In this article, we are providing Sadachar Essay in Hindi. सदाचार पर निबंध in 500 words.
Sadachar Essay in Hindi- सदाचार पर निबंध
भूमिका- मानव जीवन का सर्वोत्तम गुण सदाचार ही है। यह सभी धर्मों का सार है। यह मनुष्य को उच्च एवं वंदनीय बनाता है। इसके अभाव में मनुष्य समाज में सम्मान नहीं प्राप्त कर सकता। किसी विद्वान् का कथन है’धन नष्ट हो गया तो कुछ नष्ट नहीं हुआ, स्वास्थ्य नष्ट हो गया तो कुछ नष्ट हुआ, लेकिन चरित्र नष्ट हो गया तो सब कुछ नष्ट हो गया।” सदाचार के समक्ष धन और स्वास्थ्य तुच्छ हैं। यह एक दैवी शवित है। वास्तव में सदाचार ही सर्वश्रेष्ठ मानव-धर्म है।
सदाचार सर्वोत्तम मित्र के रूप में- सदाचार मनुष्य का सबसे अच्छा मित्र है। सदाचारी में आत्म-विश्वास होता है। वह निर्भीक होता है। वह असफल होने पर भी साहस नहीं छोड़ता है। सदाचारी असत्य तथा बेईमानी से दूर रहता है। भावनाओं से पवित्र होता है। वह जानता है कि दूसरों को पीड़ा पहुंचाना सदाचार की राह से भटकना है। सभी दार्शनिक तथा धर्म गुरुओं ने सदाचार की महिमा का प्रतिपादन किया है।
सदाचारी के गुण- सदाचारी में अनेक गुण विद्यमान होते हैं। वह सत्य का अनुगामी होता है। वह काम, क्रोध, दूर रहता है। स्पस्टवाद होने पर भी दूसरों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचता। वः दूसरों के कष्टोँ का निवारण दूर रहता है।स्पष्टवादी होने पर भी दूसरों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाता। वह दूसरों के कष्टों का निवारण करने के लिएँ सदैव उद्यत रहता है।
महत्व- सदाचार के अभाव में मानव तथा शत्रु में भेद स्थापित करना कठिन है। सदाचार के बल पर ही मानव सर्वोच्च प्राणी मन गया है। हमारे ऋषियों को सदाचारी होने के कारण ही इतना मान तथा सम्मान मिला है। इसी गुण के कारण वे मार्ग दर्शक बन सके। गोखले, तिलक, गाँधी आदि नेता सदाचारी होने के कारण जनता के कठोहार बन सके। संसार सदाचारी का सम्मान करता है। लोगों के हृदय में उसके प्रति श्रद्धा होती है। उसका जीवन सुखी और शांतिमय होता है। सदाचारी व्यक्ति के सत्संग में सद्गुणों का विकास होता है। मार्ग से भटका हुआ व्यक्ति भी संमार्ग पर चलने लगता है।
कतिपय उदाहरण- भारत का इतिहास सदाचारी मानवों की जीवन गाथाओं से भरा पड़ा है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम सदाचार की साकार प्रतिमा थे। शिवजी तथा महाराणा प्रताप के उज्वल चरित्र से भारत का इतिहास आलोकित है। स्वामी रामतीर्थ, दयानन्द, विवेकानंद अदि ऋषियों ने देश-विदेश का भ्र्मण करके सदाचार की मशाल को प्रज्वलित किआ ।
चरित्र निर्माण के साधन– चरित्र निर्माण के तीन प्रमुख साधन है- सत्संग, अध्यन, अभ्यास । सदाचारी बनने के लिए महान् चरित्र वालों का सत्संग अपेक्षित है। सद्गुणों को विकसित करने वाले ग्रंथों का अध्ययन आवश्यक है। अध्ययन के माध्यम से जो उत्तम संस्कार किये जाएँ उन्हें सतत् अभ्यास से जीवन में ढालना चाहिए।
उपसंहार- सफल एवं सार्थक जीवन के लिए सदाचारी होना आवश्यक है। उत्तम चरित्र का प्रभाव व्यापक एवं अचूक होता है। चरित्र का हास होने से मानव को अनेक दु:खों और कष्टों का सामना करना पड़ता है। समाज के लोग उसे हेय दृष्टि से देखते हैं। सदाचारी का तो केवल भौतिक शरीर ही नष्ट होता है। उसकी यश ज्योति संसार में बिखरी रहती है। सदाचार व्यक्तिगत, राष्ट्रीय तथा सामाजिक उन्नति का स्रोत है। सदाचारी व्यक्तियों के चरण चिहनों पर युग चलता है।
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