपने भाषणों से सोयी हुई भारत जाति को जगाने का प्रयत्न किया। उन्होंने युवकों से कहा कि वे अपनी मांसपेशियों को फौलाद की बनायें। उन्होंने कहा – “युद्ध नहीं, सहायता; ध्वंस नहीं, निर्माण; भेदभाव नहीं, सामंजस्य।” उनकी मृत्यु 4 जुलाई सन् 1902 को हुई।

 

Long Essay on Swami Vivekananda in Hindi- स्वामी विवेकानंद पर निबंध ( 1000 words )

भूमिका

भारत महापुरूषों की धरती है जहाँ पर बहुत से महापुरुष हुए हैं। बहुत से मुनि भी हुए है जिन्होंने अपने अध्यातम और विचारों से पूरे विश्व में भारत को प्रसिद्ध किया है। भारत के महान संत स्वामी विवेकानंद जी ने भारतीय संस्कृति और अध्यातम से पूरे विश्व को प्रख्यात बनाया था। स्वामी विवेकानंद जी को भारतीय दर्शन, संस्कृति, साहित्य, धर्म आदि का बहुत ही ग्यान था।

बचपन

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकता में हुआ था। इनका जन्म एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत था और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। बचपन में स्वामी विवेकानंद का नाम नरेंद्र रखा गया था। इनके पिता कोलकता हाई कॉर्ट के एक नामी वकील थे और उन्हें अंग्रेजी और फारसी भी अच्छे से जानते थे। नरेंद्र की माता बहुत ही धार्मिक थी। नरेंद्र बचपन से बहुत ही मेधावी थे लेकिन उन्हें धर्म और प्रभू में आशंका थी। पिता के पश्चिमी संस्कृति के ग्याता होने और माता के धार्मिक होने से नरेंद्र को दोनों ही चीजों का पूर्ण ग्यान मिला। नरेंद्र हर चीज जानने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति थे।

शिक्षा

नरेंद्र पढ़ने में बहुत ही तथा। थे। उनकी आरंभिक पढ़ाई कोलकता में ही हुई थी। जब वह तीसरी कक्षा में थे तो उनकी पढ़ाई को बीच मे ही रोकना पड़ा क्योंकि उनके पूरे परिवार को जरूरी काम से कोलकता सो बाहर जाना पड़ा। तीन साल बाद कोलकता लौटने पर उनकी मेहनत को देखकर उन्हें स्कूल में फिर से प्रवेश दिया गया। नरेंद्र ने तीन साल का पाठ्य क्रम एक साल में ही कर लिया था। 1889 में नरेंद्र ने मैट्रिक की परिक्षा उत्तीर्ण की और कोलकता के जनरल असैंबली नामक कॉलज में दाखिला लिया। वहाँ उन्होंने इतिहास, दर्शन ,साहित्य, राजनीतिक ग्यान आदि का अध्ययन की। नरेंद्र ने बी.ए. की परिक्षा भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। नरेंद्र को एक प्रोफेसर ने कहा था कि उन्हें बहुत से विद्यार्थि मिले लेकिन उन्होंने नरेंद्र जैसा मेधावी और कौशल विद्यार्थि कभी नहीं देखा।

आध्यातमिक ग्यान

नरेंद्र की सभी चीजों के बारे में जानने की इच्छा के चलते वह ब्रहमसमाज का हिस्सा बने लेकिन उन्हें संतुष्टी नहीं मिली। फिर वह दक्षिणेश्वर के रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आए। उनके आध्यातमिक ग्यान से प्रभावित होकर नरेंद्र ने उन्हें अपना गुरू बना लिया। वह रामकृष्ण की हर बात का अनुसरण करते थे और उनके सच्चे अनुयायी बन गए। इसी दौरान नरेंद्र के पिता का देहांत हो गया और घर की सारी जिम्मेदारी उनके कंधो पर आ गई। कमजोर आर्थिक स्थिति के समय नरेंद्र ने जब गुरू से सहायता माँगी तो उन्होंने कहा कि काली माता के मंदिर जाकर याचना करे । रामकृष्ण काली माता के भक्त थे। नरेंद्र ने मंदिर जाकर धन की बजाय बुद्धि और ग्यान की याचना की। एक दिन गुरू रामकृष्ण ने अपनी साधना के वक्त नरेंद्र को तेज प्रदान किया और तभी से वह स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए।

