Essay on Eid in Hindi- ईद पर निबंध

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Essay on Eid in Hindi- ईद पर निबंध

भूमिका- ईद मुसलमानों का बहुत बड़ा त्योहार है। सभी लोग महीनों से इसकी प्रतीक्षा करते हैं। गरीब-अमीर सभी अपनी सामर्थ्य के अनुसार इस त्योहार पर नए कपड़े बनवाते हैं और नए कपड़े पहनकर ही ईद की नवाज़ पढ़ने के लिए ईदगाह जाते हैं। घर-घर में स्वादिष्ट मीठी सिवइयाँ बनती हैं। इन्हें वे स्वयं खाते हैं और इष्ट-मित्रों और संबंधियों को भी खिलाते हैं। दुकानें तो बीसों दिन पहले से सिवइयों के बड़े-बड़े ढेरों से पटी रहती हैं।

चंद्र-दर्शन को लालायित- ईद का पूरा नाम ईदुलफ़ितर है। दूसरी ईद ईदुल्जुहा या बकरीद कहलाती है। ईदुलफ़ितर का त्योहार रमज़ान के महीने के बाद आता है। उन्तीसवीं और तीसवीं रमजान से ही ‘चाँद कब होगा’, ‘चाँद कब होगा’ की आवाज चारों ओर से सुनाई देने लगती है। जिस संध्या को शुक्ल पक्ष का पहला चाँद दिखाई पड़ता है, उसके अगले दिन ईदुलफ़ितर’ का पर्व उल्लास मनाया जाता है। कभी-कभी चंद्रोदय के समय पश्चिमी आकाश में बादल आ जाते हैं तब अटारियों पर चढ़कर चंद्र-दर्शन के लिए लालायित लोगों को बड़ी निराशा होने लगती है, परंतु तभी प्रायः ढोल पर डंके की चोट पड़ने की आवाज़ सुनाई देती है और बताया जाता है कि इमाम से खबर आ गई है कि चाँद दिखाई दे गया। रमजान का महीना समाप्त हुआ, कल ईद है। सभी लोगों के चेहरे पर एक नई चमक आ जाती है। रमज़ान के महीने में रोज़ा रखना मुसलमानों का फर्ज बताया गया है। रोज़े के दिनों में सूर्योदय से सूर्यास्त तक कुछ भी खाने-पीने की इजाजत नहीं है। सूर्यास्त के समय ही कुछ खा-पिकर रोजा खोला जाता है।

भाई-चारे का त्योहार– ईद हमारे देश का एक पर्व है। जिस प्रकार होली मिलन का त्योहार है। उसी प्रकार ईद भी भाईचारे का त्योहार है। ईद की नमाज़ के बाद मिलन कार्यक्रम ईदगाह से ही आरंभ हो जाता है। लोग आपस में गले मिलते हैं और एक-दूसरे को ईद की बधाई देते हैं। यह क्रम दिन भर चलता रहता है। बिना किसी भेद-भाव के लोग प्रेम से एक-दूसरे को गले लगाते हैं और अपने घर आने वालों को सिवइयाँ खिलाते हैं। हम जानते हैं कि हमारे देश में हिंदू, मुसलमान, सिक्ख, जैन, ईसाई आदि विभिन्न धर्मावलंबी साथ-साथ रहते हैं। ईद और होली जैसे मिलन त्योहारों पर वे विशेष रूप से प्रेमपूर्वक एक-दूसरे से गले मिलते हैं।

मेलों का आयोजन -ईद के दिन ईदगाह के आस-पास मेले भी लगते हैं। बच्चों और स्त्रियों के लिए वे विशेष रूप से आकर्षण के केंद्र होते हैं। इन मेलों में तरह-तरह की आकर्षक चीजें बेचने वाले दुकानदार अपनी-अपनी दुकानें सजाकर बैठते हैं। घर-गृहस्थी की भी बहुत-सी चीजें यहाँ मिलती हैं, जिन्हें खरीदने के लिए महिलाएँ महीनों । पहले से ईद का इंतजार करती हैं। बड़े लोग तो बच्चों की ही खातिर इन मेलों में पहुँचते हैं।

उपसंहार- सभी भारतीय पर्व चाहे ईद हो या होली, वैसाखी हो या बेड़ा दिन, पूरे समाज के त्योहार बन जाते हैं और देशवासियों में एक नई चेतना, जीवन में एक नई दिशा और परस्पर सौहार्द्र और सहयोग का एक नया वातावरण प्रस्तुत करते हैं। अपने जीवन की कठिनाइयों से मुक्त होकर वे पर्व के हर्ष और उल्लास में निमग्न हो जाते हैं।

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