सी. वी. रमन पर निबंध- Essay on CV Raman in Hindi

In this article, we are providing information about CV Raman in Hindi- Short Essay on CV Raman in Hindi Language. चंद्रशेखर वेकेंट रमन / सी. वी. रमन पर निबंध

सी. वी. रमन पर निबंध- Essay on CV Raman in Hindi

Essay on CV Raman in Hindi

( Essay – 1 ) सी. वी. रमन पर निबंध- CV Raman Essay in Hindi

चंद्रशेखर वेकेंट रमन भारत के महान भौतिकी शास्त्री हुए हैं। इन्होंने भौतिकी विग्यान में अहम भूमुका निभाई है। इनके द्वारा प्रकाश विवितर्न कार्य के कारण उसे रमन ईफैक्ट के नाम से भी जाना जाता है। चंद्रशेखर वेकेंट का जन्म 7 नवंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिराचिरूपल्ली में हुआ था। इनके पिता का नाम चंद्रशेखर था जो कि भौतिकी के अध्यापक थे। इनकी माता का नाम पार्वती था जो कि संस्कारी महिला था। जब सी.वी. रमन 4 वर्ष के थे तब ये विशाखापतनम जातर रहने लगे।

शिक्षा- रमन ने शुरूआती पढ़ाई विशाखापतनम में ही की थी। उन्होंने 12 साल की कम उमर में ही मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। सन् 1903 में उन्होंने प्रेजीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया और वहाँ उन्होंने ने भौतिकी में प्रथम श्रेणी में आकर स्नातक पूर्ण की। उन्होंने मद्रास विश्व विद्यालय से गणित में एमए की डीग्री प्राप्त की थी।

कार्य- 1906 में रमन ने प्रकाश विवितर्न पर अपना पहला शोध प्रकाशित किया जिसमें लिखा था कि प्रकाश जू किसी छेद, कपड़े के कोने से गुजरती है तो कोने पर कई रंग की तरंगे सी बन जाती है जिसे विवितर्न कहते हैं। रमन ने कलकता में एकाउटैंट मैनेजर की नौकरी भी की थी। उसके बाद उन्होंने वैग्यानिक प्रीकश्न के लिए भारतीय परिष्द में अध्ययन किया। उन्होंने 21 फरवरी, 1928 को रमन प्रभाव को प्रकाशित किया जिसमें तरंग की लंबाई में अंतर हर पदार्थ के अनुसार अलग अलग होता है।

सम्मान- रमन प्रभाव के लिए उन्हें 1921 में भौतिकी नोबेल पुरूस्कार से सम्मानित किया गया था। 1930 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। हर साल 21 फरवरी को राष्ट्रूय विग्यान दिवस के रूप में मनाया जाता है।

मृत्यु- अपनी प्रयोगशाला में वह कार्य करते रहे और अंत में 21 नवंबर 1970 को उनकी मृत्यु हो गई थी।

सी.वी. रमन पहले भारतीय वैग्यानिक थे जिन्हें नोबल पुरुस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने विग्यान की प्रगति के मार्ग में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्हें पहले से ही आश्वासन था कि नोबल आवार्ड उन्हें ही मिलेगा इसलिए उन्होंने पहले ही स्वीडन की टिकट करवा ली थी। इनका मानना था कि अगर महिलाएँ विग्यान के क्षेत्र में जाए तो वह पुरूषों से बेहतर कर सकती है। सी.वी. रमन बहुत ही मेहनती थे और उन्हें बचपन से ही भौतिक विग्यान में रूची थी। इन्होंने दो महत्वपूर्ण प्रयोग कि रमन स्कैटरिंग और रमन ईफैक्ट जिनके लिए इन्हें हमेशा याद किया जाऐगा।

 

( Essay – 2 ) Long Essay on CV Raman in Hindi ( 500 words )

