हिमाचल प्रदेश पर निबंध- Essay on Himachal Pradesh in Hindi

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हिमाचल प्रदेश पर निबंध- Essay on Himachal Pradesh in Hindi

भारत की प्राकृतिक छटाएँ इसे अपूर्व सौंदर्य से मण्डित करती हैं। दक्षिण में इसके चरणों को सागर की लहरें धोती है तो उत्तर में हिमालय की श्वेत चोटियाँ इसका मुकुट बनाती हैं। हिमालय की गोदी में बसा हिमाचल प्रदेश इसी प्राकृतिक सौंदर्य का एक अंश है। लम्बे और घने वृक्षों से लदे वन और छोटी-छोटी शैल-मालाएँ, छोटे-छोटे नाले और नदियां, तीर्थ और मन्दिर, शीतल-मन्द-सुंगन्धित बहती हुई हवा, हरियाली और पुष्पों। के मनमोहक रंग हिमाचल को मानो देवभूमि बनाते हैं। सजी-धजी प्रकृति यहाँ सबका मन मोह लेती है।

पूर्ण राज्य के रूप में- हिमाचल प्रदेश का गठन 15 अप्रैल, 1948 को इस पहाडी प्रदेश को 31 छोटी बड़ी रियासतों को मिलाकर किया गया था। तब यह ‘ग’ श्रेणी का राज्य बना था लेकिन बाद में इसका दर्जा घटा कर इसे केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया। राज्य के राजनीतिक नेताओं ने तत्कालीन मुख्यमन्त्री डा. बलवन्त सिंह परमार के नेतृत्व में हिमाचल को पूर्ण राज्यत्व दिलाने के लिए वर्षों तक शांतिपूर्ण संघर्ष किया और अन्त में सफल हुए।

भारतीय गणतन्त्र का अठारहवां राज्य हिमाचल प्रदेश पहाड़ी लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतीक है। यहां के लोगों के वर्षों के अनवरत संघर्ष के फलस्वरूप वर्तमान रूप में इस राज्य का अभ्युदय 25 जनवरी, 1971 को हुआ जब प्रधानमन्त्री स्वर्गीय श्रीमती इन्दिरा गांधी ने विधिवत् एक समारोह में इसका उद्घाटन किया।

ऐतिहासिक और भौगोलिक पृष्ठभूमि-हिमाचल प्रदेश की सीमाएं पंजाब एवं जम्मू कश्मीर के साथ जुड़ी हुई हैं। यह भारत के छोटे राज्यों में से एक पहाड़ी राज्य है। जिसकी राजधानी शिमला है। देवभूमि और ऋषि मुनियों की यह तपोभूमि है। माण्डूक्य ऋषि ने यहाँ उपनिषद् की रचना और महर्षि व्यास ने महाभारत जैसे विशाल काव्य की सृजना की। इतिहास बताता है कि इस प्रदेश में हर्षवर्धन ने सातवीं शताब्दी में तथा आठवीं शताब्दी में मुक्तादित्य का राज्य-शासन यहाँ रहा। पन्द्रहवीं शती में राजा केहर सिंह ने यहां राज किया। अठारहवीं शती में गोरखों ने यहाँ के बुशैहर पर आक्रमण किया लेकिन वे हार कर भाग गए। उसके पश्चात् यह प्रदेश अंग्रेजी सरकार के अधीन हो गया और इस प्रदेश के शासन को राजा महेन्द्र सिंह, उसके पुत्र शमशेर सिंह और पौत्र रघुनाथ सिंह ने चलाया।

स्वतंत्रता का युग आने के बाद हिमाचल ने भी करवट बदली और यह एक पूर्ण राज्य बना। इसके प्रमुख जिलों में कांगड़ा, ऊना, किन्नौर, कुल्लू, चम्बा, विलासपुर, मण्डी, सोलन, शिमला, सिरमौर, हमीरपुर तथा लाहौल और स्पीती हैं।

पहाड़ियों से घिरा और उनके गोद में बसे हिमाचल की जलवायु अत्यंत स्वास्थ्य वर्धक है। घने जंगल, बर्फ से लदी चोटियां, बहते-झरते नदी, नाले झरने इसके आकर्षण है।

