Essay on Unemployment in Hindi- बेरोजगारी की समस्या पर निबंध

In this article, we are providing Essay on Unemployment in Hindi. बेरोजगारी की समस्या पर निबंध- बेरोजगारी समस्या के समाधान के उपाय, बेरोजगारी का रूप, बेरोजगारी के कारण, Berojgari Par Nibandh in 150, 200, 300, 500, 1000 words For Class 1,2,3,4,5,6,7,8,9,10,11,12 Students.

Essay on Unemployment in Hindi- बेरोजगारी की समस्या पर निबंध

Berojgari ki Samasya Par Nibandh 300 words

स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से ही हमारे देश को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा है, इनमें से कुछ समस्याओं का समाधान कर लिया है, किन्तु कुछ समस्याएं निरंतर विकट रूप लेती जा रही है और इनमें से एक समस्या बेरोजगारी है । प्राचीन काल में सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारत देश में आज बेरोजगारी की समस्या विकराल हो चुकी है । लोगों के पास हाथ है, पर काम नहीं ‍. प्रशिक्षण है पर नौकरी नहीं . योजना और उत्साह है पर अवसर नहीं ।

बेरोजगारी क्या है?

बेरोजगारी का अर्थ – समाज में किसी भी व्यक्ति की उम्र यदि 18 से लेकर 25 तक हे और उस व्यक्ति को कार्य करने की योग्यता है तथा तत्पर है , मगर तो भी उसे कोई भी काम नहीं मिल पाता है तो उसे बेरोजगार कहा जाता है ।

भारत में बेरोजगारी को बढ़ाने वाले कारण !

जनसंख्या में वृद्धि : भारत में जनसंख्या की गति से वृद्धि, बेरोजगारी के एक प्रमुख स्थान में आती है । भारत की अभी जनसंख्या कुल 135 करोड़ है , यदि जनसंख्या ऐसे ही बढ़ती रही तो 1 दिन भारत में बेरोजगारी की समस्या विकराल हो जाएगी ।

मंद आर्थिक विकास: देश के धीरे आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप लोगों को रोजगार के कम से कम अवसर प्राप्त होते हैं , जिससे बेरोजगारी बढ़ती है ।

बेरोजगारी को किस तरह से नियंत्रण में लाया जा सकता है ?

जनसँख्या वृद्धि को नियंत्रित करना– अगर हमें बेरोजगारी को नियंत्रित करना है, तो सबसे पहले हमें जनसंख्या को नियंत्रित करना पड़ेगा ।

भारत में कृषि का विकास करना– भारत में बेरोजगारी को घटाने के लिए कृषि में नए साधन लाना, कृत्रिम खादों, उन्नत बीजों, सिंचाई योजनाओं तथा अलग-अलग प्रकार की खेती करके रोजगार के अवसर बढ़ाये जा सकते है।

शिक्षा पद्धति में सुधार करना– हमारे देश में शिक्षित बेरोजगारी की समस्या दिन-प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है। आज सभी युवक सिर्फ नौकरी की तरफ भाग रहे हैं, सभी को आज सिर्फ नौकरी चाहिए । फिर भी जहां तक उच्च शिक्षा का प्रश्न है, यह केवल उन्हीं लोगों के लिए खुली होनी चाहिए जो वास्तव में प्रतिभाशाली हो ।

Essay on Unemployment in Hindi | Unemployment Essay in Hindi 1500 words

रहिमन कहत सुपेट सौं, क्यों न भयौं तू पीठि।

रीते अनरीती करै, भरौ दिखावै दीठि॥ रहीम कवि पेट को संबोधित कर कहते हैं

हे पेट ! तू पीठ क्यों नहीं बन गया क्योंकि जब तू भूख से रोता है तब तू अनेक प्रकार के उपद्रव करता है और जब भरा होता है तब आंख दिखाता है।

