Paropkar Essay in Hindi- परोपकार पर निबंध

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Paropkar Essay in Hindi

Paropkar Essay in Hindi- परोपकार पर निबंध

 

Paropkar Par Nibandh- परोपकार पर निबंध हिंदी में ( 250 words )

परोपकार (पर+उपकार) का अर्थ दूसरों का उपकार है। दूसरों के कष्टों, दुखों आदि दूर करना परोपकार है। जो परोपकार करता है, उसे परोपकारी कहते हैं। निस्वार्थ बुद्धि से किया गया परोपकार उत्तम श्रेणी का है।

जब बच्चा माँ के गर्भ में रहता है तभी परमात्मा उसके भोजन के लिए आवश्यक दूध से माँ के स्तनों को भर देता है । वह हमें स्वच्छ जल, स्वच्छ हवा, प्रकाश आदि देकर अपने परोपकार की बुद्धि का परिचय देता है।

प्रकृति में परोपकार की महिमा देखने को मिलती है। रहीम ने परोपकार का महत्व इस प्रकार बताया है :
तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पिये न पान।
कह रहीम, परं काज हित, संपति संचहि सुजान ॥

पेड़ फल नहीं खाते । सरोवर पानी नहीं पीता। पेड़ दूसरों को अपने . फल देते। जीव-जंतु सरोवर का पानी पीकर संतुष्ट होते हैं । इसी प्रकार सज्जन दूसरों के लिए संपत्ति का संग्रह करते हैं।

शिबि ने तोते को बाज़ से रक्षा करने के लिए अपने शरीर का मांस काटकर दिया था। राक्षसों को मारने के लिए इंद्र को दधीचि ने अपनी हड्डी का दान किया था। इसी कारण वे परोपकार के लिए प्रसिद्ध हैं।

परोपकार एक उत्तम गुण है। जिसमें यह गुण होता है, वह लोगों की प्रशंसा पाता। परोपकार के बिना यह समाज नहीं चल सकता। वह अनेक प्रकार का होता है। वह शारीरिक, आर्थिक, बौद्धिक आदि अनेक प्रकार का है। अकाल, भूकंप, युद्ध, संक्रामक रोग आदि से पीडित लोगों को परोपकार से राहत मिलती है।

भूखे को रोटी देना, सर्दी में नंगे को गरम कपड़े देना, बूढ़े को सरकारी अस्पताल ले जाना, अनाथ को सांत्वना देना आदि भी परोपकार हैं। विद्यार्थियों में इस गुण का विकास करना आवश्यक है।

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Paropkar Par Nibandh – परोपकार पर निबंध हिंदी में ( 300 to 400 words )

परोपकार ‘पर+उपकार’ शब्दों के मेल से बना है। इसका अर्थ है। दूसरों का उपकार (हित) करना। अपने निजी हित को महत्त्व न देकर किसी अन्य व्यक्ति या समाज के हित के लिए किया गया कार्य ही परोपकार कहा जाता है। परोपकार के लिए कुछ न कुछ त्याग अवश्य करना पड़ता है। इसलिए त्याग भावना परोपकार भावना का प्राण है।

परोपकार की भावना हमें प्रकृति के कण-कण में दिखाई देती है। सूर्य हमको प्रकाश और गर्मी देता है, चन्द्रमा प्रकाश और अमृत सी शीतलता देता है। मेघ जल बरसा कर प्राणियों की प्यास बुझाते हैं, अन्न उत्पन्न करते हैं, नदियाँ जल देती हैं, भूमि अन्न, फल, रत्न देती है। वायु प्राण दान करता है। वृक्ष हमें फल-फूल और छाया देते हैं। पशु भी परोपकार में पीछे नहीं। गाय-भैंस दूध देती हैं। बैल हल चलाते हैं। घोड़े गाड़ी खींचते हैं। कुछ प्राणी अपने शरीर से अन्य प्राणियों की भूख शान्त करते हैं। पशुओं के चमड़े से जूता बनता है, जो काँटों से हमारे पैरों की रक्षा करता है। इस प्रकार हमें सब जगह परोपकार की भावना दिखाई देती है।