प्राकृतिक सौन्दर्य और पर्यटन-स्थल-हिमालय के वक्ष पर फैले इस राज्य में प्रकृति ने उन्मुक्त भाव से सौन्दर्य को चहुं ओर छिटकाया है। समूचे राज्य में यत्र-तत्र अनेक सौन्दर्य-स्थल और पर्यटन-स्थल हैं। हिमाचल की राजधानी शिमला है, जिसे पर्वतों की रानी कहा जाता है। कुफ्री, नालदेरा, चम्बा, मंडी, डलहौजी, चायल, कांगड़ा, कुल्लू, मनाली, पाओंटा आदि स्थान अपने सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध हैं। प्रतिवर्ष हज़ारों पर्यटक यहाँ आते हैं। और प्राकृतिक दृश्यों का आनन्द उठाते हैं। हिमाचल को भारत का स्विट्ज़रलैंड मान लिया। जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। चम्बा का मिंजर मेला, रामपुर बुशहर का लवी मेला, कुल्लू का दशहरा, कुफ्री का वार्षिक स्क्रीइंग उत्सव जगत् प्रसिद्ध हैं। बोर्टिंग के लिए रेणुका, रिवाल्सर तथा गोविन्दसागर, मछली के शिकार के लिए रोहड़, वरोट तथा गिरी नदी आदर्श स्थान हैं।

हिमाचल की मनोहर पर्वत श्रृंखलाओं में सभी का मन अटकता है गोरी-बांकी सुन्दरियों का क्रीडा-स्थल यह प्रदेश, जिसके गुणों का गान कालिदास ने भी किया है, स्वर्ग से कम नहीं है। हवाओं के चलने से सूखे बांस जब बजते हैं तब सुन्दरियां उसके साथ स्वर मिलाती हैं और शिव की त्रिपुर विजय के उपलक्ष्य में झूम झूम कर नृत्य करती गाती हैं।

यहाँ की शैल-मालाएँ, घाटियाँ, शीतल हवा, शीतल अमृत जैसा मृदु जल, सतलुज, व्यास और रावी नदियों की धारा छोटे-छोटे झरने और बरसात में उफनते नाले, सीढ़ीदार खेत, पहाड़ों पर बसे गांव मनमोह लेते हैं।

सांस्कृतिक एवं सामाजिक जीवन-हिमाचल प्रदेश की संस्कृति भारतीय संस्कृति का यथार्थ रूप है। साधारण रहन-सहन और कठोर परिश्रम, ईमानदारी, भ्रातृत्व इसके मुख्य तत्त्व है। धार्मिक प्रवृत्ति के ये लोग अनेक शकन और अन्ध विश्वासों को भी मानते हैं। यहाँ डागरी साहित्य की सृजना हुई है। पहाड़ी चित्र-शैली जम्मू से होकर टिहरी गढ़वाल तक मानी जाती है। सत्रहवीं और उन्नीसवीं शताब्दियों के बीच अनेक शैलियों का उत्थान-पतन हुआ। पहाड़ी चित्र-शैली भी इससे अछूती न रही। पहाड़ी चित्र-शैली को मुख्यतयः तीन कालों में बांटा जा सकता है : (1) प्राग्मुगलकाल के चित्र जो अब अनुपलब्ध हैं। (2) जहांगीर-शाहजहां काल की अलंकारिक शैली के चित्र जिनमें बसोहली के चित्र भी शामिल हैं। (3) उत्तर-मुगलकाल के चित्र भी जम्मू, गुलेर, कांगड़ा, टीरा सुजानपुर में उपलब्ध हुए है।

वर्तमान हिमाचल-1948 में जब हिमाचल का जन्म हुआ तब यह अत्यन्त पिछड़ा राज्य था। राज्य के नेताओं ने तभी इसके विकास के लिए कार्यवाई शुरू कर दी। सड़कों, यातायात व संचार साधनों का विकास किया, शिक्षा का प्रसार किया, नए उद्योग स्थापित किए, कृषि सुधार पर बल दिया। फलतः आज राज्य उन्नत हो गया। इस राज्य में सड़कें नाममात्र को थीं अब हजारों किलोमीटर लम्बी और सुन्दर पक्की सड़कों का जाल बिछ गया है। गाँव-गाँव को परिवहन सेवा से जोड़ा जा रहा है।