भूमिका- जीवन में संघर्ष का लक्ष्य सुख प्राप्त करना है। जब जीवन में किसी भी प्रकार का आकर्षण नहीं रहता है तब जीवन भार रूप होता है और आकर्षण तब तक नहीं होता है जब तक कठिन संघर्ष के बाद लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती है। लक्ष्य-प्राप्ति होने पर जीवन मुस्कराता है। वर्तमान युग में संघर्ष बढ़े हैं और सुख-साधन होने पर भी उनकी प्राप्ति अति दुष्कर और कष्ट साध्य ही नहीं हुई अपितु असंभव भी हुई है। इसके मूल में अनेक कारण व्याप्त है। जीवन में भोजन, आवास तथा वस्त्र प्राथमिक आवश्यकताएं है। इनकी पूर्ति होने पर ही जीवन सहज होता है तथा प्रगति की ओर भी अग्रसर होता है। इनके अभाव । में समस्याओं के तूफान उमड़ते-घुमड़ते हैं और जीवन के प्रति घृणा उत्पन्न होती है। इससे ही अनेक अनैतिकताओं का जन्म होता है। कवि ‘पन्त’ के शब्दों में-

दरिद्रात पापों की जननी।

मिटे जनों के पाप, ताप, भय॥

सुन्दर हो अधिवास, वसन, तन।

पश पर फिर मानव की हो जय॥

बेरोजगारी का रूप–  बेरोजगारी की समस्या का अर्थ है किसी भी कार्य करने वालों की संख्या अधिक हो जाती है तथा काम की कमी हो जाती है तब बेकारी जन्म लेती है। भारत एक कृषि प्रधान देश है तथा इसकी अधिकांश जनसंख्या गाँव में ही निवास करती है। गांव में जीवन यापन करने का मुख्य साधन कृषि ही है। खेतों में कार्य करके फसल का उत्पादन करके जीविका के साधन एकत्रित किए जाते हैं। लेकिन क्योंकि हमारे देश के गांव के किसान साल भर में बारह महीने फसलें पैदा नहीं करते हैं अत: एक प्रकार से वे भी कुछ महीनों के लिए बेकार हो जाते हैं। यद्यपि यह भी बेरोजगारी के महीनों में सरकार से काम देने की माँग नहीं करता है। बेकारी की दूसरा रूप पढ़े लिखे लोगों से हैं। आज हमारे देश में पढ़े-लिखे बेरोजगारों की समस्या भयानक रूप धारण कर चुकी है। कॉलेज और विश्वविद्यालयों से उपाधि प्राप्त करने के पश्चात् स्नातक, डॉक्टर, इंजीनियर न तो कोई अपना व्यवसाय आरंभ करते हैं और न वे सरकारी नौकरी ही प्राप्त करते हैं। इन बेकारों की समस्या सबसे बड़ी और विकराल समस्या है। इनके अतिरिक्त समाज में ऐसे भी लोग हैं जो श्रम और मज़दूरी करके जीवन यापन करते हैं। इस प्रकार का श्रमिक वर्ग भी आज बेकार है। इस प्रकार ग्रामीण बेरोज़गार भी हैं तो शहर के बेरोज़गार भी हैं। पहली पंचवर्षीय योजना के अन्त में बेरोज़गारों की संख्या 53 लाख थी जो तीसरी योजना के अन्त में लगभग 96 लाख हो गई तथा सन् 1976 में बेरोज़गारी की संख्या बढ़कर लगभग दो करोड़ व्यक्ति हो गई थीं और आज भी यह संख्या निरंतर बढ़ी है घटी नहीं, अपितु आज यह समस्या बहुत ही विकट रूप धारण किए हुए है। इसका प्रमुख कारण यह है कि प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति नौकरी चाहता है शिक्षित व्यक्ति चाहे किसान का बेटा हो, या एक बड़े व्यापारी का शिक्षा के बाद उसका लक्ष्य नौकरी ही है। जितनी संख्या में प्रार्थी हैं, उतनी संख्या में नौकरियां नहीं हैं अत: शिक्षितों में बेकारी ने जन्म ले लिया।

