In this article, we are providing Essay on Friendship in Hindi. मित्रता पर निबंध, मित्रता का अर्थ, आदर्श मित्रों के उदाहरण, मित्र के लक्षण।
Essay on Friendship in Hindi- मित्रता पर निबंध
भूमिका- जीवन में प्रगति करने के लिए अनेक साधनों की आवश्यकता होती है। जीवन को सुखमय बनाने के लिए अनेक वस्तुओं और सुख साधनों की जरूरत होती है। परन्तु एक ही साधन ‘मित्रता के प्राप्त होने पर सभी साधन स्वयं ही एकत्रित हो जाते हैं। वास्तव में एक अच्छे मित्र की प्राप्ति सौभाग्य से ही होती है। मानव एक सामाजिक प्राणी है। मित्रता मनुष्य की सामाजिक भावना की चरम परिणति है। मित्र के सामने आते या उसका नाम लेते ही चेहरे का रंग बदल जाता है। अंग-अंग में आनन्द का रंग चढ़ जाता है, रोमांच हो उठता है। वाणी गद्गद् हो जाती है। बाहें आलिंगन के लिए फैल जाती है और मित्र को हृदय से लगाने से जो अपूर्व शक्ति मिलती है उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। जिस व्यक्ति का कोई मित्र नहीं, उसकी जीवन-यात्रा एक भार है, सारहीन है।
मित्रता का अर्थ- मित्रता का शाब्दिक सरल अर्थ है मित्र होना। लेकिन मित्र होने का तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि वे साथ रहते हों उनका स्वभाव एक जैसा हो, वे एक जैसा कार्य करते हों। मित्रता का अर्थ है जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का शुभचिंतक हो। अर्थात् परस्पर एक दूसरे के हित की कामना तथा एक दूसरे के सुख, उन्नति और समृद्धि के लिए प्रयत्नशील होना ही मित्रता है। मित्रता केवल सुख के ही क्षणों की कामना नहीं करती है। दुःख के क्षणों में भी मित्रता ढाल बन कर आती है और मित्र की रक्षा करने के लिए तत्पर होती है।
मित्रता के लिए कोई बनाए हुए नियम नहीं होते हैं अतः मित्रता किस से करनी चाहिए इस संबंध में निश्चित नियम निर्धारित नहीं हो सकते हैं। अवस्था के अनुसार ही मित्रता हो। सकती है। जैसे बालक, बालक के साथ ही रहना और मित्रता करना पसंद करता है तथा युवक, युवक के साथ ही, इसी प्रकार वृद्ध व्यक्ति भी वृद्धों के साथ ही मित्रता पसंद करते हैं। पर यह नियम अनिवार्य नहीं है। प्राय: देखा जाता है कि पुरुष, पुरुषों के साथ, स्त्रियां स्त्रियों के साथ ही मित्रता करती हैं। लेकिन यह भी अनिवार्य नियम नहीं है।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि मित्र वह साथी है जिसे हम अपने सभी रहस्यों, संकटों और सुखों के साथी बनाते हैं, जिससे हम प्रवृत्तियों और आदतों में भिन्न होने पर भी प्यार करते हैं और उसे चाहते हैं।
आदर्श मित्रों के उदाहरण-संस्कृत साहित्य में पंचतंत्र तथा हितोपदेश की कहानियां आदर्श मित्रों के उदाहरणों से भरी पड़ी हैं। एक अंधे और एक लंगड़े की कहानी भी सभी जानते हैं। इन कहानियों के अतिरिक्त भी मित्रता के उदाहरण मिलते हैं। रामायण में राम तथा लक्ष्मण भाई-भाई थे। लेकिन गौर करने पर हम जान लेते हैं कि वह भी मित्रता काआदर्श उदाहरण है। राम और लक्ष्मण की प्रवृत्ति भिन्न-भिन्न थी पर दोनों एक दूसरे के हित चिंतक रहे और अन्त तक उनकी मित्रता सच्ची बनी रही। इसी प्रकार राम ने सुग्रीव तथा विभीषण के साथ मित्रता स्थापित की ओर वह मित्रता उन्होंने निभाई भी। महाभारत में दुर्योधन तथा कर्ण की मित्रता का उदाहरण मिलता है।
कर्ण ने दुर्योधन की मित्रता निभाने के लिए अनेक प्रलोभन ठुकरा दिए तथा मित्र की रक्षा करने के लिए ही अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। कृष्ण और सुदामा की मित्रता को कौन नही जानता है। मित्रता के ये उदाहरण इस बात की पुष्टि करते हैं कि मित्रता केवल समान स्तर के व्यक्तियों में ही नहीं होती है। बानर को यदि पशु मानें तो राम ने पशुओं से भी मैत्री स्थापित की तथा दोनों पक्षों ने अपने आदर्श के अनुसार यह मैत्री निभाई भी है और यदि बानरों को उस युग की किसी जंगली और असभ्य जाति का प्रतीक भी मानें तब भी कहा जा सकता है कि वे जंगली बानर सभ्य व्यक्तियों की भांति राम के साथ मित्रता निभाने में सफल रहे हैं। यह भी कहा जाता है कि कुत्ता मनुष्य का मित्र होता है। अर्थात् मित्रता से मनुष्य और पशु के बीच के भावात्मक संबंध बन जाते हैं। अनेक बार ऐसे उदाहरण भी पढ़ने को मिलते हैं जब कुत्ते ने अपने मालिक से अपनी मित्रता निभाते हुए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। प्रसिद्ध विचारक फ्रेंकलिन ने कहा है कि जीवन में तीन ही सच्चे मित्र होते हैं—वृद्धावस्था में पली, हाथ का धन तथा पुराना कुत्ता। |
