Essay on My Hobby in Hindi- मेरी रुचियाँ पर निबंध

In this article, we are providing Essay on My Hobby in Hindi. मेरी रुचियाँ पर निबंध- संगीत, खेल और देशाटन-भ्रमण

Essay on My Hobby in Hindi- मेरी रुचियाँ पर निबंध

भूमिका- मनुष्य जीवन अनेक प्रकार की भावनाओं और कल्पनाओं, आशा और आकांक्षाओं के भावावेगों में झूलता रहता है। दु:ख और निराशाओं, संकट ओर संघर्षों के जूझता-टकराता कभी सुख और दु:ख, कभी सफलता और कभी असफलता, कभी लाभ और कभी हानि का भी उसे सामना करना पड़ता है। इस प्रकार वह जीवन-यात्रा के सुगम अथवा बीहड़ मार्ग को पार करता है। भावनाओं का तथा आशाओं का इन्द्रधनुषी कोमल जाल उससे शैशव अवस्था से ही लिपटा रहता है। विशाल विश्व में प्रत्येक व्यक्ति की अपनी ही मनोवृत्ति और प्रवृत्ति होती है, उसकी रुचि और कामना भी अलग-अलग प्रकार की होती है। इसी सन्दर्भ के कारण किसी व्यक्ति को मीठा प्रिय लगता है और किसी को खट्टा ज्यादा रुचिकर प्रतीत होता है। एक व्यक्ति नमकीन पदार्थों को रुचिपूर्वक ग्रहण करता है तो दूसरा व्यक्ति इसे अरुचि से खाता है। रुचियों में प्रकृति, आयु तथा वातावरण का भी विशेष महत्व होता है। इसी प्रकार अपनी बुद्धि के अनुकूल भी व्यक्ति रुचियों का त्याग और ग्रहण करता है। वास्तव में किसी वस्तु के प्रिय और अप्रिय होने का विशेष कारण भी कभी-कभी मनु= की अपनी रुचि होती है।

मेरी रुचियाँ- My hobby in Hindi

(अ) अध्ययन तथा संगीत- मेरी अभिरुचियों में अध्ययन तथा संगीत का विशेष स्थान है। अध्ययन के प्रति मेरी रुचि बढ़ने का एक विशेष कारण यह है कि हमारे घर में ही पारिवारिक वातावरण अध्ययन का रहा है। घर में बालकों के लिए शिक्ष बाद कहानियां, धार्मिक कहानियां, पंचतंत्र की कहानियां तथा ऐतिहासिक महापुरुषों की जीवनियों से संबंधित पुस्तकों के उपलब्ध होने के कारण मेरा इनके प्रति आकर्षण स्वाभाविक था। इ= प्रकार गीता प्रेस गोरखपुर की सुन्दर छोटी-छोटी किताबों तथा सरल भाषा में रामायण और महाभारत की पुस्तकें होने से भी मैं उन्हें पढ़ने के लिए लालयित रहता। इनमें जो विशेष कथन, दोहा या कविता के अंश आदि होते मैं नोट करके उन्हें अपने पास रख लेता था। मेरी यह रुचि इतनी प्रबल थी कि मैं अपने स्कूल के बस्ते में भी इस प्रकार की एक पुस्तक अवश्य रख लेता तथा जब भी कोई वादन (पीरियड) खाली होता तो मैं अपनी उसी किताब को निकाल कर पढ़ने लग जाता। धीरे-धीरे मैं अपने विद्यालय के पुस्तकालय से भी किताबें लेने लगा। यह सत्य है कि आठवीं कक्षा तक मैं केवल कहानियों की ओर ही आकर्षित रहता। लेकिन इसी कक्षा में मैंने प्रेमचन्द, वृन्दावन लाल वर्मा तथा रवीन्द्रनाथ टैगोर के कुछ उपन्यास भी पढ़ लिए थे। इसके साथ ही गीतांजलि के प्रति मेरा आकर्षण हुआ लेकिन उसका हिन्दी अनुवाद भी सरलता से समझ में न आने वाला था। रामचरित मानस की चौपाइयों के प्रति मैं तब आकर्षित हुआ जब हमारे गांव में रामलीला हुई और हमें गाना सिखाया गया। जब मैं तबला तथा हारमोनियम बजाने वालों को देखता तो मेरा मन उस ओर भी आकर्षित होता और यही से संगीत के प्रति मेरे आकर्षण का श्री गणेश हुआ।

धीरे-धीरे अध्ययन के प्रति मेरी रुचि का स्तर भी बदलने लगा और कुछ दर्शन सम्बन्धी पुस्तकों से भी मेरा परिचय होने लगा। दर्शन में जीव, ब्रह्म, माया आदि के प्रति मेरी रुचि विशेष बढ़ती गई। अपनी पाठ्य-पुस्तकों में भी मैं सूर, कबीर, तुलसी आदि कवियों की कविताओं को गम्भीरता से पढ़ता।

