Adarsh Vidyarthi Essay in Hindi- आदर्श विद्यार्थी पर निबंध

In this article, we are providing Adarsh Vidyarthi/Ideal Student essay in Hindi.  500 words essay on आदर्श विद्यार्थी

Adarsh Vidyarthi Essay in Hindi- आदर्श विद्यार्थी पर निबंध

भूमिका– महात्मा गाँधी कहा करते थे, ‘शिक्षा ही जीवन है।” इसके समक्ष सभी धन फीके हैं। विद्या के बिना मनुष्य कंगाल बन जाता है, क्योंकि विद्या का ही प्रकाश जीवन को आलोकित करता है। विद्याध्ययन का समय बाल्यकाल से आरंभ होकर युवावस्था तक रहता है। यों तो मनुष्य जीवन भर कुछ-न-कुछ सीखता रहता है, किंतु नियमित अध्ययन के लिए यही अवस्था उपयुक्त है।

महत्वपूर्ण अवस्था– मनुष्य की उन्नति के लिए विद्यार्थी जीवन एक महत्वपूर्ण अवस्था है। इस काल में वे जो कुछ सीख पाते हैं, वह जीवन-पर्यत उनकी सहायता करता है। इसके अभाव में मनुष्य का विकास नहीं हो सकता। जिस बालक को यह जीवन बिताने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ वह जीवन के वास्तविक सुख से वंचित रह जाता है।

तपस्या का जीवन – यह वह अवस्था हैं जिसमें अच्छे नागरिक का निर्माण होता हैं । यह वह जीवन हैं जिसमें मनुष्य के मस्तिष्क और आत्मा के विकास का सूत्रपात होता है। यह वह अमूल्य समय है जो मानव जीवन में सभ्यता और संस्कृति का बीजारोपण करता है। इस जीवन की समता मानव जीवन का कोई अन्य भाग नहीं कर सकता।

बहृमचर्य अनिवार्य– बहृमचर्य विकास का मूल है। यही विद्यार्थी को उसके लक्ष्य पर केंद्रित करता है। शरीर, आत्मा और मन में संयम रखकर विद्यार्थियों को उनके लक्ष्य की ओर अग्रसर होने में सहायता करता है। शालीनता, निष्ठा, नियमित कत्र्तव्य भावना तथा परिश्रम की ओर रुचि पैदा करता है और दुव्यसन, पतन तथा आत्म-हनन से रक्षा करता है। सदाचार ही जीवन है।

शारीरिक स्वस्थ -स्वस्थ शरीर में स्वस्थ आत्मा निवास करती है। अतएव आवश्यक है कि विद्यार्थी अपने अंगों का समुचित विकास करे। खेल-कूद, दौड़, व्यायाम आदि के द्वारा शरीर भी बलिष्ठ होता है और मनोरंजन के द्वारा मानसिक श्रम का बोझ भी उतर जाता है। खेल के नियम में स्वभाव और मानसिक प्रवृत्तियाँ भी सध जाती है।

महत्वाकाँक्षा की भावना– महान् बनने के लिए महत्वाकाँक्षा भी आवश्यक है। विद्यार्थी अपने लक्ष्य में तभी सफल हो सकता है जब कि उसके हृदय में महत्वाकाँक्षा की भावना हो। ऊपर दृष्टि रखने पर मनुष्य ऊपर ही उठता जाता है। मनोरथ सिद्ध करने के लिए जो उद्योग किया जाता है, वही आनंद प्राप्ति का कारण बनता है। यही उद्योग वास्तव में जीवन का चिहन है।

उपसंहार– आज भारत के विद्यार्थी का स्तर गिर चुका है। उसके पास न सदाचार है न आत्मबल। इसका कारण विदेशियों द्वारा प्रचारित अनुपयोगी शिक्षा प्रणाली है। अभी तक भी उसी का अंधाधुंध अनुकरण चल रहा है। जब तक इस सड़ी-गली विदेशी शिक्षा पद्धति को उखाड़ नहीं फेंका जाता, तब तक न तो विद्यार्थी का जीवन ही आदर्श बन सकता है और न ही शिक्षा सर्वागपूर्ण हो सकती है। इसलिए देश के भाग्य विधाताओं को इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

 

विद्यार्थी और अनुशासन पर निबन्ध

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