Essay on Kalpana Chawla in Hindi- कल्पना चावला पर निबंध

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Essay on Kalpana Chawla in Hindi- कल्पना चावला पर निबंध

भारतवर्ष महान पुरुषों और महिलाओं की भूमि है। यहाँ अनेक महान विभूतियों ने जन्म लेकर संसार में भारत के नाम को उज्ज्वल किया। कल्पना चावला भी उन्हीं में से एक महिला थी। आज के वैज्ञानिक इतिहास में उनका नाम हमेशा सुनहरे अक्षरों में लिखा रहेगा। वे भारत की ही नहीं बल्कि समूचे एशिया की प्रथम अंतरिक्ष महिला के रूप में जानी जाती हैं। आज भारत के प्रत्येक घर में उनका नाम बड़े आदर-सम्मान के साथ लिया जाता है। बाल्यावस्था से ही उनके मन में सितारों तक पहुँचने का सपना था। स्कली शिक्षा के काल में वे चाँद-सितारों और अंतरिक्ष के चित्र बनाती थीं। उनका सपना साकार हुआ और उन्होंने दो बार अंतरिक्ष की उड़ान भरी। कल्पना चावला का एकमात्र लक्ष्य था-अंतरिक्ष यात्री बनना लेकिन वे जीवंत स्वभाव की महिला थीं। भारत के शास्त्रीय संगीत से उन्हें अत्यधिक लगाव था। 

कल्पना चावला का जन्म हरियाणा के एक छोटे-से नगर करनाल में 1 जुलाई, 1961 को हुआ। उनके पिता का नाम श्री बनारसीदास चावला तथा माता का नाम श्रीमती संयोगिता देवी चावला है। कल्पना की दो बहनें और एक भाई हैं। अपने भाई-बहनों में वे सबसे छोटी थीं। उन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा करनाल के स्थानीय विद्यालय टैगोर बाल निकेतन में प्राप्त की। दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात कल्पना ने प्री-इंजीनियरिंग की शिक्षा स्थानीय दयाल सिंह कॉलेज से प्राप्त की। बाद में कल्पना चावला ने चंडीगढ़ स्थित पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से वैमानिक इंजीनियरिंग की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन 1982 में उन्होंने एम०एस-सी० करने के लिए अमेरिका के टेक्सास विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। 1988 के लगभग कल्पना चावला का विवाह अमेरिका के नागरिक ज्यां पियरे हैरिस से हुआ। अपने पति तथा मित्रों से प्रेरणा प्राप्त कर वे अंतरिक्ष विज्ञान में अधिकाधिक रुचि लेने लगीं।

कल्पना चावला को बचपन से ही हवाई जहाज के मॉडल बनाने का बहुत शौक था। आरंभ से ही उनके मन में अंतरिक्ष यात्रा बनने का संकल्प था। कल्पना चावला ने पायलट का लाइसेंस 1988 से 1994 के बीच सान फ्रांसिस्को में रहते हुए प्राप्त किया था। बाद में उन्होंने कलाबाजी उड़ान भी सीखी। कल्पना चावला के कैरियर की शुरुआत नासा एमेस शोध केंद्र में हुई। कैलीफोर्निया में उन्होंने एक शोध वैज्ञानिक के रूप में कार्य किया। 1994 में उन्हें नासा के लिए चुन लिया गया। यहाँ एक वर्ष तक कठोर परीक्षण प्राप्त करने के बाद वे अंतरिक्ष उड़ान के लिए चुन ली गई।

मार्च, 1995 में कल्पना चावला अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के 15वें समूह के उम्मीदवार के रूप में जॉनसन स्पेस सेंटर में भेज दी गई। इसके बाद उन्होंने अपने कदम पीछे नहीं हटाए। 1996 में कल्पना चावला ने वास्तविकता में छलाँग लगाई और उन्हें मिशन विशेषज्ञ का दर्जा प्राप्त हुआ। 19 नवंबर, 1997 को कोलंबिया अंतरिक्ष यान द्वारा उन्होंने अपनी प्रथम अंतरिक्ष उड़ान भरी। यह यान 17 दिन, 16 घंटे और 33 मिनट तक अंतरिक्ष में रहा। जब वे अपनी सफल उड़ान भरकर लौटीं तो उनके चेहरे पर सफलता की खुशी छाई हुई थी। इस उड़ान के बाद तो कल्पना चावला ने अपना समूचा जीवन ही अंतरिक्ष उड़ान विज्ञान को समर्पित कर दिया।

दूसरी बार कल्पना चावला को अंतरिक्ष यान कोलंबिया की शुद्ध उड़ान-एसटीएस-107 के लिए चुन लिया गया। इस उड़ान काल में उनके साथ छह अन्य वैज्ञानिक भी थे। वे अंतरिक्ष में 16 जनवरी, 2003 को गईं। 16 दिन अंतरिक्ष में रहने के बाद जब वे 1 फरवरी, 2008 को धरती की ओर लौट रही थीं, तब 25 लाख पुर्जा वाली चमत्कारी उड़ान मशीन कोलंबिया अंतरिक्ष में ही दुर्घटनाग्रस्त हो गई। टेक्सास-अरकंसास और लुसियाना के ऊपर कोलंबिया के अनेक टुकड़े बिखर गए और साहसी युवती कोलंबिया के विस्फोट में अपने छह अन्य साथियों के साथ इस संसार से विदा हो गई। कल्पना ने इस उड़ान में अंतरिक्ष में 760 घंटे बिताए नशा पश्वी के 252 चक्कर काटे। संभवतः विधाता को यह स्वीकार नहीं था कि यह युवती लौटकर फिर से भारत आती। कल्पना की कहानी दूसरे भारतीयों की सफलता की आम कहानियों की तरह नहीं थी। वीर नायिका की तरह अपना सपना पूरा करते हुए ही उसकी मृत्यु हुई लेकिन इस मृत्यु ने उसे राष्ट्रीय नायिका बना दिया।

यद्यपि कल्पना चावला को अमेरिका की नागरिकता प्राप्त थी तथापि उनके मन में अपने देश के प्रति अत्यधिक प्रेम स नगर के निवासियों, विशेषकर, टैगोर बाल निकेतन विद्यालय से उन्हें अत्यधिक प्यार था। यही कारण है कि करनाल सालय से प्रतिवर्ष दो विद्यार्थी नासा में आमंत्रित किए जाते हैं। भारत के बच्चों को संदेश देते हुए उन्होंने कहा था-‘‘भौतिक लाभ ही प्रेरणा के स्रोत नहीं होने चाहिए। ये तो आप आगे भी हासिल कर सकते हैं। मंजिल तक पहुँचने का रास्ता तलाशिए। कोटा रास्ता ज़रूरी नहीं कि सबसे अच्छा हो । मंजिल ही नहीं, उस तक का सफ़र भी अहमियत रखता है……….।’’

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