राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध- Essay on National Language in Hindi

In this article, we are providing an Essay on National Language in Hindi / Essay on Rashtrabhasha Hindi. राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध | Nibandh in 200, 300, 500, 600, 800 words For class 3,4,5,6,7,8,9,10,11,12 Students. 

राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध- Essay on National Language in Hindi

Rashtra Bhasha Hindi Essay ( 300 words )

प्रस्तावना- हम भारतीय लोग बचपन से बोलना शुरू करते हैं तब पहला शब्द हमारा हिंदी का ही होता है और उस हिंदी भाषा के सहारे ही हम दुनिया के तमाम तरह के जज्बात, भावनाओं को व्यक्त कर पाते हैं। लेकिन जब बात आए सम्मान की तो हम हिचकते हैं हिंदी को अपनी मातृभाषा कहते हुए।

हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी पर हम सब गर्व तो करते हैं, फिर भी हिंदी को बोलने में हमें शर्म क्यों आती हैं। हम कहीं बाहर जाकर किसी से मिलते हैं तो हिंदी के बजाय अंग्रेजी में बात करने को ज्यादा मान्यता देते हैं।

दुनिया मे बोली जाने वाली अनेकों भाषाएं है, लेकिन उनमें से एक भाषा जिसमें हम बड़ी सहजता के साथ अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं  ‘हमारी राष्ट्रभाषा कहलाती है’ । हमारी राष्ट्रभाषा पूरी दुनिया मे हमारी बोली, हमारी सभ्यता को एक पहचान देती है।

14 सितंबर वर्ष 1949 में संविधान सभा ने एक बैठक में राष्ट्रभाषा के बारे में वार्तालाप की, जिसके बाद कई राजकीय भाषाओं को राष्ट्रभाषा बनाने का सुझाव दिया गया, लेकिन उस समय भी ज्यादातर लोग हिंदी के पक्ष में खड़े थे जिसके बाद बहुमत के साथ हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दे दिया गया।

प्रत्येक वर्ष हम 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं, इस दिन सरकारी और गैरसरकारी स्थानों पर आयोजन किए जाते हैं और बड़े-बड़े भाषण के साथ हिंदी को मां का दर्जा भी दिया जाता है।

उपसंहार- हमें चाहिए कि जो हम इज्जत हिंदी को दुनिया के सामने देने का ढोंग करते हैं, उसे असल जिंदगी में भी दें। जिससे हमारी हिंदी भाषा दुनिया में तरक्की कर सके बिल्कुल वैसे जैसे आज अंग्रेजी भाषा भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में अपनी पहचान बनाए हुए है।

Rashtrabhasha Hindi Par Nibandh ( 800 words )

प्रस्तावना- ‘राष्ट्र’ शब्द का प्रयोग किसी देश तथा वहाँ बसने वाले लोगों के लिए किया जाता है। प्रत्येक राष्ट्र का अपना स्वतंत्र अस्तित्व होता है। उसमें विभिन्न जातियों एवं धर्मों के लोग रहते हैं। विभिन्न स्थानों अथवा प्रांतों में रहने वाले लोगों की भाषा भी अलग-अलग होती है। इस भिन्नता के साथ-साथ उनमें एकता भी बनी रहती है। पूरे राष्ट्र के शासन का एक केद्र होता है। अत: राष्ट्र की एकता को और दृढ़ बनाने के लिए एक ऐसी भाषा की आवश्यकता होती है, जिसका प्रयोग संपूर्ण राष्ट्र में महत्वपूर्ण कार्यों के लिए किया जाता है। ऐसी व्यापक भाषा ही राष्ट्रभाषा कहलाती है। भारतवर्ष में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। भारतवर्ष को यदि भाषाओं का अजायबघर भी कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी लेकिन एक संपर्क भाषा के बिना आज पूरे राष्ट्र का काम नहीं चल सकता।

सन 1947 में भारतवर्ष को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। जब तक भारत में अंग्रेज़ शासक रहे, तब तक अंग्रेज़ी का बोलबाला था किंतु अंग्रेज़ों के जाने के बाद यह असंभव था की देश के सारे कार्य अंग्रेजी में हो। जब देश के सविधान का निर्माण किआ गया तो यह प्रशन भी उपस्थित हुआ कि राष्ट्र की भाषा कौन-सी होगी ? क्योंकि राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र के स्वतंत्र अस्तित्व की पहचान नहीं होगी। कुछ लोग अंग्रेज़ी भाषा को ही राष्ट्रभाषा बनाए रखने के पक्ष में थे परंतु अंग्रेज़ी को राष्ट्रभाषा इसलिए घोषित नहीं किया जा सकता था क्योंकि देश में बहुत कम लोग ऐसे थे जो अंग्रेज़ी बोल सकते थे। दूसरे, उनकी भाषा को यहाँ बनाए रखने का तात्पर्य यह था कि हम किसी-न-किसी रूप में उनकी दासता में फंसे रहें।

हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करने का प्रमुख तर्क यह है की हिंदी एक भारतीय भाषा है। दूसरे, जितनी संख्या यहां हिंदी बोलने वाले लोगों की थीं, उतनी किसी अन्य प्रांतीय भाषा बोलने वालों की नहीं। तीसरे, हिंदी समझना बहुत आसान है। देश के प्रत्येक अंचल में हिंदी सरलता से समझी जाती है, भले ही इसे बोल न सके। चौथी बात यह है कि हिंदी भाषा अन्य भारतीय भाषाओं की तुलना में सरल है, इसमें शब्दों का प्रयोग तकपूर्ण है। यह भाषा दो-तीन महीनों के अल्प समय में ही सीखी जा सकती है। इन सभी विशेषताओं के कारण भारतीय संविधान सभा ने यह निश्चय किया कि हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा तथा देवनागरी लिपि को राष्ट्रलिपि बनाया जाए।

हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करने के बाद उसका एकदम प्रयोग करना कठिन था। अत: राजकीय कर्मचारियों को यह सुविधा दी गई थी कि सन 1965 तक केद्रीय शासन का कार्य व्यावहारिक रूप से अंग्रेज़ी में चलता रहे और पंद्रह वर्षों में हिंदी को पूर्ण – समृद्धिशाली बनाने के लिए प्रयत्न किए जाएँ। इस बीच सरकारी कर्मचारी भी हिंदी सीख लें। कर्मचारियों को हिंदी पढ़ने की विशेष सुविधाएँ दी गई। शिक्षा में हिंदी को अनिवार्य विषय बना दिया गया। शिक्षा मंत्रालय की ओर से हिंदी के पारिभाषिक शब्द-निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ तथा इसी प्रकार की अन्य सुविधाएँ हिंदी को दी गई ताकि हिंदी, अंग्रेज़ी का स्थान पूर्ण रूप से ग्रहण कर ले। अनेक भाषा-विशेषज्ञों की राय में यदि भारतीय भाषाओं की लिपि को देवनागरी स्वीकार कर लिया जाए तो राष्ट्रीय भावात्मक एकता स्थापित करने में सुविधा होगी। सभी भारतीय एक-दूसरे की भाषा में रचे हुए साहित्य का रसास्वादन कर सकेंगे!/

आज जहाँ शासन और जनता हिंदी को आगे बढ़ाने और उसका विकास करने के लिए प्रयत्नशील हैं वहाँ ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो उसकी टाँग पकड़कर पीछे घसीटने का प्रयत्न कर रहे हैं। इन लोगों में कुछ ऐसे भी हैं जो हिंदी को संविधान के अनुसार सरकारी भाषा बनाने से तो सहमत हैं किंतु उसे राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहते। कुछ ऐसे भी हैं जो उर्दू का निर्मूल पक्ष में समर्थन करके राज्य-कार्य में विध्न डालते रहते हैं। धीरे-धीरे पंजाब, बंगाल और चेन्नई के निवासी भी प्रांतीयता की संकीर्णता में फंसकर अपनी-अपनी भाषाओं की मांग कर रहे हैं परंतु हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जिसके द्वारो संपूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।

नि:संदेह हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसमें राष्ट्रभाषा बनने की पूर्ण क्षमता है। इसका समृद्ध साहित्य और इसके प्रतिभा संपन्न साहित्यकार इसे समूचे देश की संपर्क भाषा का दर्जा देते हैं किंतु आज हमारे सामने सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि हिंदी का प्रचार-प्रसार कैसे किया जाए ? सर्वप्रथम तो हिंदी भाषा को रोज़गार से जोड़ा जाए। हिंदी सीखने वालों को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता दी जाए। सरकारी कायलियों तथा न्यायालयों में केवल हिंदी भाषा का ही प्रयोग होना चाहिए। अहिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी का अधिकाधिक प्रचार होना चाहिए। वहाँ हिंदी की पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशकों एवं संपादकों को और आर्थिक अनुदान दिया जाए।

उपसंहार- आज हिंदी के प्रचार-प्रसार में कुछ बाधाएँ अवश्य हैं किंतु दूसरी ओर केद्रीय सरकार, राज्य सरकारें एवं जनता सभी एकजुट होकर हिंदी के विकास के लिए प्रयत्नशील हैं। सरकार द्वारा अनेक योजनाएँ बनाई गई हैं। उत्तर भारत में अधिकांश राज्यों में सरकारी कामकाज हिंदी में किया जा रहा है। राष्ट्रीयकृत बैंकों ने भी हिंदी में कार्य करना आरंभ कर दिया है। विभिन्न संस्थाओं एवं अकादमियों द्वारा हिंदी लेखकों की श्रेष्ठ पुस्तकों को पुरुस्कृत किआ जा रहा है। दूरदर्शन और आकाशवाणी द्वारा भी इस दिशा में काफी प्रयास किए जा रहे है।

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