Essay on Rainy Season in Hindi- वर्षा ऋतु पर निबंध

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Essay on Rainy Season in Hindi- वर्षा ऋतु पर निबंध

भूमिका- सूर्यदेव अपनी सीधी किरणों से आग बरसा रहे थे। पृथ्वी तपी लोहे की चादर बनी बैठी थी, आग उगल रही थी। पानी-पानी की पुकार थी। गर्मी के कारण सांस लेने के भी लाले पड़े हुए थे। अंग-अंग को झुलस देने वाली लू चल रही थी। जीव मात्र का गला सूख रहा था। तीव्रतर ताप भाप बन कर जीवन को संतप्त कर रहा था। पपीहा निरीहावस्था में पी-पी रटने लगा। पुरवैया चली। कलियों ने आंखें खोलीं। मोरों ने शोर मचाया। काले-काले विशालकाय मेघ परस्पर गरज-गरज कर भिड़ने लगे, चपला चमकने लगी, और मोटी-मोटी धाराएं फूट पड़ीं। पृथ्वी पर पहुंचते ही इन्होंने नदी-नाले एक कर दिए, संसार जलमय हो गया। सूर्य कहीं सो गया या खो गया कुछ पता नहीं और लगी झड़ियां बरसने। उफ! वर्षा, निरन्तर वर्षा, प्रलयकारी वर्षा। पेड़ों की पत्तियों धुल गई। निखर गई, बल्लियां नाचने लगीं। मालती का मलिन मन मधुर हो गया। चमेली अकेली ही हंसने लगी। रात की रानी अपनी मधुर महक से मानव मात्र के मन को मोहित करने लगी। मेहंदी ने सुख-सांस लिया, वर्षा का आगमन हुआ। आम टपकने लगे। जामुन रस से भर गई।

वर्षा ऋतु का महत्त्व- वर्षा ऋतु का आरम्भ आषाढ़ मास से होता है और यह आश्विन के महीने तक रहती है। इस क्रतु को चौमासा भी कहते हैं। इस ऋतु के समय कोई भी लोग यात्रा पर जाना पसन्द नहीं करते हैं। प्राचीन काल में साधुजन तथा राजा आदि भी इस ऋतु में देश भ्रमण तीर्थ या आक्रमण के लिए प्रस्थान नहीं करते थे। यह सत्य है कि यदि बसन्त ऋतुराज है तो वर्षा उसके राज्य की आधारशिला है। यदि वर्षा नहीं तो जीवन भी नहीं। वर्षा ही खेतों में अनाज पैदा करती है, वर्षा ही धरा को शस्य श्यामल बनाती है।

वर्षा ऋतु का अपना महत्व है। वर्षा होने से खेतों की सिंचाई होगी और फसल पैदा होगी। अनाज पैदा होगा तो लोग खुशी से झूमेंगे, भरपेट खायेंगे और उनकी चिन्ता दूर हो जायेगी। मंहगाई नहीं होगी। नदी-नाले, सर-सरोवर जल से भर जायेंगे और वन के पशु-पक्षियों जीवधारियों की प्यास शान्त करेंगे। चातक और प्यासा पपीहा अपनी प्यास बुझाएंगे। धरती भी धुल जायेगी तथा कूड़ा-कचरा बह जाएगा। जलवायु स्वच्छ और पवित्र होगी। आम की डालियां मीठे फलों से लद जायेगी। कृषक झूम उठेगा, गा उठेगा–

पानी बरसे, ह न पावे

तब खेती भी मजा दिखावे।

वर्षा न हो तो सब योजनाएं धरी रह जाती हैं। विद्युत भी तो पानी से ही उत्पन्न की जाती है, तभी तो संस्कृत में जल का पर्यायवाची शब्द जीवन है। क्योंकि गर्मियों में पानी ही ज़िन्दगी है और खेती-बाड़ी के लिए भी जल परम आवश्यक है। जल के अभाव से खेती सूख जाएगी और खेती के सूखने से जीवन अस्तव्यस्त हो जाएगा।

जीवन में एकरसता नीरसता उत्पन्न करती है। दुःख के बाद सुख, सुख के बाद दुःख इस तरह एक-दूसरे के साथ चिपके हुए हैं जिस तरह प्रकाश के साथ अन्धेरा। बसन्त की। सुखद सुहावनी पवन के पश्चात् हमारे सामने आती है गर्मी की भयंकर तपती लु, बसन्त के फूलों के महत्त्व के पश्चात् और हरी-भरी धरा के पश्चात् हमारे सामने आती है, गर्मी की सुखी हुई धरा की क्रान्ति। ज्येष्ठ और आषाढ़ के महीनों में भगवान् सूर्य भी खूब तपता है। लोग बादल को याद करते हैं और कहते हैं-

रे घन किन देशन में छाए गर्मी बहुत भई।’

आखिर उनकी प्रार्थना पर सावन महीने में बादल छा जाते हैं। यूं तो बादल का आरम्भ आषाढ़ मास में ही कुछ न कुछ होने लगता है। जैसे कवि कालिदास ने अपने मेघदूत में लिखा है-

‘आषाढ़स्य प्रथम दिवसे मेघाश्लिष्ट सानुम्।’

