In this article, we are providing information about Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi- Short Essay on Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi Language. सरदार वल्लभभाई पटेल पर निबंध
सरदार वल्लभभाई पटेल पर निबन्ध- Essay on Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi
सरदार बलल्व भाई पटेल भीरत के महापुरूषों में से एक थे और भारत को आजाद कराने में इनकी अहम भूमिका रही है। इन्हें वर्ण और वर्ग के आधार पर भेदभाव बिल्कुल भी पसंद नहीं था और ये उसका जमकर विरोद्ध करते थे। यह हमारे स्वतंत्र भारत को प्रथम उपप्रधानमंत्री थे और इन्होंने देश को 500 हिस्सों में बँटने से रोका था। इनको सरदार पटेल के नाम से भी जाना जाता है और यह लौह पुरूष के नाम से भी प्रसिद्ध है। सरदार बलल्व भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात राज्य के नाडियाड गाँव के एक गरीब परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम ज्वेरभाई पटेल था जो कि एक किसान थे और माता का नाम लाड़बाई था जो कि एक गृहिणी थी।
पटेल ने अपनी पढ़ाई स्वयं की थी और 1897 में 22 साल की ऊमर में उन्होंने मैट्रिकश की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। वह पढ़ने में बचपन से ही मेधावी थे और आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण कृषि कार्यों में पिता की सहायता भी किया करते थे। पटेल बहुत ही मेहनती बच्चे थे। मैट्रिक्श के बाद बैरिस्टर की पढ़ाई करने के लिए वे लंदन चले गए और वहाँ से आकर उन्होंने अहमदाबाद में वकालत कार्य शुरू किया जिसके लिए उन्हें बहुत पैसे मिलते थे पर बाद में देश की आजादी के लिए उन्होंने वकालत त्याग दी थी।
पटेल महात्मा गाँधी जी की बातों से प्रेरित हुए और स्वतंत्रता संग्राम में जुड़ गए। सबसे पहले उन्होंने गुजरात में स्थित खेड़ा के किसानों तो कर में निजात दिलाई और बाद में बरडोली सत्याग्रह में सफलता प्राप्त करने पर उन्हें सरदार की उपादि दी गई। गाँधी जी के नमक सत्याग्रह पर प्रचार करने के लिए उन्हे साबरमती जेल में डाल दिया गया था जहाँ उन्होंने भूख हड़ताल कर दी। उन्होंने निरंतर अंग्रेजो भारत छोड़ो की रट लगाकर रखी। आजादी के बाद उन्होंने भारत के 500 टुकड़े होने से बचाया और उन्हें भारत के उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का कार्य सौंपा गया।
भारत के एकीकरण में इनका महत्वपूर्ण योगदान था जिस कारण इन्हें लौह पुरूष कहा जाता है। गुजरात के हवाई अड्डे का नाम सरदार बलल्व भाई पटेल के नाम पर हैं। नर्मदा नदी के पास उनकी एक लौहे की मूर्ति बनाई गई है जिसे एकता की मुर्ति का नाम दिया गया है। 15 दिसंबर, 1950 को पटेल जी का निधन हो गया था और मरने के बाद 1991 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। पटेल जी आज भी हमारे दिलों में जिंदा है।
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