इतिहास में भी परोपकारी व्यक्तियों के अनेक उदाहरण हैं महाष दधीचि ने देवता-समाज की रक्षा के लिए सहष अपने प्राण दे दिए । उनका हड्डियों से वज्र बना और उससे वृत्रासुर का वध हुआ। राजा शिाव न कबूतर के प्राणों की रक्षा के लिए भूखे बाज को अपने शरीर का माँस काट-काट कर दे दिया। रन्तिदेव ने भी स्वयं भूखे रहते हुए भी अपने हिस्से का भोजन भूखे याचक को दे दिया। भामाशाह ने भी मेवाड़ की रक्षा के लिए अपनी सम्पत्ति महाराणा प्रताप को अर्पित कर दी थी। परोपकार के कारण ही आज उनका यश सर्वत्र व्याप्त है। भूखे को भोजन देना, प्यासे को पानी पिलाना, अन्धों को मार्ग दिखाना, अशिक्षितों को शिक्षा दिलवाना, धर्मशाला, औषधालय और कुएँ बनवाना आदि परोपकार के ही रूप हैं।

परोपकार करने से हृदय प्रसन्न होता है, मन को संतुष्टि मिलती है। परोपकारी मनुष्य ही मनुष्य कहलाने का अधिकारी है। अतः अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को परोपकार अवश्य करना चाहिए। क्योंकि- ‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई।

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Long Paropkar Essay in Hindi परोपकार पर निबंध हिंदी में ( 600 to 700 words )

कविवर रहीम लिखते हैं-

‘तरुवर फल नहिं खात हैं, सरबर पियहिं न पान।।

कहि रहीम परकाज हित, संपत्ति संचहि सुजान।।

भगवान ने प्रकृति की रचना इस प्रकार की है कि उसके मूल में परोपकार ही काम कर रहा है। उसके कण-कण में परोपकार का गुण समाया है। वृक्ष अपना फल नहीं खाते, नदी अपना जल नहीं पीती, बादल जलरूपी अमृत हमें देते हैं, सूर्य रोशनी देकर चला जाता है। इस प्रकार सारी प्रकृति परहित के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करती रहती है।

‘परोपकार’ दो शब्दों ‘पर’ + ‘उपकार’ के मेल से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है-दूसरों का भला । जब मनुष्य ‘स्व’ की संकुचित सीमा से बाहर निकलकर ‘पर’ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देता है, वही परोपकार कहलाता है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने भी कहा है-‘मनुष्य वही जो मनुष्य के लिए मरे’ । परोपकार की भावना ही मनुष्य को पशुओं से अलग करती है अन्यथा आहार, निद्रा आदि तो मनुष्यों और पशुओं में समान रूप से पाए जाते हैं। परहित के कारण ऋषि दधीचि ने अपनी अस्थियाँ तक दान में दे दी थीं। महाराज शिवि ने एक कबूतर के लिए अपने शरीर का माँस तक दे दिया था तथा अनेक महान् संतों ने लोक-कल्याण के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया था।

परोपकार मानव का सर्वश्रेष्ठ धर्म है। मनुष्य के पास विकसित मस्तिष्क तथा संवेदनशील हृदय होता है। दूसरों के दुःख से दुखी होकर उसके मन में उनके प्रति सहानुभूति पैदा होती है और वह उनके दुःख को दूर करने का प्रयत्न करता है तथा परोपकारी कहलाता है। परोपकार का सीधा संबंध दया, करुणा और संवेदना से है। सच्चा परोपकारी करुणा से पिघलकर हर दुखी प्राणी की सहायता करता है। ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ उक्ति भी परोपकार की ओर संकेत करती है।