अर्थात् आषाढ़ के पहले दिन ही बादल ने पहाड़ की चोटी को छुआ। पर असली वर्षा का महीना सावन और भादों ही होता है। वर्षा ऋतु के आने पर गर्मी का प्रकोप शान्त होता है। किसान कन्धों पर हल उठाए खेतों को जोतने के लिए जाते हैं। वर्षा के स्वागत के लिए सभी लोग खुशियां मनाते हैं।

वर्षा में प्रकृति की रमणीयता- वर्षा ऋतु भी चंचला जैसी है। अभी चमकती हुई धूप थीं और क्षण भर में आकाश बादलों से घिर जाता है और छम-छम बारिश होने लगती है। लोग बरसात में बिना छतरी के नहीं चलते। धूल खत्म हो जाती है। जिस समय वर्षा होती है उस समय हवा बहुत ठण्डी ठण्डी होती है। परन्तु जैसे ही वर्षा खत्म हो जाए और धूप निकल आए, उमस बहुत बढ़ जाती है। शरीर पर चिनगियां सी फूटने लगती है जिसे पित्त कहते हैं। वर्षा के दिनों में वृक्षों की छाया में बैठने में बड़ा आनन्द आता है। तभी तो पंजाबी में कहावत है

‘जेठ आषाढ़ कुक्खी सावन भादों रुक्खीं।

अर्थात् ज्येष्ठ आषाढ़ के दिन घर में बिताने चाहिएं और सावन भादों के दिन नदी के किनारे वृक्षों की छाया में। वर्षा ऋतु के आगमन पर किसान तो फूले नहीं समाता है धरती में भी उल्लास छाया रहता है। सावन और भादों के इन दो महीनों में झूले पड़ जाते हैं और युवतियां झूला-झूलती हुई मधुर कण्ठ में गाने लगती हैं। वर्षा होने से चारों ओर हरियाली छा जाती है। मल्हार के गीतों के साथ मानों धरती भी खुश हो जाती है और हरी चदरिया ओढ़कर फूली नहीं समाती है। ऋतुओं की रानी वर्षा बच्चों को विशेष प्रसन्नता देती है। वे नंगे होकर वर्षा की बौछारों का आनन्द लूटने निकलने लगते हैं। तुलसीदास जी ने भी ‘मानस’ में वर्षा ऋतु के सौन्दर्य का वर्णन किया है

वर्षा काल मेय नम छाए। गरजत लागत परम सुहाए।

दामिनी दमक रही धन माहि। खल की प्रीति यथा थिर नाहीं॥

वर्षा में चाहे कितने भी दोष हो पर लोग बहुत खुशी मनाते हैं। बच्चे उस दिन मां को कह कर खीर और मालपुए बनवाते हैं या फिर पकौड़े बनाते हैं। वर्षा में खीर खाने का महत्त्व बहुत अधिक है। पंजाबी में कहावत हैं-

‘सावन खीर न खादी, क्यों आया अपराधी।’

अर्थात् यदि सावन मास में खीर नहीं खाई तो अपने जीवन को अपराध युक्त समझो और समझो कि इस संसार में बेकार आया है। गांवों में किसान इस समय कजरी या आल्हा गाया करते हैं। शहरों की स्त्रियां इस ऋतु में एक त्योहार मनाती है जिसे ‘तीज तीयां’ कहते हैं। यह त्योहार पंजाब में विशेष रूप से मनाया जाता है। इस त्योहार में स्त्रियां नाचती हैं और बोलियाँ गाती हैं।

उपसंहार- वर्षा में प्रकृति भी नई दुल्हन के समान सजी हुई होती है। नीला आकाश जो बादलों से घिरा हुआ है, मानों प्रकृति की नीली साड़ी है। बिजली की चमक प्रकृति की दन्तपंक्ति है। जुगनू की चमक उसके नाक की नथ के मोती की चमक है। कोयल और पपीहे के मुंह से वह बोलती है। वर्षा की बूंदें उसके गले में पहना मोती का हार है। इस ऋतु से सब प्रसन्न होते हैं, नहीं प्रसन्न होती तो केवल वियोगिनी। वह आक और जबास के पत्तों की तरह मुझ जाती है। वर्षा ऋतु में पहाड़ों का दृश्य सुन्दर और सुहावना होता है। एक ओर वर्षा ऋतु जहाँ प्रकृति को रमणीय और सुख कर बनाती है दूसरी ओर उसके आगमन से अनेक लोग व्याकुल भी हो जाते हैं। फुटपाथ, सड़कों, झोंपड़ियों और झुग्गियों में जीवन व्यतीत करने वाले निर्धन लोग कठिनाई से अपना जीवन व्यतीत करते हैं। भीगी जगह में भीगे वस्त्र पहन कर ही वे रहते हैं। वर्षा के कारण कीचड़ भी हो जाता है और इससे मच्छर भी पैदा होते हैं। अनेक प्रकार के रोग भी इस समय फैलने लगते हैं। अतिवृष्टि से अनेक बार भयानक हानि भी उठानी पड़ती है। मकान टूटते हैं, पुल बहते हैं, सड़के टूट जाती हैं, यातायात में बाधा पड़ती है तथा बाढ़ आने से बहुत नुकसान होता है। इस समय पाचन शक्ति की शिथिल हो जाती है। वर्षा का रौद्ररूप भयावह होता है।

Spring Season essay in Hindi

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