Essay on Guru Nanak Dev Ji in Hindi- गुरु नानक देव जी पर निबंध

In this article, we are providing Essay on Guru Nanak Dev Ji in Hindi- गुरु नानक देव जी पर निबंध- जीवन परिचय, यात्रायें (उदासियाँ), शिक्षा और उपदेश & Guru Nanak Biography in Hindi. Guru Nanak Dev Ji Nibandh 100, 150, 200, 250, 300, 500 words For Students & Children.

दोस्तों आज हमने Shri Guru Nanak Dev Ji Essay in Hindi लिखा है मोर पर निबंध हिंदी में कक्षा | class 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, और 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए है।

Essay on Guru Nanak Dev Ji in Hindi- गुरु नानक देव जी पर निबंध

Essay on Guru Nanak Dev Ji in Hindi

Short Essay on Guru Nanak Dev Ji in Hindi ( 200 words )

 

गुरू नानक देव का जन्म सन् 1469 ई० में कार्तिक पूर्णिमा को लाहौर से 15 कि० मी० दूर तलवण्डी नामक ग्राम में हुआ। नानक बचपन से ही सतसंग सुनने में रूचि रखते थे।

उनके पिताजी उन्हें किसी आजीविका के कार्य में लगाना चाहते थे। वे उन्हें जंगल में पशुओं को चराने के लिए भेजते थे, लेकिन वहां वे एकान्त पाकर ध्यान मग्न हो जाते थे। पशु तितर-बितर होकर उनसे पहले ही घर को लौट जाते थे। एक बार व्यापार के उद्देश्य से उनके पिता ने उन्हें चालीस रूपये लेकर खरा सौदा करने को कहा। नानक देव रूपये लेकर बाजार गये। उन्होंने उन रूपयों से भूखे साधुओं को भोजन खिला दिया। घर आकर बता दिया कि आज उन्होंने खरा सौदा कर दिया। उनका दिल घर में नहीं लगता था ।

उनके पिताजी ने उनकी शादी कर दी। उनके दो पुत्र हुए श्रीचंद व लक्ष्मीचंद । परंतु उनका मन दिन प्रतिदिन गृहस्थ से दूर होता गया । उनको घर से वैराग्य आने लगा। वे साधु संतो के बीच जाकर भजन सत्संग में मस्त रहते थे। अब वे मण्डली बनाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते थे। वे सबको सच्ची राह पर चलने का उपदेश देते थे। जो भी उनके संपर्क में आते थे, वे तुरंत उनके शिष्य बन जाते थे। सन् 1539 में नानक देव की ज्योति – ज्योत में समा गए। उनके उपदेश आज भी हमें रास्ता दिखाते हैं।

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भूमिका

दिवाकर का प्रखर ताप जब जल स्रोतों को सूखा देता है, धरा पर मानव और पक्षी सभी व्याकुल हो जाते हैं, शस्य-श्यामला सूख जाती है तब पावस की धार इस संताप से मुक्ति दिलाती है। इसी प्रकार जब जनता अन्याय और अत्याचार की चक्की में पिसने लगती है। तो इस चक्की की गति को स्थिर करने के लिए कोई महामानव जन्म लेता है। जिस समय मुसलमान-आततायी के अत्याचार से भारतीय जनता पीड़ित थी, धर्म आडम्बर और पाखंड के पंक में डूब गया था, अन्धविश्वास और भेदभाव का विष मानवता के शरीर में फैल रहा था, उस समय सिख धर्म के प्रर्वतक आदि गुरु महामानव गुरु नानक देव का जन्म हुआ।

गुरू नानक देव जीवन जी परिचय | Guru Nanak Dev Ji Jeevan Parichay

दिव्य-पुरुष गुरु नानक देव जी का जन्म विक्रमी सम्वत् 1526 के वैशाख मास में लाहौर के पास तलवण्डी नामक गांव में हुआ था, जो कि अब पाकिस्तान है तथा जिसे श्री ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। इस शान्ति-दूत की जन्म-स्थली। कति की गोद में घने जंगलों से घिरी थी। इनके पिता का नाम कालू चन्द और माता का नाम तृप्ता देवी था। उनके पिता गांव के पटवारी थे तथा खेती का कार्य भी करते थे। नानक की एक बहन भी थी जिस का नाम नानकी था। कहा जाता है कि जन्म से ही नवजात शिश हंसने लगा और ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की कि यह बालक हिन्दू और मुसलमान दोनों का पथ-प्रदर्शक और पूजनीय होगा। पांच वर्ष की आयु में जब उन्हें लौकिक शिक्षा दी जाने लगी तो अपने आध्यात्मिक ज्ञान से उन्होंने सभी को चकित कर दिया।