परोपकार में स्वार्थ की भावना नहीं रहती। परोपकार करने से मन और आत्मा को शांति मिलती है। भाईचारे तथा विश्व-बंधुत्व की भावना बढ़ती है। सुख की जो अनुभूति किसी व्यक्ति का संकट दूर करने में, भूखे को रोटी देने में, नंगे को कपड़ा देने में, बेसहारा को सहारा देने में होती है, वह किसी अन्य कार्य करने से नहीं मिलती। परोपकार से अलौकिक आनंद मिलता है।

आज का मानव भौतिक सुखों की ओर बढ़ता जा रहा है। इन भौतिक सुखों के आकर्षण ने मनुष्य को बुराई-भलाई से दूर कर दिया है। अब वह केवल स्वार्थ-सिद्धि के लिए कार्य करता है। आज मनुष्य थोड़ा लगाने तथा अधिक पाने की इच्छा करने लगा है। जीवन के हर क्षेत्र को व्यवसाय के रूप में देखा जाने लगा है। जिस कार्य से स्वहित होता है, वही किया जाता है, उससे चाहे औरों को कितना ही नुकसान उठाना पड़े । पहले छल-कपट, धोखे, बेईमानी से धन कमाया जाता है और फिर धार्मिक स्थलों अथवा गरीबों में थोड़ा धन इसलिए बाँट दिया जाता है कि समाज में उनका यश हो जाए। इसे परोपकार नहीं कह सकते। महात्मा ईसा ने परोपकार के विषय में कहा था कि दाहिने हाथ से किए गए उपकार का पता बाएँ हाथ को नहीं लगना चाहिए। पहले लोग गुप्त दान दिया करते थे। अपनी मेहनत की कमाई से किया गया दान ही वास्तविक परोपकार होता है। न केवल मनुष्य अपितु राष्ट्र भी स्वार्थ केंद्रित हो गए हैं, इसीलिए चारों ओर युद्ध का भय बना रहता है। चारों ओर अहम् और स्वार्थ का राज्य है। प्रकृति द्वारा दिए गए निःस्वार्थ समर्पण के संदेश से भी मनुष्य ने कुछ नहीं सीखा। हजारों-लाखों लोगों में से विरले इंसान ही ऐसे होते हैं, जो पर-हित के लिए सोचते हैं।

परोपकारी व्यक्ति का जीवन आदर्श माना जाता है। वह सदा प्रसन्न तथा पवित्र रहता है। उसे कभी आत्मग्लानि नहीं होती, वह सदा शांत मन रहता है। उसे समाज में यश और सम्मान मिलता है। वर्तमान युग के महान् नेताओं महात्मा गांधी, सुभाषचंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक आदि को लोक-कल्याण करने के लिए सम्मान तथा यश मिला। ये सबै पूजा के योग्य बन गए। परहित के कारण गांधी ने गोली खाई, ईसा सूली पर चढ़े, सुकरात ने ज़हर पिया। किसी भी समाज तथा देश की उन्नति के लिए परोपकार सबसे बड़ा साधन है। हर व्यक्ति का धर्म है कि वह परोपकारी बने। कवि रहीम ने परोपकार की महिमा का वर्णन इस प्रकार किया है

‘हिमन यों सुख होत है उपकारी के अंग।

बाटन वारे को लगे ज्यों मेंहदी के रंग।

अर्थात् जिस प्रकार मेंहदी लगाने वाले अंगों पर भी मेंहदी का रंग चढ़ जाता है, उसी प्रकार परोपकार करने वाले व्यक्ति के शरीर को भी सुख की प्राप्ति होती है।

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इस लेख के माध्यम से हमने Paropkar Par Nibandh | Paropkar Essay in Hindi का वर्णन किया है और आप यह निबंध नीचे दिए गए विषयों पर भी इस्तेमाल कर सकते है।

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