बेरोजगारी की समस्या वास्तव में बहुत पुरानी है। अंग्रेज़ों के युग में शिक्षा के बहुमुखी विस्तार के अभाव में शिक्षितों में बेरोजगारी की समस्या खड़ी नहीं हुई थी। जो लोग शिक्षा प्राप्त करते थे, वे क्लर्क बनने में ही अपना अहोभाग्य समझते थे। स्वास्थ्य के साधनों की कमी के कारण मृत्यु संख्या अधिक होने से जनसंख्या के विस्फोट की भी समस्या नहीं थी, अत: अंग्रेज़ों के युग में बेकारी की समस्या ने उतना विकट रूप धारण नहीं किया। परन्तु स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् शिक्षा का बहुमुखी विकास हुआ, स्वास्थ्य में सुधार हुआ, परिणामतः अन्य विकासों के साथ-साथ बेकारी की समस्या का भी विकास होता गया।

एक अनुमान के अनुसार भारत में बेरोजगार लोगों की संख्या लगभग साढ़े बारह है। आज तो शायद बेकारों की संख्या और भी बढ़ गई होगी। दुःख तो उस समय के है जब शिक्षित भी बेकार घूमते हैं।

बेरोजगारी के कारण– भारत में बेकारी का पहला कारण है साधनों की कमी । दूसरे देशों में बेरोज़गार को काम में लगाने के लिए पर्याप्त साधन मिल जाते हैं, वहां भ में साधनों की कमी है। बेकार ग्रामीण नगर में जा कर क्या कर सकता है सिवाए मज़दरी के ? इसके लिए भी पर्याप्त साधन नहीं। दूसरा कारण भारत में कुटीर उद्योगो की बहन कमी है। जापान कुटीर उद्योगों में सबसे उन्नत देश हैं और भारत सबसे पिछड़ा हुआ। यह एक कृषिप्रधान देश है। यहां की 80 प्रतिशत जनता खेतीबाड़ी करती है। छ: महीने मेहनत करती है और छः महीने बेकार रहती है। इसके अतिरिक्त कृषि-योग्य भूमि में दिन-प्रतिदिन कमी होती जा रही है। परिणामतः किसान ग्रामों को छोड़ कर शहरों की ओर नौकरी की तलाश में भागने लगते हैं। कुछ किसान खेतीबाड़ी करना चाहते हैं फिर भी वे बेकार हैं। क्योकि उनके पास खेती के लिए ज़मीन नहीं है। इसके अतिरिक्त नगरों के समीप कृषि-योग्य भूमि में प्रतिदिन होने वाली कटौती भी किसानों को बेकार बना रही है।

पहले हमारी 90 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती थी। नगरों का प्रलोभन युवकों को ज्यादा ललचाता है। गांवों के प्रति उनका आकर्षण कम होता जाता है। गांवों में उनका जीवन स्वावलम्बी था पर वे पराधीन हो कर जीवन गुजारना ना चाहते हैं। शहरों की जनता नौकरी चाहती है और नौकरी न मिलने पर बेकारी का रोना रोती है।

आज के युग में शिक्षित व्यक्ति भी बेरोजगार है। उनके बेकार रहने का कारण शिक्षा प्रणाली का ठीक न होना है। आदमी नौकरी चाहता है। हर शिक्षित को नौकरी नहीं मिल सकती। नौकरी न मिलने पर वह बेकारी महसूस करता है।

निरंतर बढ़ती हुई जनसंख्या बेकारी की पंक्ति को भी भयावह रूप में लंबा करती चली जा रही है। यदि जनसंख्या पर नियंत्रण न हुआ तो यह संख्या और भी अधिक बढ़ेगी।

यह दुर्भाग्य की बात है कि हमारी शिक्षा हमारे युवकों में श्रम के महत्व को समझने की शक्ति पैदा नहीं करती। चाहे कृषक का पुत्र हो चाहे व्यापारी का पढ़-लिखकर वह हाथ से काम करना नहीं चाहता वह चाहता है नौकरी। चाहे वह नौकरी उसकी मर्यादा के अनुकूल भी न हो परिणामत: बेरोजगारी में दिन-प्रतिदिन वृद्धि हो रही है।

वास्तव में आज की ‘वाइट कॉलर’ सभ्यता इस बात के लिए दोषी है। कम वेतन पर बाबू जी तो कहे जाते हैं। यद्यपि अपने खेतों से अधिक अन्न पैदा कर सुखमय जीवन व्यतीत किया जा सकता है लेकिन बाबू जी बनने का मिथ्या आकर्षण नौकरी के लिए ललचाता है।

