मेरा बचपन पर निबंध- Mera Bachpan Essay in Hindi Language

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मेरा बचपन पर निबंध- Mera Bachpan Essay in Hindi Language

 

( Essay-1 ) Hindi Essay on Mera Bachpan ( 300 words )

बचपन हर व्यक्ति के जीवन का मौज मस्ती से भरपूर एक अहम हिस्सा होता है। मेरा बचपन बहुत ही सुहावना रहा और मेरा बचपन गाँव में ही बीता है। मैं बचपन में बहुत ही नटखट स्वभाव का होता था और घर में सबसे छोटा होने के कारण सबका दुलार भी खुब मिलता था। बचपन में सुबह सुबह उठकर दोस्तों के साथ खेत की तरफ जाना ट्यूबवैल के नीचे नहाना और हँसते दौड़ते घर वापिस आना। कुछ इस तरह हमारे दिन की शुरूआत होती थी।

मुझे बचपन से ही मलाई बहुत पसंद है तो बचपन में रोज सुबह मलाई के साथ पराठे खाने का अलग ही मजा था। मेरा स्कूल भी घर से थोड़ी ही दूरी पर था तो हम सब दोस्त पैदल स्कूल जाते थे और स्कूल में भी शोर मचाकर बहुत मस्ती करते थे।

दोपहर को घर आते ही माँ के हाथ की ठंडी लस्सी मिलती थी और फिर से हसीं मजाक शुरू हो जाता था। कभी कभी ज्यादा शरारते करने पर माँ बाबू जी से डाँट पढ़ती थी लेकिन दादी माँ उनकी डाँट से मुझे बचा लेती थी और अपने आँचल में छुपा लेती थी। दादा जी रोज शाम को हमें सैर के लिए ले जाते थे और हम सब बच्चों को खूब हँसाते थे। हम सब बच्चे गिल्ली डंडा, क्रिकेट, दौड़, रस्सी कूदना आदि खेल खेलते थे। रात को थकने के बाद दादी माँ से कहानी सुनकर सोने में बहुत ही आनंद आता था। उनकी कहानी मनोरंजन के साथ साथ सीख भी देती थी। गाँव में बिजली कम आने के कारण गर्मियों में हम सब लोग छत पर ही सोते थे और प्राकृतिक हवा का आनंद लेते थे।

मेरा बचपन बहुत ही आनंदमय रहा है जिसमें न कोई भय न कोई फिक्र थी। हमेशा अपनी मर्जी चलती थी। काश! मैं एक बार फिर सो बच्चा बन सकता और अपना बचपन दोबारा जी सकता।

( Essay-2 ) Mera Bachpan Nibandh | Essay ( 500 words )

मनुष्य के जीवन में बचपन का समय सबसे अच्छा समय होता है। यह समय प्यार, सहानुभूति और देख-रेख का समय होता है, जो सभी प्रकार की चिन्ताओं से मुक्त और प्रसनन्ता से परिपूर्ण होता है । यह प्रसन्नता आयु में वृद्धि के साथ-साथ कम होती चली जाती है। मुझे अभी भी बचपन के दिन याद हैं और कभी-कभी मैं सोचता हूं कि काश ये दिन फिर लौट आयें !

जब मैं छोटा था, उस समय अपने माता-पिता, भाई बहन के साथ देहरादून के पास एक ग्राम में रहता था, जहाँ चारों ओर प्राकृतिक सौन्दर्य बिखरा पड़ा था। दूर-दूर तक हिमालय की ऊंची-ऊंची चोटियाँ दिखाई पड़ती थी । चीड़ और देबदार के वृक्ष की पत्तियाँ दूर-दूर तक फैली हुई थीं। कहीं वृक्षों के पीछे से निकलती प्रातः कालीन सूर्य की किरणें मन प्रसन्न कर देती थीं। रात्रि में मसूरी का प्रकाश एक अत्यन्त मनोरम दृश्य उपस्थित करता था । ऐसे प्राकृ- तिक वातावरण में मैंने अपना बचपन व्यतीत किया !

मैं संयुक्त परिवार में सबसे छोटा बच्चा था सभी का लाड़ प्यार और दुलार मुझे मिला । वे सभी मेरी प्रसन्नता का ही अपनी प्रसन्ता मानते और मुझे प्रसन्न करने के लिए भाँति-भाँति के उपहार लाकर देते । हर दिन मेरा जन्म दिन होता । यदि केभी मैं बीमार पड़ जाता तो सभी मेरी देखभाल में सारी-सारी रात बैठे रहते ।

जब मैंने पाँच वर्ष की आयु प्राप्त की, मुझे ग्राम की प्राथमिक पाठशाला में भरती कराया गया । मेरी तो जान-पहचान का क्षेत्र बढ़ता गया । पहले मुझे केवल मेरे परिवार के लोग या पड़ोसी ही जानते थे, परन्तु अब मुझे विद्यालय के दूसरे बिद्यार्थी भी जानने लग गए । अब दूसरे बच्चों की मित्रता से मुझे आनन्द प्राप्त होने लगा । अब मेरी माँ ही मुझे अधिक प्यार देती थी। विद्यालय से लौटने पर वह मुझे दूध का गिलास देती और खाने के लिए नई- नई बस्तुए बनाकर देती ।

मैं जब और बड़ा हुआ। तब अपने माता-पिता, मित्रों और कक्षा के अध्यापकों के विषय में सोचने लगा । तब मुझे नई चिन्ता ने आ घेरा । गृह कार्य न करने पर अध्यापक का डर सताने लगा । घर से बाहर निकल जाने पर खेल-खेल में घर लौटने की सुध न रहती। इस पर कभी-कभी डांट भी खानी पड़ जाती । जब कभी कभी मेरी उद्दडता पर मुझे पिताजी और अध्यापकों से मार भी खानी पड़ जाती थी ।

यद्यपि मेरे माता-पिता पहले मुझे अनेक वस्तुएं लाकर देते थे, परन्तु अब मेरी समस्त इच्छाएँ वे पूरी नहीं कर पाते थे। जब कभी मैं अपने पिताजी से क्रिकेट की गेंद और बल्ले की माँग करता तो मुझे सुनने को मिलता, अब तुम बच्चे नहीं रह गये हो। जाओ अपनी पढ़ाई का ध्यान रखो । हाँ, मेरी माँ मेरा बड़ा ध्यान रखती थी। वह प्रायः मेरी आवश्यकताओं की पूर्ति करती रहती थी। वह मुझे प्रायः जेव खर्च भी पिताजी की अपेक्षा अधिक देती थी ।

प्राथमिक पाठशाला की पढ़ाई पूरी करने के बाद मुझे देहरा- दून के एक छात्रावासमें भेज दिया गया। जहाँ से मैंने आगे पढ़ाई की। फिर मैं सरकारी नौकरी में आकर दूर-दूर स्थानों पर घूमता रहा । अब जब भी कभी में एकान्त में बैठता हूं तो मुझे बचपन के वे पुराने दिन याद हो आते हैं। मैं सोचता हूं कि काश, वे दिन फिर लौट पाते !

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