नरेंद्र गुरू के रूप में

गुरू रामकृष्ण की मृत्यु के बाद स्वामी विवेकानंद कोलकता छोड़कर वरादनगर आश्रम में आकर रहने लगे। 25 साल की उमर में उन्होंने गेहुँआ चोला पहनना शुरू कर दिया था। वरादनगर आश्रम में आकर उन्होंने धर्म और संस्कृति का अध्ययन किया। विशेष रूप से उन्होंने हिंदु धर्म के बारे में जाना। वह भारत की संस्कृति से बहुत ही प्रभावित हुए। इन सबका अध्ययन करने के बाद वह भारत भ्रमण पर निकल पड़े। वह राज्यस्थान ,जुनागड़ से होते हुए दक्षिण भारत पहुँचे। वहाँ से वह पोंडीचेरी और मद्रास गए। इस सब के दौरान उनके विचारों से प्रभावित होकर उनके बहुत से शिष्य बन चुके थे।

विदेश यात्रा

1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में होने वाले विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए स्वामी विवेकानंद के शिष्यों ने उनसे बहुत आग्रह किया। शिष्यों के आग्रह करने पर स्वामी विवेकानंद बहुत सी परेशानियों को पार कर शिकागो पहुँचे। वहाँ उन्हें सम्मेलन में बोलने का अंतिम अवसर मिला और उन्होंने हिंदु धर्म का नेतृत्व किया। उस समय विदेशों में भारत के लोगों को हीन भावना से देखा जाता था। अपने भाषण से उन्होंने सभी लोगों को भावूक कर दिया। लोग भारतीय संस्कृति और उनके आध्यातमिक ग्यान से बहुत ही प्रभावित हुए। स्वामी विवेकानंद ने हिंदु धर्म को विदेशों में भी प्रसिद्ध किया। उन्होंने चार साल तक अमेरिका और युरोप के बहुत सारे शहरों में भाषण दिया। विदेशों में भी स्वामी विवेकानंद के बहुत से अनुयायी बन गए।

मृत्यु

स्वामी विवेकानंद चार साल विदेश में भारतीय संस्कृति को प्रख्यात बनाने के बाद जब भारत लौटे तो लोगों नें उनका बड़ी धुमधाम से स्वागत किया। स्वामी विवेकानंद का विश्वास था कि बिना अध्यातमिक ग्यान के देश उन्नति नहीं कर सकता। उन्होंने समाज कल्याण हेतु अध्यातम ग्यान देने के लिए रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। जिसके विकास में वह इतने व्यस्त हो गए कि बिमार पड़ गए। 4 जुलाई, 1902 में रात के नौ बजे 39 साल की कम उमर में ही स्वामी विवेकानंद का देहांत हो गया।

निष्कर्ष

स्वामी विवेकानंद एक महान संत हुए है। उनका मानना था कि असली पूजा गरीबों की मदद करने में है। वह मानवता रो सबसे बड़ा धर्म मानते थे। स्वामी विवेकानंद महिलाओं का बहुत ही आदर करते थे। वह हर महिला को घर की रानी बताते थे। स्वामी विवेकानंद ने बहुत ली पुस्तकें भी लिखी है। वह धार्मिक मुद्दों के साथ साथ सामाजिक मुदद्धों पर भी भाषण देते थे। उनके भाषण का प्रभाव उस समय के स्वतंत्रता सैनानियों पर पड़ा क्योंकि उस समय भारत अंग्रेजों के अधीन था। स्वामी विवेकानंद एक सच्चे देशभक्त भी थे और उन्होंने योग, राजयोग, और ग्यानयोग जैसे ग्रंथ भी लिखे थे। सरकार द्वारा स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन यानि कि 12 जनवरी को हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज भी जब कभी महान संतो की बात की जाती है तो स्वामी विवेकानंद जी का नाम बड़े ही आदर से लिया जाता है।

FAQ-

स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में धर्म संसद में भाग कब लिया था?

11 सितंबर, 1893 स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में धर्म संसद में भाग लिया था

स्वामी विवेकानंद के पिता क्या कार्य करते थे?

-इनके पिता कोलकता हाई कॉर्ट के एक नामी वकील थे

स्वामी विवेकानंद के बचपन का क्या नाम है?

-बचपन में स्वामी विवेकानंद का नाम नरेंद्र रखा गया था

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