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Essay on Tsunami in Hindi- सुनामी पर निबंध
प्रकृति का मनोरम रूप जहां मनुष्य के विकास के लिए सदा सहायक है, वहाँ भयंकर रूप उसके विनाश का कारण भी बनता हा है। मानव जहाँ आदिकाल से प्रकृति की गोद में खेलकूद कर बड़ा होता है, वही गोद कभी-कभी उसको निगल भी जाती है। अतिवरि अत्यधिक वषा), बाढ़, भूकंप, समुद्री तूफान, आधी आदि प्राकृतिक प्रकोप के विभिन्न रूप हैं। 26 दिसंबर, 2004 को समुद्र में उठी भयंकर लहरें भी विनाशकारी प्राकृतिक प्रकोप था । महाविनाशकारी ‘सुनामी’ की उत्पत्ति भी वास्तव में समद्रतल में। य आने से होती है। समुद्र के भीतर भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट या भू-स्खलन के कारण यदि बड़े स्तर पर पृथ्वी की सतह (प्लेटें) यती हैं तो इससे सतह पर 50 से 100 फुट ऊँची लहरें, 800 कि०मी० प्रति घंटे की तीव्र गति से तटों की ओर दौड़ने लग जाती है। पणिमा की रात्रि को तो ये लहरें और भी भयंकर रूप धारण कर लेती हैं। 26 दिसंबर को भूकंप के कारण उठी इन लहरों ने भयंकर रूप धारण कर लाखों लोगों की जाने ले ली और अरबों की संपत्ति को नष्ट कर डाला। आज भी उस दृश्य दृश्य के विषय में सोचकर दिल दहल जाता है।
वस्तुतः ‘सुनामी’ शब्द जापानी भाषा का है। जहाँ अत्यधिक भकंप आने के कारण बहाँ के लोगों को बार-बार प्रकृति प्रकोप का सामना करना पड़ता है। हिंद महासागर के तल में आए भूकंप के कारण ही 26 दिसंबर को समुद्र में भयंकर सुनाना । उत्पन्न हुई थी। इस सुनामी तूफान ने चार अरब वर्ष पुरानी पृथ्वी में ऐसी हलचल मचा दी कि इंडोनेशिया, मालद्वीप, श्रीलका, मलेशिया, अंडमान, निकोबार, तमिलनाडु, आंध्र-प्रदेश, केरल आदि सारे तटीय क्षेत्रों पर तबाही का नग्न तांडव हुआ। मछाल पकड़कर आजीविका कमाने वाले कई हजार मछआरे इस भयंकर सनामी लहरों की चपेट में आकर जीवन से हाथ धो बैठे। अंडमाननिक दीप समूहों में स्थित वाय-सेना के अड़े को भी भयंकर क्षति पहुँची तथा सौ से अधिक वाय-सेना के जवान, ऑधकारावा पारजन काल के ग्रास बन गए। नौ-सेना के जलयान बँधी हुई रस्सियों के टट जाने के कारण बच तो गए, किंतु चार नागरिक जहाज क्षतिग्रस्त हो गए। पोर्ट ब्लेयर हवाई पट्टी को क्षति पहुँची। उसकी पाँच हजार फीट की पट्टी सुरक्षित होने से राहत पहुँचाने वाले 14 विमान उतारे गए। इस संकट के समय में भारतीय विमानों को श्रीलंका और मालदीव के लोगों की सहायता के लिए भेजा गया। कई मीटर ऊँची सुनामी लहरों ने निकोबार में एटी०सी० टावर को भी ध्वस्त कर डाला था, किंतु तत्काल संचल एटी०सी० टावर की व्यवस्था कर ली गई थी।
यदि पुराने इतिहास पर दृष्टि डालकर देखा जाए तो पता चलेगा कि यह समुद्री तूफान व बाढ़ कोई नई घटना नहीं है। प्राचीन इराक में आज से लगभग छह हजार वर्ष पूर्व आए समुद्री तूफान और बाढ़ से हुई तबाही के प्रमाण मिलते हैं। बाइबल और कुरान शरीफ में भी विनाशकारी तूफानों का वर्णन मिलता है। ‘श्रीमद्भागवदपुराण’ में भी प्रलय का उल्लेख मिलता है। उसमें यताया गया है कि जब प्रलय से सृष्टि का विनाश हो रहा था तब मनु भगवान् ने एक नौका पर सवार होकर सभी प्राणियों के एक-एक जोड़े को बचा लिया था। भले ही यह वर्णन कथा के रूप में कहा गया है, किंतु इससे यह सिद्ध होता है कि समुद्र में तूफान आदिकाल से आते रहे हैं जिनका सामना मनुष्य करता आया है। इतना ही नहीं, भूकंप और समुद्री तूफानों ने पृथ्वी पर अनेक परिवर्तन भी कर दिए हैं। इन्हीं ने नए द्वीपों व टापुओं की रचना भी की है। भारत में प्राचीन द्वारिका समुद्र में डूब गई थी। इसके आज भी प्रमाण मिलते हैं। इसी प्रकार वैज्ञानिक विश्व के अन्य स्थानों की परिवर्तित स्थिति का कारण समुद्री तूफानों व भूकंपों को मानते हैं। यू०एस० जियोलॉजिकल सर्वे के विशेषज्ञ केन हडनर के अनुसार सुमात्रा द्वीप से 250 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में समुद्र-तल के नीचे आए, इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 9 के लगभग थी। यह भूकंप इतना शक्तिशाली था कि इसने कई छोटे-बड़े द्वीपों को 20-20 मीटर तक अपने स्थान से हिलाकर रख दिया। विद्वानों का यह भी मत है कि यदि भारत अथवा एशिया के क्षेत्र में कहीं भी महासागर की तलहटी में होने वाली भूगर्भीय हलचलों के आकलन की चेतावनी प्रणाली विकसित होती तो इस त्रासदी से होने वाली जान-माल की क्षति को कम किया जा सकता था।
यह बात भी सही है कि प्राकृतिक प्रकोपों को रोक पाना मनुष्य व उसके साधनों के वश में नहीं है, फिर भी यथासंभव सूचना देकर बचने की कुछ व्यवस्था की जा सकती है। 26 दिसंबर, 2004 को सुनामी समुद्री भूकंप भारतीयों के लिए एक नया अनुभव है। भारतीय मौसम विभाग के सामने अन्य महासागरों में उठी सुनामी लहरों से हुई जान-माल की हानि के उदाहरण थे। किंतु भारतीय मौसम विभाग समुद्री भूकंप की सूचना होते हुए भी यह कल्पना तक नहीं कर सका कि सुनामी तरंगों से भारतीय तटीय क्षेत्र की दशा कैसी हो सकती है।
भारत में सनामी तफान से हुए विनाश को देखकर विश्वभर के लोगों के हृदय दहल उठे थे। अतः उस समय हम सबका कर्तव्य है कि हम तन, मन और धन से ध्वस्त लोगों के परिवार के साथ खड़े होकर उनकी सहायता करें। इसमें संदेह नहीं कि विश्व के अनेक देशों व संस्थाओं ने सुनामी से पीड़ित लोगों की धन से सहायता की है, किंतु इससे उनके अपनों के जाने का गम तो दूर नहीं किया जा सकता। हमें उनके प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए और उनका धैर्य बँधाना चाहिए।
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