मुख्यतया यहां हिन्दी बोली जाती है। पहाड़ी प्रदेश होने से गाँव छोटे-छोटे होते हैं और दूर-दूर बसे होते हैं। यहाँ के घर पत्थर और स्लेट से बने होते हैं लेकिन मैदानी क्षेत्रों में तो शहरों जैसी स्थिति ही है। यहाँ के लोगों को कठोर परिश्रम करना पड़ता है। कृषि, पशु-पालन मुख्य धन्धे हैं। यहाँ की स्त्रियों का जीवन कठिन होता है। पहाड़ों में बसे गाँव में पानी के लिए, लकड़ी के लिए, घास आदि के लिए दूर जाना पड़ता है। ढलानदार और सीढ़ीनुमा खेतों में मक्की जौ, चना, मटर, दालें, आलू, फाफरा, सरसों की खेती होती है। गेहूँ और धान की खेती भी की जाती है। फलों में सेब, सन्तरे, माल्टा प्रमुख फल है।

हिमाचल की जनता धार्मिक प्रवृत्ति की है। यहाँ अनेक स्थानों पर माता के प्रमुख मंदिर हैं। चिन्तपुर्णी, ज्वाला जी, आदि तीर्थों में लाखों तीर्थ यात्री जाते हैं। कुल्लू का दशहरा, बिलासपुर में नैना देवी का मेला, बुशैहर का लवी मेला, मंडी में शिवरात्रि मेला, बहुत ही प्रसिद्ध मेले एवं उत्सव है। सामाजिक जीवन में अभी स्त्रियों की दशा में बहुत सुधार नहीं हुआ है लेकिन शिक्षा के प्रसार ने स्थिति बदल दी है।

शिक्षा के क्षेत्र में आज हिमाचल की दशा बहुत बंदल गई है। विश्व विद्यालय, कॉलेज, हायर सैकेण्डरी स्कूल, मिडल और प्राइमरी स्कूलों की संख्या बढ़ गई है। मिडल स्कूल तो गांव-गांव में हैं। शिमला विश्वविद्यालय और पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय बहुत प्रसिद्ध है। पहले हिमाचल में चिकित्सा सुविधाएं बहुत कम थीं, फलत: मृत्यु-दर काफी ऊँची थी। लेकिन अब राज्य भर में अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की संख्या बहुत हो गई। है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण सेवाओं का निरन्तर प्रसार हो रहा है।

प्रदेश में छोटे-बड़े अनेक उद्योग स्थापित किए गए है। बिरोजा, तारपीन तेल, चाय, शाल, केन-क्रेशर और फल तथा सब्जियों को डिब्बा बन्द करने के उद्योगों का काफी विस्तार हो चका है। सोलन तथा कई अन्य नगरों में औद्योगिक बस्तियां बनाई गई हैं तथा सरकार उद्योगपतियों को काफी सुविधाएँ दे रही है। पहाड़ी प्रदेश होने से यहां फल आसानी से पैदा किये जा सकते है जैसे सेब, नाशपाती, खूबानी फलों का सीधा निर्यात किया जाता है। अब कताई-बुनाई, शहद एकत्रित करना, गंदा बिरोजा, तारपीन का तेल एकत्रित करना जैसे उद्योगों को खूब अपनाया गया है। वनों पर आधारित उद्योग विकसित किए जा रहे हैं। सेब की खेती को तो बहुत ही विकसित किया गया है। परवाण, नाहन, पौंटा और सिरमौर ज़िलों में कारखाने लगाए गए हैं। कागज, चीनी मिट्टी, लोहे की ढलाई आदि के कारखाने स्थापित हुए हैं।

विद्युत के उत्पादन के लिए छोटे-छोटे पन बिजली घर बनाए जा रहे हैं और सतलुज-ब्यास लिंक परियोजना, गिरि-बांटा जल विद्युत परियोजना तथा अन्य कई योजनाएँ भी कार्यरत हैं। जिनसे यह प्रदेश बिजली की सुविधा प्राप्त करता है।

पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए योजनाएँ तथा सुधार कार्य किए जाते हैं जिससे अब यहाँ बहुत संख्या में सैलानी आते हैं तथा प्रकृति के सौन्दर्य से प्रसन्न होते हैं।

वर्तमान हिमाचल आज अपने नए रूप में प्रवेश कर रहा है। आधुनिक सभ्यता और फैशन ने अपना पूरा जाल यहां नहीं फैलाया है। अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण अब भी यहाँ के जीवन में परम्परा बसी हुई है। धार्मिक तीर्थ स्थलों ने भी यहाँ समृद्धि लाने में सहायता की है। शिक्षा के विकास ने युवकों को नई दिशा दी है। औद्योगिक विकास के लिए कठिनाइयां होते हुए भी अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। प्रकृति की गोदी में बसे हिमाचल के रूप को आज निखारा जा रहा है जिसमें प्राचीन और नवीनता का सुखद संयोग है।

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