यदि मैं शिक्षा मंत्री होता पर निबंध- Yadi Main Shiksha Mantri Hota Essay In Hindi

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यदि मैं शिक्षा मंत्री होता- Yadi Main Shiksha Mantri Hota Essay In Hindi

भूमिका- मनुष्य कल्पनाशील प्राणी है। जीवन के प्रति उसकी उमंगे और लालसाएं कल्पना का सहारा लेकर पंख पसार कर उड़ने लगती है और नीले आकाश की ऊंचाई तथा विस्तार को भी छू जाती है। कल्पना का जन्म उस समय भी होता है जबकि मनुष्य किसी वस्तु का अभाव झेलता है। अभाव के कारण ही दु:ख जन्म लेते हैं और दु:खों से छुटकारा पाने की कामना प्रत्येक व्यक्ति करता है। कल्पना के मधुर क्षणों में व्यक्ति कुछ समय के लिए दु:खों से मुक्ति पा लेता है। रात्रि में जब व्यक्ति नींद में सोते हुए स्वप्न देखता है तो कभी-कभी इन स्वप्नों में भी वह अपनी मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर लेता है अथवा उसी रूप को प्राप्त कर लेता है। कल्पना कवियों और कलाकारों के लिए आवश्यक सोपान मानी जाती है। मैं एक विद्यार्थी हूँ और शिक्षा की वर्तमान दशा को देखकर मेरे मन में इसमें कुछ परिवर्तन करने की कामना हुई। मैं सोचने लगा-काश ! मैं शिक्षा मन्त्री होता। 

शिक्षा और शिक्षा मन्त्री- यदि मैं शिक्षा मन्त्री बन गया तो सबसे पहले मैं अपने अधिकार और कर्तव्य को जानता। राजनीति के दाव-पेचों से अलग रहकर मैं पवित्र मन से शिक्षा को ही समर्पित हो जाता। मैं इस घमण्ड से न भरा होता कि मैं शिक्षा मन्त्री हूं। मैं शिक्षक, शिक्षा, और शिक्षार्थियों का सेवक स्वयं को समझता, जिसे बहुत बड़ा कर्तव्य निभाना होता है। शिक्षकों के प्रति मैं अत्यंत सम्मान की भावना रखने वाला शिक्षा मन्त्री हूं और सभी बातों में उनकी राय तथा उनके विचार जानता हूं। उनको शिक्षा से अलग रखकर मैं शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन लाने की कल्पना कैसे कर सकता हूं ? स्कूल और कॉलेजों में नियमित रूप से जाने का भी प्रयास करता हूं और शिक्षकों तथा विद्यार्थियों से व्यक्तिगत सम्पर्क करता हूं। मैं यह भी जानता हूं कि हमारा देश निर्धन है तथा बहुत गरीब घर के विद्यार्थी हमारे स्कूलों में आते हैं जिनके पास पहनने के लिए उचित वस्त्र तथा पुस्तकें आदि खरीदने के लिए भी साधन नहीं हैं, उनकी समस्याओं को सुलझाने के लिए मैं यथाशक्ति उनकी सहायता करता हूं।

शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन- अब मैं शिक्षा मन्त्री हूं और मैंने यह जाना है कि शिक्षा के किन क्षेत्रों में क्या परिवर्तन करने अनिवार्य हैं। आज के युग में शिक्षकों का मान समाज में गिर रहा है। मैं उन्हें पूर्ण सम्मान दिलाने के लिए कृत-संकल्प हूं। इसके लिए मैं अध्यापक बनने के लिए इच्छुक व्यक्तियों का चयन करते हुए बहुत सावधानी ध्यान में रखने के लिए आदेश देता हूं। उनके चरित्र तथा नैतिकता के प्रति मैं सजग हूं। अत: समर्पित व्यक्ति ही अब ट्रेनिंग में चुने जाएंगे और ट्रेनिंग में भी उनके व्यवहारों का अध्ययन कर ही उन्हें उत्तीर्ण माना जायेगा। मैं जानता हूं कि टीचर्स अपनी यूनियन बनाते हैं और कुछ अध्यापक यूनियन के डर और भय के द्वारा शिक्षा संस्थानों में मनमाना व्यवहार करते हैं। ऐसे अध्यापकों के प्रति मैं अब जागरूक हूं। अध्यापक को सबसे पहले सही अर्थों में अध्यापक होना आवश्यक है। अब मैं अध्यापकों को सभी सुविधाओं को दिलाने के लिए भी प्रयास कर रहा हूं अर्थात् उनके वेतन में पर्याप्त वृद्धि कर रहा हूं ताकि उन्हें ट्यूशन के लिए बिल्कुल भटकना न पड़े। दूसरी ओर उन्हें मकान, चिकित्सा, उनके बच्चों की शिक्षा, उचित छुट्टियाँ तथा देश भ्रमण की सुविधा दिलाने का ध्यान रखता हूं।

विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम के प्रति सतर्क रहना भी आवश्यक है। मैं समझता हूं कि विज्ञान, गणित जैसे विषय सभी विद्यार्थी समझ नहीं पाते हैं। अत: मैं अध्यापकों की सहायता से उनकी रुचियों और प्रतिभा को देख कर ही उन्हें अलग-अलग विषयों की शिक्षा दिलाने के पक्ष में हूं। वे दसवीं कक्षा के बाद अपनी प्रतिभा के अनुसार विषय ले सकें, इसकी अपेक्षा मैं नौवीं कक्षा में प्रवेश के समय ही ऐसी व्यवस्था कर रहा हूं। अब कालेजों में शिक्षा प्राप्त करने के लिए केवल वे ही विद्याथीं जा सकेंगे जो वास्तव में इसके योग्य हैं, अधिक परिश्रमी हैं तथा ऊंची शिक्षा प्राप्त करने के इच्छुक भी हैं। इस प्रणाली के साथ कालेजों में भीड़ कम होगी और अध्यापक विद्यार्थियों के प्रति अधिक ध्यान दे सकेंगे तथा उनके साथ न्याय भी कर पायेंगे। विद्यार्थी अब खुश होंगे क्योंकि उनके भारी-भारी बस्ते अब छोटे हो जायेंगे। इसी दिशा में मैं एक महत्वपूर्ण परिवर्तन करने पर आजकल गम्भीरता से विचार कर रहा हूं। हम जानते हैं कि आजकल विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता उत्पन्न हो रही है। वे अध्यापकों के प्रति, समाज के प्रति तथा देश के प्रति, माता-पिता के प्रति अपना उत्तरदायित्व नहीं निभाते हैं, इसलिए उनमें नैतिक, चारित्रिक शिक्षा के प्रति रुचि उत्पन्न करना आवश्यक है। अब मैं सोचता हूं कि इसके लिए अध्यापकों का ही सहयोग अनिवार्य है, क्योंकि अध्यापकों की सभी समस्याओं को मैं सुलझा चुका हूं, वे मुझे सहयोग अवश्य देगे क्योंकि इससे उनका सम्मान करना भी विद्याथीं जानेंगे। स्कूल में चरित्र को व्यवहार के आधार पर देखा जाएगा। विनम्र और सुशील विद्यार्थियों की, आज्ञापालन करने वाले को और शिक्षा के प्रति ईमानदार, गंभीर तथा समर्पित विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष पुरस्कार दिये जाएंगे। इसके अलावा इसके लिए अलग से सौ अंकों की व्यवस्था होगी। इन अंकों में से प्रत्येक विद्याथों को कम से कम अस्सी अंक प्राप्त करने अनिवार्य ही होंगे और जो विद्याथीं इतने अंक प्राप्त न कर पायेगा उसे उनुप्तीर्ण घोषित कर दिया जाएगा। यदि कोई अध्यापक इन अंकों में अनियमित करता हुआ पाया जाएगा उसे भी दण्डित किया जाएगा।

मुझे इस बात का भी ज्ञान है कि परीक्षा के समय में बोर्ड में भी तथा परीक्षा केन्द्रों में भी अनियमितताओं का प्रयोग होता है। परीक्षक पर अनेक प्रकार के दबाव डाले जाते हैं। इसके लिए मुझे अब कठोर निर्णय लेने हैं तथा उन्हें कठोरता से ही लागू करना है। जो माता-पिता ऐसा करने का प्रयास करेंगे उन्हें निश्चय ही अब कम से कम दो महीने की कैद की सज़ा दी जाएगी। जो अध्यापक ऐसा करेंगे या इसमें सहायक होंगे उन्हें उनकी नौकरी से अलग किया जाएगा तथा जो बोर्ड के कर्मचारी इस कार्य में भाग लेते हुए पाए जायेंगे उन्हें भी नौकरी से तुरन्त अलग किया जाएगा। इसी प्रकार जो विद्यार्थी ऐसा करता हुआ पाया जाएगा उसका शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार समाप्त कर दिया जाएगा और उसे कठोर सजा भी देने की व्यवस्था होगी।

शिक्षा में चरित्र, नैतिकता के अतिरिक्त खेलों के प्रति भी विद्यार्थियों को आकर्षित करवाने की व्यवस्था होगी और जो विद्यार्थी अच्छे खिलाड़ी बनने के योग्य होंगे उन्हें सभी प्रकार की सुविधाएं प्रदान की जायेगी।

स्त्री शिक्षा- मैं जानता हूँ कि वर्तमान युग में स्त्री शिक्षा का भी विशेष महत्व है। अत: इस ओर ध्यान देना आवश्यक है। स्त्री शिक्षा के विषय में मेरा दृष्टिकोण है कि दसवीं कक्षा तक सभी लड़कियों को अनिवार्य रूप से शिक्षा दी जाय। इसके बाद जो प्रतिभावान् तथा मेहनती लड़कियाँ हों उन्हें ही उच्च शिक्षा के अवसर और सुविधाएं प्रदान की जाएं। स्त्रियों के लिए जो महत्वपूर्ण शिक्षा गृह विज्ञान से संबंधित है तथा बच्चों के मनोविज्ञान से जुड़ी है, उनकी व्यवस्था अत्यावश्यक है। आज समाज में नारी का विशेष योगदान है। उनकी शिक्षा के प्रति भी मैं विशेष ध्यान देना चाहता हूं ; उनके लिए भी नैतिक चारित्रिक और धार्मिक शिक्षा की विशेष व्यवस्था करने का पक्षपाती हूं। सहशिक्षा के अनुकूल मैं अपनेदेश में वातावरण नहीं देखता हूं। केवल उच्च शिक्षा के समय ही सहशिक्षा का मैं पक्ष लूगा। इस प्रकार स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए मैं अथक प्रयास करूंगा।

उपसंहार- आप शायद मेरी कल्पना के प्रति गम्भीर नहीं होंगे और इस पर हँसेगे लेकिन मैं इसमें आपका सहयोग चाहता हूं। आप इसकी हँसी न उड़ाइए बल्कि अपना सहयोग दीजिए तो यह सभी कुछ संभव हो जाएगा और जब मैं सबसे पहले अपना चरित्र और कार्य स्वच्छ रखूगा तब आप मेरी बातों पर विश्वास क्यों नहीं करेंगे। तो हम सब ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह मुझे शिक्षा मन्त्री बनने का अवसर दें ताकि मैं आपकी सेवा कर सकूं।

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