अध्ययन के प्रति मेरी यह रुचि बढ़ती चली गई और आज मैं विभिन्न प्रकार की पत्र-पत्रिकाओं को भी पढ़ता हूं। अध्ययन के प्रति रुचि होने से मुझे सबसे बड़ा यह लाभ हुआ की मेरी भाषा सुधरती गई और ज्ञान बढ़ता चला गया। यही कारणहै की आज मैं साहित्य में अपनी कक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त करता हूँ। अवकाश में मैं अन्य विधार्थियों की तरह ‘बोर ‘ नहीं होता हूँ और विभिन्न प्रकार की पुस्तकें पढ़ करमें ज्ञानाजर्न करता हूँ। संगीत में मैं गज़ल और भक्ति के पद सुन्दर रूप से गा लेता हूँ। खाली क्षणों में संगीत मेरा साथ देता है। पुस्तकों के अध्ययन से मैं जीवन के सुख-दु:खों को समझने की शक्ति प्राप्त करता हूं। इनसे मनोबल भी बढ़ता है। संगीत में मैं अपने विद्यालय में अनेक पुरस्कार भी प्राप्त कर चूका हूँ।

(ब) खेल- मेरा बड़ा भाई खेल में विशेष रुचि रखता है। इससे मुझे भी खेलों के प्रति रुचि उत्पन्न हुई। लेकिन खेलों में मेरा प्रिय खेल केवल फुटबाल ही है। कभी सुबह और कभी सन्ध्या को मैं फुटबाल नियमित खेलता हूँ। घण्टा या डेढ़ घण्टा खेलने से खूब दौड़ने भागने से शरीर पसीने से भीग जाता है। इससे स्वास्थ्य ठीक बना रहता है। वास्तव में मैं इसके लिए अपने बड़े भाई का आभारी हूं जिनके कारण मैं फुटबाल का खिलाड़ी बना अन्यथा मैंने किताबी कीड़ा बनकर अपना स्वास्थ्य दांव पर लगा दिया होता। खेलने के पश्चात् तरोताजा होकर पढ़ाई के प्रति मेरी रुचि और बढ़ती है। इस प्रकार मैं अन्य खेलों में भाग लेता हूं जैसे क्रिकेट आदि। लेकिन इनमें मैं इतना अधिक निपुण नहीं हूं। खेलों में मेरी बराबर रुचि बनी रहती है और मैं इनका आंखों देखा हाल भी सुनता हूं तथा जब भी कभी मौका मिलता है अच्छी प्रतियोगिताओं को देखने भी जाता हूं।

(स) देशाटन-भ्रमण- यह मेरा सौभाग्य है कि मैं अच्छे पारिवारिक वातावरण के कारण कुसंगति का शिकार नहीं हुआ। इसलिए मेरी रूचियां सृजनात्मक रही हैं। इनसे मुझे सदैव किसी न किसी रूप में हमेशा लाभ हुआ है। घूमना मेरी विशिष्ट रुचि है। इससे मैं विशेषतया प्रसिद्ध शहरों, ऐतिहासिक स्थानों तथा प्राकृतिक सौन्दर्य से मण्डित स्थानों को देखना विशेष पसन्द करता हूं। नैनीताल, मसूरी और शिमला जैसे प्राकृतिक सौन्दर्य से मण्डित स्थानों में मैं अनेक बार घूम आया हूं। कुरुक्षेत्र, फतेहपुर सीकरी, आगरा आदि ऐतिहासिक स्थानों में भी मैंने भ्रमण किया है। जलियांवाला बाग में भी मैं गया हूं। बड़े नगरों का भीड़ से भरा जीवन न जाने मुझे क्यों पसन्द आता है। लोगों के साथ मिलकर मैं भीड़ में खो जाता हूं इस प्रकार मुझे भ्रमण से अनेक लाभ हुए हैं। एक ओर मैं विभिन्न प्रकार के लोगों से मिलता-जुलता हूं तो दूसरी ओर यात्रा के अनुभव मुझे ज्ञान दान करते हैं तथा उनकी स्मृति मुझे रोमांचित करती है।

उपसंहार- मैं जानता हूं कि मेरी ये सब रुचियाँ मुझे एक आदर्श विद्यार्थी के रूप में सामने रखती हैं। परन्तु मुझे केवल झूठा आदर्श दिखा कर झूठी प्रशंसा प्राप्त नहीं करनी “ है। मैं तो यह जानता हूं कि यदि सभी विद्यार्थियों को इसी प्रकार का एक विशेष वातावरणमिलता है तो कोई भी व्यक्ति इस प्रकार की रुचियों को जीवन में अपना लेता है। वास्तव में मुझे अपने पारिवारिक वातावरण से ही ये रुचियां प्राप्त हुई हैं और मैं इनसे विशेष लाभान्वित हुआ हूँ। सृजनात्मक रुचियां जीवन को सुख देती हैं और ज्ञानार्जन के साथ-साथ इनसे जीवन में एक विशेष प्रकार का अनुशासन भी आता है। सबसे बड़ी बात इससे यह होती है कि खाली समय में, अवकाश के क्षणों में और गर्मियों की लम्बी छुट्टियों में मैं इधर-उधर व्यर्थ भटकता नहीं रहता हूँ। मैं अपने मित्र भी इसी प्रकार के ढूँढता हूं। प्रत्येक व्यक्ति जीवन में आनन्द प्राप्त करना चाहता है और मैं भी अपनी अभिरुचियों से इसी प्रकार आनन्दित होता हूं।

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