मित्र के लक्षण- बाल्यकाल की मित्रता दृढ़ आधारों पर स्थित नहीं होती। यह जल्दी-जल्दी टूटती और जुड़ती है। परन्तु ज्यों-ज्यों मानव प्रौढ़ावस्था को प्राप्त होता जाता है, त्यों-त्यों उसकी मित्रता में दृढ़ता आती जाती है। प्रौढ़ावस्था की मित्रता युवावस्था की मित्रता की तुलना में चंचल नहीं होती। युवावस्था की मित्रता यदि टूट जाए तो अनेक बार शत्रुता में बदल जाती है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल मित्र के विषय में लिखते हैं–विश्वासपात्र मित्र जीवन की एक औषधि है। सच्ची मित्रता में उत्तम वैद्य की सी निपुणता और परख होती है, अच्छी से अच्छी माता का-सा धैर्य और कोमलता होती है।”
इस कथन में आदर्श मित्र के लक्षण हैं। जब हम कुमार्ग गामी होते हैं तो मित्र हमें बराई रूपी बीमारी से औषधि बन कर बचाता है, वह हमारे सभी विकारों को जान लेता है, हमारी शारीरिक और मानसिक परेशानियों को समझ लेता है तथा जिस प्रकार मां का हृदय कोमल होता है और अपने पुत्र के दुःख से वह अत्यधिक दु:खी होती है उसी प्रकार मित्र भी मित्र की सेवा कर उसे दु:ख से बचाता है। गोस्वामी तुलसी दास जी ने मित्र के विषय में कहा है-
धीरज धर्म मित्र अरु नारी आपतकाल परखिए चारी।”
अर्थात् धैर्य, धर्म, मित्र और नारी की परीक्षा तो विपत्ति आने पर होती है। अत: सच्चा मित्र वही होता है जो दु:खों के समय साथ निभाता है। सम्पत्ति और सुख होने पर तो अनेक लोग मित्रता करने के लिए लालायित हो जाते हैं लेकिन दु:ख ही सच्चे मित्रों के पहचान करता है । कवि रहीम इसी तथ्य को प्रकट करते हैं
कहि रहीम सम्पत्ति सगे, बनत बहुत बहु रीत
विपत्ति कसौटी जे कसे, सोई सांचे मीत।
कभी-कभी यात्रा करते हुए भी अपरिचित लोगों के साथ परिचय हो जाता है। इस स्थिति में जितने समय तक उनका साथ होता है तब तक उनसे क्षणिक मैत्री भी बन जाती है। कभी-कभी ऐसे समय वे किसी भी प्रकार के संकट में सहायक सिद्ध होते हैं अतः वे मित्र ही है। आजकल पत्र-मित्रता का युग है और अनेक अवसरों पर देखा गया है कि यह पत्र मैत्री बहुत ही लाभदायक सिद्ध होती है, इससे जीवन को एक दिशा मिलती है। अत: इस प्रकार की मैत्री अच्छी मैत्री कही जाएगी।
सच्चा मित्र सदैव अपने मित्र की हित-कामना करता है। अत: कभी-कभी वह कठोर होकर भी मित्र को भला-बुरा कहता है। वह उसकी हर बात को मानकर ‘जी हजूरी नहीं करता है। परन्तु स्पष्ट रूप में उसकी बुरी बात को काट देता है और उसका समर्थन नहीं करता है।
अच्छा मित्र अपने मित्र की बुराइयों को सब के सम्मुख प्रकट कर उसे अपमानित नहीं करता है, अपितु मधुर शब्दों में उसे उसकी कमजोरियों और बुराइयों को प्रकट कर उसे सही मार्ग दिखाता है।
वह मित्र की अनुपस्थिति में उसकी प्रशंसा करता है, सही बातों में उसका समर्थन करता है। विद्यार्थी काल में मित्र अनेक रूपों में मित्र का सहायक सिद्ध होता है।
आदर्श मित्रता ऐसी होनी चाहिए जैसी कृष्ण और सुदामा की थी। आराम करते हुए श्री कृष्ण को द्वारपाल ने सुदामा के आने की बात कही। कृष्ण नंगे पांव दौड़ और सुदामा को हृदय से लगा लिया। गरीब सुदामा से भी कृष्ण का कैसा समान व्यवहार था। उसक पैरों की फटी हुई विवाइयों को देखकर कृष्ण रो उठे।
देखि सुदामा की दीन दशा, करुणा करके करुणानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुओ नहिं, नैनन के जल सों पग धोये।
उपसंहार- मित्रता वास्तव में वह खजाना है जिससे व्यक्ति किसी भी प्रकार की अच्छी वस्तु प्राप्त कर सकता है। इस खजाने में सद्गुण ही सद्गुण मिलते हैं। जीवन में मित्रता परखने के पश्चात् ही करनी चाहिए। केवल पहचान होने से ही मित्रता नहीं हो जाती है अपितु मित्रता की सुदृढ़ नींव तभी पड़ती है जब मित्र की धीरे-धीरे परख की जाती है। अंग्रेज़ी में एक सूक्ति है—मित्र वही है जो आवश्यकता के समय काम आए। जीवन में आवश्यकता के भी अनेक रूप होते हैं और सच्चा मित्र उन्हें अनेक रूपों में मित्र की सहायता करता है। सच्चा मित्र हमेशा हितैषी होता है। उसकी पहचान है-
कुपंथ निवारि सुपन्थ चलावा।
गुण प्रगटहि अवगुणहि दुरावा॥
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