रविवार व्रत कथा, विधि- Sunday | Ravivar Vrat Katha in Hindi

इस पोस्ट में हम अपने दर्शकों को रविवार व्रत की पूरी जानकारी दे रहे है जैसे की- रविवार व्रत की कथा, विधि, नियम और लाभ। Providing information about Sunday Fast Katha | Ravivar Vrat Katha , Vidhi, Rules and Benefits, How to do Ravivar Vrat Katha, Sunday Fast Vidhi in Hindi.

रविवार व्रत कथा, विधि- Sunday | Ravivar Vrat Katha in Hindi

रविवार के व्रत की विधि 

सुबह स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें, शान्त चित्त से व्रत का संकल्प करें। सत्य बोलें व| ईमानदारी का व्यवहार करें और कम से कम एक परोपकार का काम अवश्य करें।

Ravivar Vrat Katha Rules- रविवार व्रत व्रत नियम- व्रत के दिन एक ही समय भोजन करें। भोजन तथा फलाहार सूर्यास्त से पहले ही कर लें। यदि सूर्य छिप जाए तो दूसरे दिन सूर्य भगवान को जल । देकर ही अन्न ग्रहण करें। व्रत की समाप्ति के पूर्व रविवार की कथा अवश्य सुनें या पढ़े। व्रत के दिन नमकीन और तेलयुक्त भूलकर भी न खाएं। .

Ravivar Vrat Katha benefits | रविवार व्रत कथा के लाभ- इस व्रत के करने से नेत्र रोग को छोड़कर सभी ” रोग दूर होते हैं। राज-सभा में सम्मान बढ़ता है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।

रविवार व्रत कथा प्रारम्भ

बहुत पुराने समय की बात है। एक नगर में एक बुढ़िया रहती थी। वह हर रविवार को सूर्य भगवान का व्रत रखती थी। उसका नियम था कि ब्रह्म मुहूर्त में उठकर, शौचस्नानादि करके पड़ोसिन की गाय के गोबर से घर को लीपकर, शुद्ध और सात्विक भाव से भोजन बनाती थी। तीसरे पहर सूर्य भगवान को भोग लगाकर स्वयं शेष भोजन का प्रसाद समझकर विनम्र भाव से ग्रहण करती थी। इस व्रत के फल स्वरूप उसका घर धन-धान्य से पूर्ण रहता था। वह सभी प्रकार से सुखी और सन्तुष्ट थी।

उस बुढ़िया के पड़ोस में एक और औरत रहती थी। उसे वृद्धा की श्री सम्पन्नता अच्छी नहीं लगी। इसलिए उसने रविवार के दिन, वृद्धा के उठने से पहले अपनी गाय का गोबर उठाकर अन्दर रख लिया। आस पास कोई और गाय न थी फलतः बुढ़िया घर न लीप सकी, भोजन बना न सकी, भगवान को भोग लगा न सकी इसलिए भूखी प्यासी सो गई।

उस रात बुढ़िया के स्वपन में भगवान दिखाई दिए। अन्र्तयामी भगवान ने अनजान बनते हुए वृद्धा से भोग न लगाने और प्रसाद न पाने का रहस्य पूछा। वृद्धा ने बताया कि गाय का गोबर न मिलने से वह ऐसा न कर सकी। तब भगवान ने कहा, भगतिन तुम क्योंकि सच्चे मन से निष्काम भाव से मेरा व्रत रखती हो, इसलिए में तुमसे प्रसन्न हूँ। मैं तुम्हें एक ऐसी गाय देता है जो तुम्हारी सभी कामनाएं पूरी करेगी क्योंकि मेरा व्रत भक्तों के सभी संकटों और अभावों को दूर करके ऋद्धि सिद्धि देता है। 

सुबह उठते ही वृद्धा ने अपने आँगन में एक सुन्दर गाय का बछड़ा देखा वह उस । गाय के बछड़े की बड़े प्यार से सेवा करने लगी।

वह गाय विशेष गुणों से सम्पन्न थी। वह सोने का गोबर करती थी। संयोग से उसकी प्रथम गोबर त्याग को ईष्र्यालु पडोसिन ने देख लिया। सोने के गोबर को उठाकर उसने उसके नीचे अपनी गाय का गोबर रख दिया। अब वह इस ताक में रहने लगी और जैसे ही गाय गोबर करती पड़ोसिन उसे उठाकर ले जाती और उसके स्थान पर अपनी गाय का गोबर रख जाती।

सूर्य भगवान ने चालाक पड़ोसिन की चालाकी से वृद्धा की रक्षा का एक उपाय निकाला। शाम के समय बडी जोर की आँधी चली। वद्धा को गाय घर में बांधकर सोना पड़ा। सुबह उठने पर गाय के नीचे सोने का गोबर देखा तो उसे उसकी विशेषता का पता चल गया। अब वह शाम को गाय को घर में ही बाँधने लगी।

ईष्र्यालु पड़ोसिन ने इस प्रकार जब अपने को सोने के गोबर से वंचित होता देखा तो । उसने राजदरबार में जाकर राजा को सुनाया कि मेरी पड़ौसिन की गाय सोने का गोबर देती है। वह आपकी गौशाला में रहनी चाहिए, राजा को बात जंच गई। उसने उसी समय सिपाहियों को भेज कर गाय खुलवा कर मँगवाई। वृद्धा के रोने-धोने का राज । कर्मचारियों पर कोई असर नहीं हुआ।

वह शनिवार की शाम थी। दूसरे दिन रविवार था। वृद्धा गाय के वियोग और गोबर  के अभाव के कारण उस दिन घर आँगन न तो लीप सकी और न भोजन बना सकी। है और न ही सूर्य भगवान को भोग लगा सकी। दयालु भगवान को वृद्धा पर दया आई। उन्होंने राजा की गौशाला को गोबर से ऐसा भरा कि राजा की नाक में दम आ गया और उन्होंने राजा को स्वप्न में हुक्म दिया कि, सुबह होते ही वृद्धा की गाय उसके पास भिजवा दे अन्यथा तुझको और तेरे राज्य को नष्ट भ्रष्ट कर दूंगा।

सुबह होते ही राजा ने सम्मान के साथ गाय वृद्धा के पास भेज दी और राज्य में घोषणा करा दी कि जो कोई भी सूर्य भगवान की भगतिन वृद्धा को किसी भी प्रकार से सताएगा, उसको कड़ी सजा दी जाएगी। दूसरे आदेश में उसने प्रजा को हर रविवार को सूर्य भगवान का व्रत रखने का हुक्म दिया। व्रत के अच्छे फलस्वरूप राजा की और प्रजा की सभा मनोकामनायें पूरी हो गई और प्रजा तथा राजा आनंद के साथ भगवान की कृपा का बखान करते हुए दीर्घकाल तक सुखी और संतुष्ट रहकर स्वर्गलोक को सिधार गए।

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