इस दिव्य शिशु ने यज्ञोपवीत धारण करने के अवसर पर तथा सांसारिक गुरु द्वारा अक्षर-बोध आरम्भ कराने पर भी इसी प्रकार के प्रश्न किए जिससे उसकी विलक्षण प्रतिभा का ज्ञान होने लगा। इसी प्रकार एक बार बीमार होने पर और वैद्य द्वारा दवा दी जाने पर उन्होंने उससे प्रश्न किया, “आप दवा देकर मुझे नीरोग तो करना चाहते हैं, पर क्या आपने अपने भीतर जो काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार आदि की व्याधियां हैं, उनका उपचार कर स्वयं को स्वस्थ कर लिया है ?”

पिता ने उन्हें खेती और व्यापार करने की सलाह दी, किन्तु यहां भी वह सांसारिक दृष्टिकोण से असफल हो गए तथा सत्य की खेती और सत्य का व्यापार करने लगे। इस प्रकार पिता उनसे निराश हो गए। उनकी बहन उन्हें अपने साथ सुलतानपुर ले गई और दौलतखां लोधी के मोदीखाने में राशन तोलने की नौकरी दिलवाई। वहां भी नानक, “तेरा-तेरा” (सब कुछ ईश्वर का) के चक्कर में पड़े रहे। यहां से उन्होंने नौकरी छोड़ दी।।

सम्वत् 1545 में उन्नीस वर्ष की अवस्था में उनका विवाह बटाला के खत्री मूलचन्द की पुत्री सुलक्खनी से हुआ। उनके दो लड़के श्री चन्द और लक्ष्मी चन्द भी हुए तथापि उनका मन सांसारिक मोह-पाशों से बन्ध न सका। अज्ञान के अन्धकार में डूबी मानव जाति को ज्ञान का मार्ग दिखाने के लिए वे घर से तथा देश-विदेश भ्रमण के लिए निकल पड़े। कहते हैं कि बेई नदी के किनारे उन्हें ज्ञान प्राप्ति मिली और तब वे ज्ञान वितरित करने के लिए निकल पड़े।

यात्रायें (उदासिया) | Guru Nanak Dev Ji Ki Udasiyan

गुरु नानक देव ने अपने मरदाना नामक शिष्य के साथ लेकर । चारों दिशाओं में चार लम्बी यात्रायें कीं जिन्हें उदासियां कहते हैं। इन यात्राओं का वास्तविक उद्देश्य आडम्बर, अंधविश्वास, जात-पात, छुआ-छूत, ऊँच-नीच और धर्म-सम्प्रदाय के बंधनों में बंधी जनता को सत्य का रहस्य सिखाना था। मानव के बीच में फैली हुई खाई को पाटने का उन्होंने यल किया। उनका धर्म सीधा, सरल, निष्कपट और बंधनों से रहित था। अपनी। यात्राओं के दौरान उन्होंने हरिद्वार, दिल्ली, काशी, जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम्, भूटान, तिब्बत, मक्का-मदीना, काबुल, केधार, बगदाद आदि स्थानों की यात्रायें कीं। हरिद्वार में उन्होने पित्तरों। को तर्पण करते हुए अंध-विश्वासी लोगों को सत्य का मार्ग समझाया तथा जगन्नाथपुरी में। भगवान की आरती उतारने वाले पण्डितों को विराट् ईश्वर की विराट आरती समझायी—

गगन में थालु रविचन्द्र दीपक बने।

तारिका मण्डल जनक मोती ।।

इसी प्रकार मक्का में उन्होने अल्लाह के उपासक मुल्ला को ज्ञान दान दिया। गुरु नानक देव की ये यात्रायें वे पड़ाव हैं जो ज्ञान और बोध के सोपान बन गए हैं। स्थान-स्थान पर जन-समुदाय के बीच जाकर वे लोगों को अपनी सीधी और सच्ची वाणी में सही मार्ग बताते ।

गुरु नानक देव की शिक्षा और उपदेश | Guru Nanak Dev Ji Ki Shiksha aur Uddeshya

गुरु नानक देव अपनी आत्मा के सच्चे सेवक थे, और दीपक की भाँति निर्विकार भाव से अंधकार को दूर करना ही उनका लक्ष्य था। वे महामानव थे। उन्होंने किसी सम्प्रदाय को चलाने के लिए अपने मत की स्थापना नहीं की। । गुरु नानक ने जो मूल मंत्र दिया है तथा जो सिख धर्म का आदि मन्त्र है उसमें भी वे परमात्मा की एकता के बारे में बल देते हैं।