सर सी० वी० रामन एक महान वैज्ञानिक थे। वे पहले भारतीय और वैज्ञानिक थे जिन्हें विज्ञान में सन् 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यह सम्मान उन्हें अपने एक महत्वपूर्ण आविष्कार ‘रामन प्रभाव’ के लिए दिया गया था। रामन ने कठोर परिश्रम और सतत् प्रयोगों से पाया कि प्रकाश किरणों को नए पदार्थ में से होकर गुजारने पर स्पेक्ट्रम में कुछ नई रेखाएँ प्राप्त होती हैं। यही रामन प्रभाव का आधार था। उनका यह अन्वेषण और आविष्कार पदार्थों की आणविक संरचना समझने में बड़ा सहायक हुआ। इसकी सहायता से अब तक हजारों पदार्थों की सरंचना को समझा जा सका है। लेसर के आविष्कार ने रामन प्रभाव को महत्त्व और भी बढ़ा दिया है।

सर रामन ने चुम्बक और संगीत के क्षेत्र में भी अनेक अनुसंधान किये। उनका पुरा नाम चन्द्रशेखर वेंकट रामन था। उनका जन्म त्रिचनापल्ली स्थान पर 7 नवम्बर सन् 1888 को हुआ था। रामन बचपन से ही पढ़ने-लिखने में गहरी रुचि लेते थे। इनके पिता भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक थे। रामन को अपने पिता से बहुत प्रेरणा और सहायता मिली। रामन ने सन् 1904 में प्रेसीडेंसी कॉलेज, चेनई से बी०ए० की डिग्री प्राप्त की और फिर 1907 में भौतिक विज्ञान में एम०ए० की। वे उच्च शिक्षा के लिए बी०ए० के पश्चात् विदेश जाना चाहते थे, परन्तु स्वास्थ्य अच्छा न होने के कारण ऐसा नहीं कर सके। अपने विद्यार्थी जीवन में भी रामन ने भौतिक विज्ञान के कई नये और प्रशंसनीय कार्य किये। प्रकाश विवर्तन पर उनका पहला शोधपत्र सन् 1906 में प्रकाश में आया।

सन् 1907 में उन्होंने डिप्टी एकाउन्टेंट के पद पर कलकत्ता में नियुक्त किया गया। इस पद पर रहते हुए भी वे वैज्ञानिक अध्ययन और अनुसंधान में लगे रहे। वे वहां की विज्ञान प्रयोगशाला में अपना सारा फालतू समय लगाते थे। वहां वे भौतिकविद् आशुतोष मुकर्जी के संपर्क में आये। उनसे रामन को बड़ी प्रेरणा और मार्गदर्शन मिला। सन् 1917 में रामन सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देकर कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर बन गये। इसका प्रमुख कारण उनकी विज्ञान में गहरी रुचि थी। सन् 1921 में वे यूरोप की यात्रा पर गये। वहां से लौटकर वे अपने प्रयोगों में पुनः लग गये और कई महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले।

सन् 1924 में रामन को रॉयल सोसायटी ऑफ लंदन का सदस्य बनाया गया। यह अपने आप में एक बहुत बड़ा सम्मान था। सर रामन ने सन् 1943 में बैंगलोर के समीप रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की। इसी संस्थान में वे जीवन के अंत तक अपने प्रयोग करते रहे और अध्ययन रत रहे। सन् 1970 में इस महान भारतीय और वैज्ञानिक का देहांत हो गया। हम सब को सर रामन के कार्यों और उपलब्धियों पर बड़ा गर्व है। वे एक महान भौतिकशात्री और वैज्ञानिक के साथ-साथ महामानव भी थे। अभिमान और लोभ उन्हें छू भी नहीं पाया था। वे सतत् सत्य की खोज में लगे रहे और उसे प्राप्त किया। सभी भारतीय वैज्ञानिकों, युवा लोगों और विद्यार्थियों को उन के पद-चिन्हों पर चलने का प्रयत्न करना चाहिये। सन् 1958 में उन्हें लेनिन शांति पुरस्कार और इससे पूर्व 1954 में भारत रत्न प्रदान किया गया था।

#Chandrasekhara Venkata Raman / CV Raman Essay in Hindi

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