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आरक्षण पर निबंध- Essay on Reservation in Hindi
आरक्षण का अर्थ है कुछ वंचित या आर्थिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए सशक्त व्यक्तियों से कुछ पदों को बचाकर उपलब्धता सुनिश्चित करना। भारतीय समाज अनेक वर्गों एवं जातियों में बँटा हुआ है। इनमें प्रमुख हैं-सबल वर्ग जो साधन संपन्न हैं तथा दूसरे वे जो साधन विपन्न हैं। वे आर्थिक, सामाजिक स्थिति में पिछड़े हुए हैं, इनका सर्वांगीण विकास करना एवं समाज में प्रतिष्ठा एवं सम्मानजनक स्थान दिलाना ही आरक्षण का मुख्य उद्देश्य है। ब्रिटिश काल से ही नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था है। पहले मुसलमानों को अल्पसंख्यक होने के कारण दिया गया परंतु स्वतंत्रता के पश्चात् मुसलमानों का आरक्षण तो समाप्त हो गया परंतु एंग्लो इंडियन समुदाय के लिए आगामी दस वर्षों के लिए आरक्षण की व्यवस्था बरकरार रहने दी गई।
संविधान में समानता के अधिकार के प्रावधान के कारण सभी को बिना भेदभाव के समान अवसर प्रदान किए गए। पहले आरक्षण का प्रावधान उन जातियों एवं जनजातियों के लिए रखा गया जो संविधान की अनुसूची में सम्मिलित थीं। बाद में इसका दायरा बढ़ता गया और अब तो नौकरियों में आरक्षण, पदोन्नति में आरक्षण का लाभ उठाने के लिए अन्य जातियों के बीच संघर्ष छिड़ गया है। आज नेताओं ने इसे एक राजनीतिक मुद्दा बना दिया है। आरक्षण की मूल भावना को तिरोहित कर दिया गया है। मात्र जातियों को चुनाव में और मतदान के लिए रिझाने के लिए आरक्षण को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। कालांतर में अनुसूची में शामिल जातियों एवं जनजातियों के अलावा अन्य पिछड़े वर्गों के लोगों की पहचान कर उन्हें भी आरक्षण के दायरे में लाया गया। इससे राजनीतिक दलों में एक होड़-सी आरंभ हो गई कि कौन-सा दल अधिक से अधिक आरक्षण का प्रावधान रखेगा और एक विशाल जनसमूह को आरक्षण का लाभ देगा।
कोई भी दल आरक्षण को कम करने अथवा समाप्त करने की पक्ष में नहीं दिखाई देता। बल्कि उनके भीतर अधिक से अधिक आरक्षण देने की लालसा दिखाई देती है। आरक्षण के इस प्रवृत्ति का समाज पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। इससे समाज में दो नए वर्गों का उदय हो गया है-आरक्षित वर्ग तथा अनारक्षित वर्ग। इन वर्गों में मनोवैज्ञानिक आधार पर कटुता एवं वैमनस्यता की भावना शनैः शनैः बढ़ती जा रही है। यही भावना आगे चलकर एक गंभीर संघर्ष को जन्म दे सकती है।
जो छात्र आरक्षित वर्ग में हैं उन्होंने इसका अनुचित लाभ लेना आरंभ कर दिया है। अब वे परिश्रम करना ठीक नहीं समझते क्योंकि कम अंकों के आधार पर भी वे मनचाहे कॉलेज या नौकरी में प्रवेश कर सकते हैं वहीं दूसरी और अनारक्षित वर्ग क व छात्र हैं जो अत्यधिक परिश्रम के बाद भी अपना मनचाहा लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। यदि हम समाज का कल्याण चाहते हैं तो प्रत्येक व्यक्ति के कल्याण के बारे में गंभीरता से सोचना होगा न कि केवल कुछ विशेष जातियों या वगों के बारे में।
समाज में कमजोर वर्ग को मूलभत सविधाएँ प्रदान करनी चाहिए जिससे वह उन सुविधाओं का फायदा उठाकर कार्य करने में सक्षम हो सके। मात्र आरक्षण से ही हम लोगों की स्थिति को बेहतर नहीं बना सकते क्योंकि आरक्षण की नीति का फायदा केवल शहरीय जीवन उठा रहा है। सदर गाँवों तक तो अभी भी स्थितियाँ जस की तस बनी हुई हैं। अत: आरक्षण के अतिरिक्त अन्य विकल्प भी खोजा जाना चाहिए जो समाज को उचित न्याय प्रदान कर सके।
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