‘एकम्कार सतिनामु करता निरभउ निरवैरू, अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरुप्रसादि।”

उनकी दृष्टि में आत्मा और परमात्मा के बारे में कोई भेद नहीं है तथा उसका सम्बन्ध कमल और पानी के समान है। सम्पूर्ण संसार में उसी की ज्योति प्रकाशित हो रही है। वहीं स्वयं करने वाला है और वहीं स्वयं देखने वाला है-

आपे रसिया आपि रासु आपे गावणहार

आपे होवे चोलड़ा, आपे सेज मंतार

आपे गुण आपे कथै, आपे सुणि वीचारू

आपे स्तनु परखन, आपे मोल अपार

गुरु नानक के धर्म में मूर्ति-पूजा, तन्त्र-मन्त्र, पाखण्ड आदि का कोई स्थान नहीं है। वे निराकार ईश्वर के उपसाक थे जिसको प्राप्त करने के लिए धर्म-खंड और सत्यखंड से गुजरना पड़ता है।

गुरु नानक देव जी के हृदय से प्रस्फुटित काव्य-वाणी ‘आदि ग्रन्थ में संकलित है।

जिसे चार प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है :-

1. बृहदाकार कृतियां 2. लघु आकार कृतियां  3. वार काव्य 4.फुटकर पद्

गुरु नानक कर्म और वचन से एक थे। जाति और सम्प्रदाय से वे परे थे, तथा पद दलितों के, निर्धनों के बच्चे साथी थे। इसीलिए उन्होंने शोषक भागो के घर दावत को ठुकरा दिया तथा बढ़ई लाला जी घर साधारण भोजन प्रसन्नता से स्वीकार कर लिया। उनका धर्म समाजवाद की घोषणा करता है, जिसका आधार समस्त मानवों का कल्याण है। अपने मधुर और सरल व्यवहार से उन्होंने बुरे लोगों का मन जीता तथा हिन्दू और मुसलमान दोनों के प्रिय बने। ठग सज्जन को उन्होंने बड़ी सरलता से वास्तविक सज्जन बना दिया। वे मुसलमानों । की नमाज में शामिल होते थे तथा उनके धर्म को समान दृष्टि से देखते थे। उनके धर्म का मूल आधार-

“न कोई हिन्दू, न कोई मुसलमान” था। ।

गुरु नानक ने समाज में स्त्री को ऊंचा स्थान दिया। सैकड़ों वर्ष पूर्व ही उन्होंने ऐसे ।

समाज की कल्पना की थी जो समाज समानता व कर्म के सिद्धान्त पर टिका हुआ हो। गरु नानक देव अपने समकालीन राजाओं के अत्याचारों का विद्रोह करने से भी न हिचके। जव बाबर ने हिन्दुस्तान पर आक्रमण किया तो उसके भयानक अत्याचार देखकर उनका मन हो । पड़ा और वे पुकार उठे

खुरासान खसमाना की

हिन्दुस्तान डराइआ।

मुसलमान शासकों के विरोध में उन्होंने कहा था-

कलिकाते राजे कसाई

धर्म पंख लगाकर उड़रिया

सच्चे अर्थों में गुरु नानक देव जी के उपदेश और उनकी शिक्षाएं मानव धर्म पर आधारित हैं। सत्य का वह पुजारी सच्चे हृदय से मानव समाज में फैले भेदभाव को मिटाना चाहता था।।

उपसंहार

जीवन के अन्तिम समय में गुरु नानक बेईं के किनारे करतारपुर में रहने लगे, जहां उन्होंने स्वयं खेती की तथा लोगों को कर्म करने की प्रेरणा दी। गुरु अंगददेव को उन्होने गुरुगद्दी दी और 7 सितम्बर 1539 ई. में ज्योति ज्योत समा गए। गुरु नानक प्रकाश पुंज थे, आलौकिक पुरुष थे और सच्चे अर्थों में महा मानव थे।

 

इस लेख के माध्यम से हमने Guru Nanak Dev Ji Par Nibandh | Essay on Guru Nanak Dev Ji in Hindi का वर्णन किया है और आप यह निबंध नीचे दिए गए विषयों पर भी इस्तेमाल कर सकते है।

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