देश में टैक्निकल शिक्षा का अभाव है, जो है भी वह इतनी महंगी है कि प्रत्येक युवक इस शिक्षा को प्राप्त नहीं कर सकता। इसके अतिरिक्त टैक्निकल शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी हाथ से काम नहीं कर सकता। उसे प्रायौगिक शिक्षा इतनी कम दी गई होती है कि हाथ से काम करने से जी चुराता है। परिणामतः ऐसे युवक भी कोई कार्य आरम्भ न करके सर्विस करना चाहते हैं। दुर्भाग्य है कि विकासशील भारत में भी इन सभी लोगों को नौकरियाँ नहीं मिल सकतीं। यही कारण है कि प्रतिदिन बेकार इञ्जीनियरों की भीड़ देखने को मिलती है।

बेरोजगारी की समस्या के समाधान के उपाय– बेरोज़गारी की समस्या को दूर करने प्रथम उपाय यही हो सकता है कि गांव में किसान और ज़मीदारों के लड़के जो पढ़ लिख कर शहर की ओर भागते हैं तथा केवल नौकरी प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें रोक दिया जाये तथा उन्हें खेती करने के लिए अनेक साधन और सुविधाएं दी जानी चाहिए।

इस समस्या का समाधान शिक्षा पद्धति में व्यापक रूप से परिवर्तन करके हो सकता है। हज़ारों लड़के जो निरुद्देश्य कॉलेजों में प्रवेश कर डिग्री प्राप्त करते हैं तथा नौकरी की लाइनों में खड़े हो जाते हैं उन्हें टेक्नीकल शिक्षा दी जानी चाहिए तथा उनमें स्वावलम्बन की भावना उत्पन्न करनी चाहिए।

इस समस्या का समाधान करने के लिए देश में लघु उद्योग तथा कुटीर उद्योग धन्धों का विकास होना आवश्यक है। जिस समय अंग्रेज़ भारत में में आए थे उस समय हमारे देश में इस प्रकार के उद्योग विकसित थे अतः बेरोज़गारी भी इस भयावह रूप में नहीं थी। उन उद्योग धन्धों के नष्ट होने से ग्रामीण लोग शहर की ओर भागने लगे।

बेरोजगारी की समस्या का समाधान उसी स्थिति में संभव हो सकता है जबकि निरंतर बढ़ती हुई जनसंख्या पर रोक लगा दी जाए। यद्यपि परिवार नियोजन के माध्यम से यह कार्य हो रहा है परन्तु अभी तक इस उद्देश्य में पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं हुई है। यह कार्य तभी संभव हो सकता है जबकि सरकार अत्यन्त दृढ़ता पूर्वक परन्तु लोगों में जागृति उत्पन्न कर सके।

शिक्षित बेरोज़गारी में नौकरी के प्रति ज्यादा आकर्षण है उसके कारण समस्या बढ़ती है। यदि ये लोग स्वावलम्बन की भावना तथा श्रम के महत्व को समझ कर कार्य करें तो बेरोज़गारी की समस्या दूर हो सकती है। सरकारी नौकरी में रहने की आयु सीमा घटा कर भी यह समस्या हल हो सकती है।

उपसंहार-संस्कृत में कहा गया है-

“विभुक्षितः कि न करोति पापम्”

अर्थात् भूखा मनुष्य क्या पाप नहीं करता है। वर्तमान युग में फैली अनुशासनहीनता और अराजकता के मूल में भी बेकारी की समस्या एक प्रमुख कारण है। ‘खाली दिमाग शैतान का घर’ कहावत के अनुसार इस प्रकार के बेकार लोग उपद्रवी होते हैं। राजनीतिक पार्टियां उनका दुरुपयोग करती हैं। उन्हें ‘किराया’ पर लेकर दंगे-फसाद करवाए जाते हैं। सरकार का कर्तव्य है कि इस स्थिति से बचने के लिए युवकों में अपना काम करने के अवसर उपलब्ध करे। शिक्षा पद्धति में परिवर्तन आवश्यक है।

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